अंतर्राष्ट्रीय संगठन- Water Org की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 8 करोड़ लोग स्वच्छ पानी से वंचित हैं। जिन शहरों में और गांवों को पीने के लिए पानी मिल रहा है, वहां के लोग भले ही इस आंकड़े को गंभीरता से नहीं लेंगे लेकिन देश में एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो इस आंकड़े की सच्चाई को अनुभव कर रहे हैं। हालांकि कुछ लोगों ने इस आंकड़े को ही अपनी किस्मत मान लिया है वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने स्थिति को बदलने की ठानी और आज वे 'जल योद्धा' बन गए हैं।
जी हां , जल-योद्धा- ऐसा व्यक्ति, जो बिना थके और रुके जल-संरक्षण के लिए काम कर रहा है। इस फेहरिस्त में, पिछली बार हमने उत्तर-प्रदेश के रमन कांत त्यागी की कहानी आप तक पहुंचाई थी। आज हम आपको रू-ब-रू करा रहे हैं ऐसे ही एक और नाम से, जिनके प्रयासों की वजह से लगभग 50 लाख लोगों की ज़िंदगी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
कर्नाटक के गडग जिले के एक गांव में जन्मे और पले-बढ़े अयप्पा मसगी का पूरा बचपन आर्थिक परेशानियों से जूझने और पानी के लिए जद्दोजहद करने में गुज़रा। वह बताते हैं कि उनके इलाके में पीने का पानी बिल्कुल भी नहीं था और इसलिए लगभग 3 किमी दूर पैदल चलकर एक 20 फीट गड्ढे से लाना पड़ता था, जिसका स्तर बहुत ही नीचे था। मसगी मुश्किल से 6 साल के होंगे जब वह अपनी माँ के साथ सुबह पानी लेने जाते थे क्योंकि उस गड्ढे में कोई बच्चा ही जा पाता था और बहुत मुश्किल से एक मटका पानी उन्हें मिलता था।
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अयप्पा मसगी ने द बेटर इंडिया को बताया, "उस वक़्त मैं बस यही सोचता था कि कैसे हमारे यहां पीने के पानी की परेशानी दूर हो सकती है। गांव में जो भी पानी था वह इतना खारा था कि उसे पीया नहीं जा सकता था। अक्सर मेरी माँ जब हाथ से आटा पिसती थी तो गाती रहती थी कि 'मेरा बेटा सब ठीक कर देगा। गांव में पानी होगा।' तभी से मेरे मन में यह बात रच-बस गई थी कि मैं चाहे कितना भी पढूं-लिखूं, नौकरी करूं लेकिन मैं एक दिन काम पानी के लिए ही करूंगा।"
कैसे हुई शुरूआत:
अपनी माँ के साथ और विश्वास से मसगी ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की और फिर आईटीआई डिप्लोमा किया। इसके बाद उन्हें भारत अर्थ मूवर्स कंपनी में नौकरी मिल गई। यहां कुछ समय काम करने के बाद उन्होंने लार्सेन एंड टुब्रो नामक कंपनी जॉइन की। साथ ही, उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और मास्टर्स तक की डिग्री हासिल की। वह कहते हैं कि उन्होंने लगभग 23 साल कंपनी में काम किया। 1994 में उन्होंने छह एकड़ ज़मीन भी खरीदी। इस ज़मीन को खरीदने के पीछे का उद्देश्य था इस पर जल-संरक्षण की तकनीकों का प्रयोग करना।
इतने सालों के टेक्निकल करियर में उन्होंने जो कुछ भी सीखा था, उसे वह पारंपरिक ज्ञान के साथ मिलाकर पानी की समस्या पर काम करना चाहते थे। उन्होंने इस ज़मीन पर खेती शुरू की, जिसे वह वीकेंड पर मैनेज करते थे। यहाँ पर उन्होंने एक झोपड़ी भी डाल ली थी। लेकिन बारिश में उनकी झोपड़ी और फसल दोनों बह गए। मसगी ने खुद देखा कि कैसे तेज बारिश का पानी बस आगे-आगे बहता ही चला जा रहा है।
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अयप्पा मसगी ने बताया, "मैंने देखा कि बारिश का पानी कहीं रुक नहीं रहा बल्कि बस बहता गया और समुद्र में जाकर मिल गया। जबकि अगर इसी पानी को हम इकट्ठा करने में कामयाब हो जाएं तो हमारे घरों में पानी की आपूर्ति तो होगी ही, हम धरती की प्यास भी बुझा सकते हैं। बस यहीं से मुझे समझ में आया कि हमें प्रकृति से मिलने वाले पानी को बचाना है और प्रकृति को लौटाना है ताकि हमारे लिए पानी की कमी न हो। "
इसके बाद उन्होंने सर्वेक्षण का काम शुरू किया। उन्होंने कहा, “मैं पास के एक गांव गया और एक दरवाजे को खटखटाया। मैंने पीने का पानी मांगा। अंदर से एक महिला की आवाज़ आई कि अन्य कामों के लिए पानी मिल सकता है लेकिन पीने का पानी नहीं मिल सकता। इसके बाद हम दूसरे गांव पहुंचे जहां लोग पीने के पानी की जगह नारियल देते थे। इन सब स्थितियों को देखकर मैंने ठान लिया कि अब नौकरी छोडकर इसी मुद्दे पर काम करना है।“
साल 2002 में उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और जल-संरक्षण के क्षेत्र में काम शुरू किया। शुरूआत में उनके इस कदम का परिवार वालों ने समर्थन नहीं किया। लेकिन मसगी अपने फैसले पर अडिग रहे।
उन्होंने वर्षा जल संचयन के तरीकों का गहन अध्ययन किया और समझा कि अगर बारिश के पानी को सही तरीके से इकट्ठा किया जाए तो सभी बोरवेल को रिचार्ज किया जा सकता है। साथ ही, किसानों को ऐसे तरीकों से खेती करनी चाहिए कि उन्हें सिंचाई के लिए नदियों और नहरों पर कम से कम निर्भर होना पड़े। उन्होंने सबसे पहले अपने खेत में छोटे-छोटे गड्ढे बनाए जिनमें बारिश का पानी ठहरे। इससे खेतों में बहुत लम्बे समय तक नमी रहती है और बहुत ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
साथ ही, उन्होंने तालाब, बोरवेल और जगह-जगह नाले भी बनाए ताकि बारिश का पानी एक-साथ बहने की बजाय इन सभी जगहों पर इकट्ठा हो। इससे भूजल स्तर को रिचार्ज होने में मदद मिलती है। उनके अपने खेत में जब यह सभी एक्सपेरिमेंट सफल हुए तो दूसरे किसानों ने भी उनसे संपर्क किया।
'वाटर लिटरेसी फाउंडेशन' की नींव:
साल 2004 में उनका काम देखकर अशोका फाउंडेशन ने उनसे संपर्क किया और उन्हें कहा कि वह अपना काम बड़े स्तर पर लेकर जाएं, जिसके लिए उन्हें अशोका से फंडिंग मिलेगी। इसके बाद, साल 2005 में अयप्पा मसगी ने 'वाटर लिटरेसी फाउंडेशन' की नींव रखी। इसके ज़रिए, उन्होंने देश के अलग-अलग जगहों पर पानी की कमी से त्रस्त लोगों तक पहुंचना शुरू किया।
अपनी फाउंडेशन के ज़रिए उन्होंने लोगों को न सिर्फ पानी बचाने बल्कि पानी को सहेज कर रखने के गुर सिखाए। साथ ही, उन्होंने हर जगह वाटर वॉलंटियर्स और वाटर वारियर्स तैयार किए। वह कहते हैं, "सबका मानना है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा। लेकिन मैं अपने देश में ऐसे लोग तैयार करना चाहता हूँ जो उस युद्ध को रोके और हमारा देश पानी के संकट से ऊबर जाए। यह हमारे और आपके साथ में काम करने से संभव है।"
मसगी ने न सिर्फ कर्नाटक में बल्कि दूसरे राज्यों में भी किसानों को पानी का महत्व समझाया। उन्हें बताया कि अगर वह मानसून और सर्दी के मौसम का उपयोग पानी सहेजने में करेंगे तो उन्हें गर्मियों में परेशानी नहीं होगी। खेतों और ग्रामीण क्षेत्रों में मसगी के काम को देखते हुए अशोका फाउंडेशन ने उन्हें शहरी क्षेत्रों और कॉर्पोरेट सेक्टर तक भी अपनी पहल पहुंचाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि अगर शहरों में विला, अपार्टमेंट, सोसाइटी और कंपनी के स्तर पर लोग बारिश के पानी को बचाएंगे तो शहरों में भी जल-संकट नहीं होगा।
साल 2008 में अयप्पा मसगी ने अपनी दूसरी कंपनी 'रेन वाटर कांसेप्ट' शुरू की। उनकी यह कंपनी इंडस्ट्री सेक्टर और अपार्टमेंट्स को वर्षा जल संचयन से जोड़ने का काम कर रही है। इस कंपनी के प्रोजेक्ट्स से उनका जो भी लाभ होता है, उससे वह 'वाटर लिटरेसी फाउंडेशन' के प्रोजेक्ट्स की फंडिंग करते हैं। इस तरह से मसगी ने एक सस्टेनेबल मॉडल बनाया हुआ है ताकि उनके पास काम के लिए पर्याप्त साधन हमेशा रहें।
मसगी ने अब तक 13 राज्यों में 9000 से भी ज्यादा प्रोजेक्ट्स किए हैं और हर जगह वहां कि ज़रूरत के हिसाब से तकनीक का इस्तेमाल किया है। इस तरह से आज उनके पास बारिश का पानी इकट्ठा कर इससे भूजल स्तर बढ़ाने की 100 से भी ज्यादा तकनीक हैं।
अपने इन प्रोजेक्ट में उन्होंने 195 से भी ज्यादा इंडस्ट्रियल कंपनियों के साथ काम किया है जिनमें विप्रो, रडेल इलेक्ट्रॉनिक्स, पेप्सी, नेस्ले, एमटीआर, जिंदल स्टील, एसीसी सीमेंट आदि शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने 300 से भी ज्यादा अपार्टमेंट्स और विला, लगभग 168 शैक्षणिक संस्थान, 31 हज़ार निजी घरों में वर्षा जल संचयन की तकनीक लगा चुके हैं। साथ ही, उन्होंने 900 झील बनाई हैं।
उनके प्रयासों से 100 से भी ज्यादा गांवों को पानी मिला है और लगभग 30 लाख लोगों को पानी के संकट से उबारा गया है। साथ ही, 20 लाख लोगों को उनके काम की वजह से अप्रत्यक्ष रूप से मदद मिली है।
'सूखे बोरवेल का डॉक्टर':
मसगी बताते हैं कि उन्होंने कुछ ऐसी तकनीक विकसित की हैं जिनकी मदद से ज़मीन के हर एक स्तर में पानी पहुंचे- सतह पर, मिट्टी में, नीचे की गहरी मिट्टी में और फिर भूजल स्तर तक। वह तीन आर का इस्तेमाल करते हैं- रियुज, रिसायकल और पानी के स्त्रोतों को रेजुवनेट मतलब कि संरक्षित करना। उनका मानना है कि तकनीक ऐसी होने चहिये जो देश के चारों सेक्टर- ग्रामीण, शहरी, इंडस्ट्री और कृषि- के लिए मददगार हो।
अब तक उन्होंने जितने भी प्रोजेक्ट्स किए हैं सभी सफल रहे हैं। जिस वजह से गांव के लोग उन्हें मसीहा कहते हैं तो शहरी क्षेत्रों में उन्हें 'वाटर वारियर' कहा जाता है। आईआईएम अहमदाबाद ने उन्हें 'सूखे बोरवेल के डॉक्टर' का नाम दिया है तो बेंगलुरु ट्रस्ट ने 'वाटर गाँधी' का। साथ ही, उन्हें अलग-अलग जगह से बहुत से पुरस्कार और सम्मान मिले हैं जिनमें राष्ट्रीय स्तरीय- जमना लाल बजाज सम्मान और कई राज्य स्तरीय पुरस्कार शामिल हैं।
अपने काम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने 20 एकड़ में एक ट्रेनिंग सेंटर बनाया है जो बारिश के पानी को संचित करके भूजल स्तर को बढ़ाने का लाइव मॉडल है। यहां पर उन्होंने 7 झील, अलग-अलग नाले और बाँध बनाए हैं। यहां पर वह महीने में दो ट्रेनिंग प्रोग्राम करते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी को अभी से पानी के संरक्षण के लिए तैयार किया जा सके।
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इसके अलावा, वह जैविक खेती भी कर रहे हैं। साढ़े तीन एकड़ ज़मीन में उन्होंने साढ़े तीन हज़ार पेड़-पौधे लगाए हुए हैं। वह कहते हैं कि उनका उद्देश्य किसानों को रसायन मुक्त और मल्टी-क्रॉपिंग का एक मॉडल देना है। हमारे देश में पानी को खराब होने से बचाने के लिए बहुत ज़रूरी है कि किसान जैविक खेती करें। वह कहते हैं कि आगे उनका उद्देश्य एक बकरी फार्म बनाना भी है। वह लोगों को सस्टेनेबल कृषि का लाइव मॉडल देना चाहते हैं!
अयप्पा मसगी के लिए पानी बचाना उनके जीवन का सिद्धांत, उद्देश्य और लक्ष्य है। वह ताउम्र इस राह पर चलते हुए लोगों को इस अभियान से जोड़ना चाहते हैं। द बेटर इंडिया, भारत के इस 'जल-योद्धा' को सलाम करता है और हमें उम्मीद है कि बहुत से लोगों को उनसे प्रेरणा मिलेगी।
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अगर आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें ayyappa@waterliteracyfoundation.com या फिर info@waterliteracyfoundation.com पर ईमेल कर सकते हैं!