मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में रहने वाली 46 वर्षीया ऋतू सोनी, साल 2017 से अपनी छत पर बागवानी कर रही हैं और अपने ‘एबीसी ऑफ़ गार्डनिंग' यूट्यूब चैनल के जरिए, अपने 1.7 लाख से भी ज्यादा सब्सक्राइबर को बागवानी के गुर सिखा रही हैं।
चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं, वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती है। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी स्कूल की सबसे बेसिक आवश्यकता होती है। इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूल इन सुविधाओं से दूर है। "
बिहार में केवल 15-25 साल की केवल 31 प्रतिशत महिलाएं ही सुरक्षित रूप से अपने माहवारी का प्रबंधन करती है। ऐसे में इस तरह के सकारात्मक पहल हमें एक नए भविष्य की उम्मीद दिलाते हैं, जहाँ किशोरियों को भी बिना किसी भेद-भाव के अपने अधिकार मिले और वे लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल सकें!
बिहार में गोपालगंज जिले के लुहसी गाँव से ताल्लुक रखने वाले जय प्रकाश मिश्र, 'फाउंडेशन ज़िंदगी' के संस्थापक हैं। इस फाउंडेशन के बैनर तले, साल 2014 से वे कबाड़ और अन्य लोगों से किताबें इकट्ठा करके, बिहार के गांवों में सामुदायिक लाइब्रेरी खोल रहे हैं। उनका उद्देश्य ज़रुरतमंदों तक किताबें पहुँचाना है।
पश्चिम बंगाल में अलीपुरद्वार प्रशासन की 'आलोरण पहल' ने तीन महीनों में ही यहाँ के 73 विद्यालयों के लगभग 20, 000 बच्चों की ज़िंदगी में एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है। यह एक 'ज़ीरो-कॉस्ट' मॉडल है। जिसमें अधिकारी स्कूलों में जाकर मिड-डे मील की गुणवत्ता, छात्रों की हाजिरी और शिक्षकों की उपस्थिति का मुआयना करते हैं।
महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में रहने वाली एक नौवीं कक्षा की छात्रा, निकिता कृष्णा मोरे को अपने स्कूल जाने के लिए हर रोज़ 7 किलोमीटर लम्बा जंगल पार करना पड़ता है। उनकी इस परेशानी के बारे में पढ़कर पुणे के एक बिज़नेसमैन ने उन्हें साइकिल गिफ्ट की है। अब निकिता सुरक्षित और जल्दी स्कूल जा सकती हैं।
महाराष्ट्र में पुणे के बारामती से ताल्लुक रखने वाले कपिल जाचक एक सफल आधुनिक किसान है। वे आधुनिक तरीके से केले की खेती कर अच्छा-खासा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। साथ ही, वे अन्य किसानों के लिए केले की खेती के सलाहकार भी हैं। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर एग्रो-टूरिज्म की पहल भी की है।
महाराष्ट्र में पुणे के बारामती शहर की निवासी 16 वर्षीय मयूरी पोपट यादव ने अपने दिव्यांग भाई के लिए एक खास व्हीलचेयर-कम-साइकिल बनाई है। जिसकी मदद से अब उसके भाई को स्कूल आने-जाने में तकलीफ़ नहीं होगी। इस प्रोजेक्ट में मयूरी के स्कूल में उसे पूरा समर्थन मिला।