एक दिन एक छोटे से कुत्ते की जान बचाने के बाद, कोटा की सोनल गुप्ता की जैसे ज़िंदगी ही बदल गई। उन्होंने बेज़ुबानों के दर्द को महसूस किया और लॉकडाउन में उनका सहारा बनीं। इसके बाद वह शहर में श्वानों की सेवा करने के लिए जानी जाने लगीं। आज वह ‘GSM स्क्वाड’ नाम से अपना NGO चलाती हैं और अब तक 5000 से ज़्यादा पशुओं की जान बचा चुकी हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारी, फ्रैक्चर और बड़ी सर्जरी के बावजूद, गाज़ियाबाद की रहनेवाली 90 वर्षीया कनक सक्सेना अपनी पोती के साथ मिलकर हर दिन 120 कुत्तों के लिए खाना बनाती हैं।
कच्छ के जशराज चारण, पिछले 25 सालों से सड़क पर फिरते कुत्तों और दूसरे जानवरों का पेट भरते आ रहे हैं। उनके घर पर हर रोज़ तक़रीबन 25 किलो आटे का इस्तेमाल करके, इन जानवरों के लिए खाना तैयार किया जाता है। उनका पूरा परिवार इस काम में उनका साथ देता है।