महाराष्ट्र के गाँव में हज़ारों साल पुरानी तकनीक से बना एक ऐसा घर जो है प्रकृति का हिस्सा

बैम्बू, गोबर, मिट्टी, ईंटें, रीसाइकल्ड लकड़ी और स्थनीय पत्थर; आस-पास मिलने वाली चीज़ों से यह घर बनाया है महाराष्ट्र के तीन दोस्तों ने, जो पेशे से आर्किटेक्ट हैं और गाँव की साधारण जीवनशैली से बेहद प्रभावित हैं। इसलिए इन्होंने अपनी कला से बनाया है यह प्राकृतिक घर।

आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने के बाद महारष्ट्र के रहने वाले प्रतीक धनमेर, शार्दुल पाटिल और विनीता कौर ने समाज के लिए कुछ करने का फैसला किया। अपने काम से ये युवा आर्किटेक्ट गाँव के लोगों के जीवन में बदलाव लाना चाहते थे। इसकी शुरुआत इन्होंने महाराष्ट्र के पालघर जिले के आदिवासी गाँव मुरबाड से की। 

प्रतीक भी इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। यहाँ की साधारण जीवनशैली को देखते हुए इन तीनों ने अपनी कला और ज्ञान के ज़रिए ही यहाँ काम करने का फैसला किया। 

करीब से जानने के लिए इन्होंने यहाँ के घरों और लोगों के रहन-सहन के तरीके को ध्यान से समझा। 

कम लागत और मेंटेनेंस वाला नेचुरल घर

इस रिसर्च के दौरान प्रतीक, शार्दुल और विनीता ने आदिवासी घरों की वास्तुकला को करीब से समझा और देखा कि ये घर कई मायनों में आम घरों से अलग हैं। 

इन्हें केवल प्राकृतिक चीज़ों से ही बनाया जाता है। पूरी तरह मिट्टी का घर बनाने के बजाए यहाँ के लोग लड़की, पत्थर, बैम्बू जैसी चीज़ों का भी भरपूर इस्तेमाल करते हैं, जिससे घर की मेंटेनेंस का काम कम हो जाता है। 

Adivasi village home.
मुरबाड का आदिवासी घर

इस क्षेत्र में घर बनाते हुए भी पर्यावरण का पूरा ध्यान रखते हैं। कम से कम पेड़ काटना, केवल स्थानीय चीज़ों का इस्तेमाल करना यहाँ की परंपरा में शामिल है। 

महाराष्ट्र की संस्कृति और लोकल टच

गाँव की इसी जीवनशैली और परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रतीक, शार्दुल और विनीता ने यहाँ कम से कम लागत में एक आदिवासी घर बनाने का फैसला किया और अपने ट्रेडिशनल व सस्टेनेबल आर्किटेक्चर स्टार्टअप, डिज़ाइन जंत्रा की शुरुआत की।

अपने इस आर्किटेक्चरल फर्म के ज़रिए आज ये भारत की अलग-अलग जगहों पर नेचुरल घरों का निर्माण कर लोगों को प्राकृतिक चीज़ों के इस्तेमाल और स्थानीय कलाओं व हुनर के प्रति जागरूक कर रहे हैं। 

अपने बनाए घर में खुद रहते हैं प्रतीक

मुरबाड में बनाया उनका घर दिखने में आम घरों से अलग ज़रूर है, लेकिन असल में यह बल्कि प्रकृति का ही हिस्सा है। 

उन्होंने साल 2016 में इस घर को बनाना शुरू किया; जहाँ आज प्रतीक अपने परिवार के साथ रहते हैं। 

स्थानीय चीज़ों से बने होने के अलावा इस पूरे घर में मिट्टी का प्लास्टर किया गया है और मजबूती देने के लिए इसमें गुड़, पेड़ की राल, मेथी, चूना और बाल मिलाया गया है। 2300 sq ft में बिना सीमेंट के बने इस आदिवासी घर को अन्य मिट्टी के घरों की तुलना में ज़्यादा मेंटेनेंस की भी ज़रूरत नहीं पड़ती।  

सस्टेनेबिलिटी और परंपरा का मेल

इसको बनाने का काम प्रतीक, शार्दुल और विनीता ने लोकल स्किल्ड कारीगरों को दिया, जिससे घर को एक पारंपरिक रूप मिला और गाँववालों को रोज़गार का माध्यम भी। 

सैंकड़ों पेड़-पौधे से घिरे प्रतीक के इस घर को ज़्यादा से ज़्यादा सस्टेनेबल बनाने के लिए यहाँ वॉटर कंज़र्वेशन का भी ध्यान रखा गया है। 

सस्टेनेबल आर्किटेक्चर के ज़रिए अपनी परंपरा और तकनीक को आगे बढ़ाने का इनका यह कदम वाक़ई तारीफ़ के काबिल है। 

यह भी पढ़ें- छत्तीसगढ़: कुम्हार ने बनाया 24 घंटे तक लगातार जलने वाला दिया, पूरे देश से आयी मांग

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X