बेंगलुरु के जयनगर में रहने वाली, मीना कृष्णामूर्ति, छत पर बागवानी करने के साथ, जैविक खाद भी बनाती हैं। इनसे आप कम्पोस्टिंग की ट्रेर्निंग भी ले सकते हैं।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली शालिनी गर्ग, नौकरी के साथ-साथ, पिछले दस सालों से गार्डनिंग भी कर रही हैं। आज उनके टेरेस गार्डन में 300 से ज्यादा पेड़-पौधे हैं।
मुंबई की ‘Emgee Greens society’ पिछले दो साल से कचरा मुक्त है। उन्होंने पुरानी अलमारियों और सिंक तक को रीसायकल कर जैविक पौधों के लिए इस्तेमाल किया है और छत पर उगाई गई सब्जियों का उपयोग पूरी सोसाइटी कर रही है।
दिल्ली के रहने वाले अजय कुमार झा की छत पर 1000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगे हुए हैं, जिनमें मौसमी सब्जियों के साथ-साथ अंगूर, अनार, चीकू, अमरुद, संतरा, नींबू, तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय, एलोवेरा, नीम, धतूरा, अपराजिता, वैजयंती, रुद्राक्ष जैसे पेड़-पौधे शामिल हैं।
बेंगलुरु की जिंसी सैमुअल ने खेती में बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के, अपनी छत पर हाइड्रोपोनिक और एक्वापोनिक विधि से 230 तरह की फल-सब्जियां उगाती है। साथ ही, झींगा तथा तिलापिया मछलियों का भी होता है प्रजनन।
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में रहने वाली 46 वर्षीया ऋतू सोनी, साल 2017 से अपनी छत पर बागवानी कर रही हैं और अपने ‘एबीसी ऑफ़ गार्डनिंग' यूट्यूब चैनल के जरिए, अपने 1.7 लाख से भी ज्यादा सब्सक्राइबर को बागवानी के गुर सिखा रही हैं।
बेंगलुरु के रहने वाले 58 वर्षीय इंजीनियर, नटराज उपाध्याय ने अपने घर में 1700 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाकर 'अर्बन जंगल' बनाया है। जहाँ पर आपको पपीता, केला, इमली और मोरिंगा जैसे 300 से ज्यादा किस्म के पेड़-पौधे और 50 से ज्यादा किस्म के पक्षी, तितलियाँ और अन्य जीव-जंतु दिख जाएंगे।