“मैंने हमेशा अपने पिता को सुबह होने से पहले ही जागते देखा। वे अपनी साइकिल पर दूध की भारी कैन रखकर पूरे गाँव में दूध बेचने जाते। वापिस आकर वे देर रात तक हमारे छोटे से खेत में काम करते। पर उन्होंने कभी भी कोई शिकायत नहीं की। हम हमेशा से उनकी प्राथमिकता रहें। मुझे याद है जब एक बार मेरा पैर एक कांच की टूटी हुई बोतल से कट गया था, तो वे मुझे अपने कंधे पर बिठाकर मीलों पैदल चलकर डॉक्टर के पास लेकर गये थे। वे अक्सर हमें कहते कि उनका पूरा जीवन बस हमारे लिए है और मैं बस इतना चाहता था कि एक दिन कुछ ऐसा करूँ जिससे उन्हें मुझ पर गर्व हो।
वे चाहते थे कि हम सब अच्छी नौकरियां करें- कुछ ऐसा जो एक किसान की ज़िन्दगी से बेहतर हो। वह मुश्किल समय था – एक बार मैंने उन्हें मेरी परीक्षा की फ़ीस भरने के लिए उधार लेते भी देखा। जब मैं 18 साल का था, तो मैं सुबह उठकर उनकी मदद करता फिर कॉलेज जाता। कॉलेज में मेरा पहला साल था और उन्हें मेरी फीस के लिए फिर से उधार लेना पड़ा। इस बार मैं उन्हें ऐसा नहीं करने देना चाहता था। मुझे लगा कि मैं उन पर बोझ बन रहा हूँ। इसलिए मैंने पढ़ाई छोड़ दी।
इस पर मेरे पिता बेहद हताश हो गए। वे चाहते थे कि मैं किसी दफ्तर में ‘साहब’ बनू। पर मेरी पढ़ाई के लिए वे कर्जा लें, इस कीमत पर नहीं। मैंने नौकरी तलाशना शुरू किया पर मैं कॉलेज ड्रॉपआउट था- कोई मुझे रखना नहीं चाहता था। मै करीब 100 जगहों पर नौकरी के लिए कोशिश करने के बाद मेरे एक दोस्त ने सुझाव दिया कि मैं भिवांडी में पैपरफ्राई की फैक्ट्री के सुपरवाइजर से बात करूँ। मैंने ऐसा ही किया! मैं वहां गया और उन्हें मुझे एक मौका देने के लिए मना लिया – मैंने कहा कि मैं कड़ी मेहनत करूँगा। शुक्र है, उन्होंने मुझे नौकरी देने का फैसला किया और मैंने एक लोडर के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
मैं खुश था! मेरी पहली ही तनख्वाह से मैंने घर खर्च में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। मैंने अपने छोटे भाई की पढ़ाई में मदद करना शुरू कर दिया और मेरी बहन की शादी के लिए भी पैसे बचाना शुरू कर दिया। पर मेरे पिता अभी भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे। उन्हें लगता था कि मैं इससे कुछ बेहतर करने के लिए बना हूँ।
कुछ महीनों के बाद, मुझे रात की शिफ्ट के लिए एक सेवा अधिकारी की जॉब ऑफर की गयी। मेरे सुपरवाइजर ने कहा कि उसने मुझमें क्षमता देखी है और मैं बाकी लोगों के साथ मेरा व्यवहार भी बहुत अच्छा हूँ। मैं सिर्फ 21 साल का था! उस दिन मैं एक अजीब सी कशमकश के साथ घर गया! मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं था कि मैं यह कर पाऊंगा। पर जब मैंने अपने पिता को सुबह 4 बजे काम के लिए उठते देखा, तो मैंने ठान लिया कि अब मुझे यह कदम लेना ही होगा।
मैंने प्रमोशन स्वीकार किया और मिठाई के डिब्बे के साथ घर गया। उस दिन मेरी माँ की आँखों में आंसू थे और मेरे पिता को मुझ पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था पर अभी भी मेरी पढ़ाई छूटने के लिए वे अपने आपको ही ज़िम्मेदार मानते थे! इसलिए मैंने अपने सुपरवाइजर को मनाया कि वो मुझे हफ्ते में एक बार कॉलेज जाने की अनुमति दे दे। अब हर बुधवार, मैं कॉलेज जाता हूँ और अगले एक साल में मुझे डिग्री मिल जाएगी। मैं अपने पिता का सपना पूरा कर पाऊंगा।
दो साल तक बचत करने के बाद, मैंने कुछ दिन पहले उनके लिए एक बाइक खरीदी ताकि उन्हें अब साइकिल पर न जाना पड़े। और इस महीने, मैंने सरप्राइज देने के लिए एक जगह किराये पर ली है, जहाँ वे अपनी डेयरी खोल सकेंगे। अब बस इस सरप्राइज को देख कर उनके चेहरे पर जो ख़ुशी आएगी, उसे देखने के लिए मैं उतावला हो रहा हूँ!”
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