उस दिन मिरैकल हुआ - बशीर साहब के चेहरे पर चमक आई, उन्होंने अपनी शरीके हयात की गोद में रखे अपने सर को हौले से हिलाया और एक हलकी सी मुस्कराहट के ज़रिये फ़रमाया कि वो सुन और समझ पा रहे हैं.
महबूब के रुमान को तो हम सबने महसूस किया ही है, लेकिन सब नहीं जानते कि इन्क़िलाब का रुमान भी बहुत सुरीला होता है, दिलकश होता है। फ़ैज़ साहब इन दोनों रुमानों में ताउम्र डूबे रहे तो इनसे जलना लाज़मी तो है न ?
पचपन-साठ के आसपास विधवा/ विदुर हुए लोगों की शादी आज 2019 में भी दुर्लभ है. अब जब बच्चों का घर बस चुका है, या बसने वाला है अकेले माँ या बाप की शादी की बात एक पाप की तरह लगती है. माँ के लिए रोया जाता है कि हाय कैसे रहेगी अब बेचारी लेकिन उनका भी नया घर बसे यह नहीं सोचा जाता.
आज की शनिवार की चाय का मकसद आपके साथ इब्ने इंशा के लिए उमड़े प्यार को साझा करना है. 'मीठी बातें - सुन्दर लोगों' में अपने आपको गिन लेने वाले इंशा जी को पढ़ना-सुनना आपके मन में सुनहला, सुगन्धित, नशीला धुआँ भर देता है.
कविता लिखने की स्किल सीख सीख कर किताबें छपवाई जा रही हैं, वैसे भी आजकल कोई सम्पादन का मुआमला तो है नहीं, अपने पैसे दे कर जैसी चाहे छपवा लो, फिर सोशल मीडिया पर अपने आपको प्रमोट कर लो.
आज द बेटर इंडिया और शनिवार की चाय में मनीष गुप्ता के साथ पढ़िए, डॉ. धर्मवीर भारती की रचना 'कनुप्रिया'! क्योंकि डॉ. भारती सिर्फ 'गुनाहों का देवता' के ही रचियता नहीं थे। उन्होंने 'कनुप्रिया' और 'अंधायुग' जैसी रचनाएँ भी की हैं।
मैं उस ख़त को लेकर मुंडेर पर जा कर बैठ गया सुबह की चाय के साथ. वो बरसात का मौसम था. मुझे कहीं जाना नहीं था तो मैं बैठा ही रहा. बरसात बीती तो शिशिर आया. फिर शरद, बसंत, हेमंत, ग्रीष्म और फिर से वर्षा.
फ़ेसबुक जन्य डिप्रेशन के 70% लोग शिकार हैं. सोशल मीडिया की मछलियाँ अपनी पींग में कम खिलती हैं, दूसरों की डींग में अधिक गलती हैं. चमक-दमक एकमात्र गहना है. लोग लगातार जो नहीं हैं वह दिखने के लिए मरे जा रहे हैं.