जब कुत्तों के बीच रहते हुए आप सुरक्षित रूप से बड़े हो गए, तो आपका बच्चा भी सुरक्षित है, क्योंकि कुत्ते बेवजह किसीको परेशान नहीं करते। प्रेम बांटने पर प्रेम ही मिलता है, नफरत नहीं।’
विश्वास एवं प्रतिभा समस्या की जड़ तक पहुँचे और उसके हल के लिए ज़मीन- आसमान एक कर दिया। ये उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि 21 मार्च 2015 के बाद से लेकर आज तक 'मौत के कुएँ' में फिर किसी के घर का चिराग नहीं बुझा।
‘विकास की जो राह हमने पकड़ी है इसके अंत में सिर्फ तबाही है। लेकिन इसे रोकना मुश्किल है, इसलिए नुकसान को कम करने के प्रयास किए जा सकते हैं और इसके लिए आम लोगों को भी आगे आना होगा’।
मनीषा गरीबों में केवल कपड़े ही नहीं बांटतीं, बल्कि झुग्गी बस्तियों में जाकर छोटे बच्चों से उनके जन्मदिन पर केक भी कटवाती हैं। इस वजह से बच्चे उन्हें ‘केक वाली दीदी’ कहकर पुकारते हैं।