यह कहानी है महज 3 महीने में अपने माँ-पिता से अलग हुई और 8 साल की उम्र में भाई बहनों की ज़िम्मेदारी निभाने वाली माया बोहरा की, जिन्होंने अपनी शिक्षा के लिए अपनों से ही बगावत की और आज वह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम कर रही हैं।
लॉ के कोर्स में दाखिला लेने के बाद विदुषी ने जाना कि भारत के संविधान में ऐसे बहुत से कानून हैं जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाये गए हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर महिलाओं को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
सहरसा में मात्र 55 प्रतिशत साक्षरता है, वहीं डिजिटल साक्षरता इससे भी काफी कम, लेकिन डॉ० शैलजा ने इन बाधाओं के बाद भी ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की मदद पहुंचाई।