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बचपन के पंछी को यौवन ने फाँसा!

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बचपन के पंछी को यौवन ने फाँसा!

ओ' अकिंचन कोमलता के दूत
ओ अंजुरी भर सुख
मेरे बचपन की गन्ध में सने
छाती भर खिंचे महीन अन्तःस्पन्दन
ओ चन्दन!

लड़कपन के पहले चुम्बन
रश्मि प्रवाहों के पहले कम्पन
याद हैं सौंदर्य निवेदन?
बरबस छिड़े अविरल गीत
बाली उमर की रीत
विकल, सकल, अगुन प्रीत

बिखरते अब आस के कण
चिहुँकती इस प्यास के कण
झड़न का मौसम -
गिरते फूल. उड़ती धूल. निर्बन्ध
आँगन में भूतों का वास
चल पड़ा मधुमास

बुझती प्रात की पुलकन
ग्रीष्म की भस्म में
मटमैला होता प्रगल्भ जीवन -
उग्र, असंख्य लहरों का समुन्दर
ज़िम्मेदार, कभी-कभी सुन्दर
अवांछनीय यौवन
कुहरीला, कन्फ्यूज़िंग, संयमशील, कभी-कभी सुन्दर
जीवन का झाँसा
बचपन के पंछी को यौवन ने फाँसा

हम बड़े क्यों हुए
कहो चन्दन

अकस्मात् ही जीवन ज़िम्मेदारियों का घड़ा बन जाता है. भारी, रिसता, कन्धों को छीलता.. कभी कभी सुन्दर. एक टीस बचपन की बची रह जाती है, बस! आज के प्रस्तुत वीडियो का शीर्षक है 'सलमा की लव स्टोरी', एक अलग ही तरह का वीडियो प्रयोग है यह. इत्मीनान से देखिएगा, जल्दी हो तो कोई आइटम नंबर देख लें.

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लेखक -  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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