ओडिशा के पद्म श्री डी प्रकाश राव ने ज़रूरतमंद बच्चों के लिए जिस स्कूल को शुरू किया था, आज उनके जाने के बाद, उनकी बेटी ने विदेश की नौकरी छोड़कर इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई है। उनके इस नेक काम में आप भी उनका साथ दे सकते हैं!
गोरखपुर के रत्नेश तिवारी आज खुद की एक कंपनी चलाने के साथ-साथ, ज़रूरतमंद बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए भी काम कर रहे हैं। वह अब तक 300 से ज़्यादा बच्चों को स्कूल तक पहुंचा चुके हैं।
ज़िंदगी भर अपने पिता को अपनी स्कूल की फ़ीस भरने के लिए कड़ी मेहनत करते देख, 31 साल के उद्देश्य सचान ने अपना ही नहीं, बल्कि कई गरीब बच्चों का भविष्य बनाने की ठानी और उनको फ्री में पढ़ाना शुरू कर दिया। आज कानपुर के गुरुकुलम में 150 से ज़्यादा बच्चे ख़ुशी से, खेल-कूदकर पढ़ाई करते हैं।
'प्रभावती वेलफेयर एंड एजुकेशन ट्रस्ट' के ज़रिए पंढरपुर (बनारस) के मनोज यादव, 15 गांवों के 500 गरीब बच्चों को उनकी बस्ती में जाकर पढ़ा रहे हैं। पढ़ें, कैसे मिली उन्हें इस काम को शुरू करने की प्रेरणा!
सोलापुर बार्शी के विनया और महेश निम्बालकर ने सड़क किनारे रहने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का बीड़ा उठाया। कई चुनौतियों का सामना करते हुए, आख़िरकार 2015 में उन्होंने ‘स्नेहग्राम’ विद्यालय की स्थापना की। यह स्कूल पूरी तरह से सामुदायिक सहायता से चलता है।