राजस्थान के एक छोटे से गांव बिसलपुर में रहते हैं, चाय की दूकान चलाने वाले काना राम मेवाड़ा। उनकी दुकान में स्टूल से लेकर टेबल जैसी कई चीजें प्लास्टिक वेस्ट से बने ईको-ब्रिक से बनी हैं। इतना ही नहीं हर दिन ढेरों बच्चे, बूढ़े, यहाँ तक की गांव के पास जवई डेम घूमने आए टूरिस्ट भी उन्हें प्लास्टिक वेस्ट देने आते हैं, ताकि वे साथ मिलकर एक प्लास्टिक मुक्त गांव बना सकें।
पिछले एक साल से वह अपने गांव को सिंगल यूज़ प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए यह अभियान चला रहे हैं। यह उनकी बेहतरीन पहल का ही नतीजा है कि आज उनके गांव के लोग सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इधर-उधर फेंकने के बजाय, रीसायकल के लिए देते हैं।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की 2019-20 में आई एक रिपोर्ट की मानें, तो हमारे देश में साल भर में 3.5 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट निकलता है, जो आने वाले न जाने कितने सालों तक लैंडफिल में ही रहने वाला है।
ऐसे में भारत ही नहीं दुनियाभर में फैली इस गंभीर समस्या का उपाय किसी और से मांगने या सरकार पर निर्भर रहने के बजाय, काना राम ने खुद की जिम्मेदारी पर प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने के लिए काम करना शुरू किया।
कैसे की प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने की पहल की शुरुआत?
एक छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाले काना राम ने अपने गांव में वह कर दिखाया है, जो देश के कई शहरों की नगरपालिकाएं करोड़ों रुपयों के कैम्पेन और प्लानिंग के ज़रिए भी कर नहीं पाईं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए काना राम कहते हैं, “हमारे गांव के दिलीप कुमार जैन, जो मुंबई में एक एनजीओ से जुड़े हैं, उन्होंने ही मुझे उनकी एनजीओ की मदद से प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने की पहल को शुरू करने का आइडिया दिया था। हमने सिर्फ एक-दो किलो प्लास्टिक वेस्ट कलेक्ट करने से इस काम की शुरुआत की थी।”
शुरुआत में वह अपनी चाय की दुकान से ही सिंगल यूज़ प्लास्टिक वेस्ट जमा करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने गांव के लोगों और स्कूल के बच्चों को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। समय बीतता गया और अधिक से अधिक लोग इससे जुड़ते गए।
प्लास्टिक वेस्ट देकर बदल में ले जाएं ये चीज़ें
काफी ज्यादा लोगों को प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने की इस पहल से जुड़ता देख, काना राम ने अलग तरह की स्कीम शुरू करने के बारे में सोचा और आज जो भी उनके पास प्लास्टिक वेस्ट लेकर आता है, काना राम बदले में उसे कुछ न कुछ ज़रूर देते हैं।
एक किलो प्लास्टिक के बदले यहां शक्कर, एक पौधा या 25 रुपये मिलते हैं। उनका गांव प्रसिद्ध जवई डैम के पास है, जहां सालभर कई टूरिस्ट आते रहते हैं, जो अपने साथ काफी मात्रा में प्लास्टिक वेस्ट भी ले आते हैं।
इसी कारण उनके गांव के पास के जंगल, ज़मीन और नदी का पानी प्लास्टिक वेस्ट से गंदा होता जा रहा था, लेकिन आज काना की प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने की मुहिम इतनी लोकप्रिय हो गई है कि यहां के सभी टूरिस्ट गाइड, सैलानियों को प्लास्टिक फेंकने के बजाय जमा करने को कहते हैं।
काना, हर महीने तकरीबन 50 किलो सिंगल यूज़ प्लास्टिकवेस्ट जमा करते हैं, जिसे वह ख़ुद तो रिसाइकल करते ही हैं, साथ ही इसे शहर की रीसाइक्लिंग कंपनी को भी भेजते हैं।
एक अकेले काना के प्रयास से जब इतना बड़ा बदलाव आ सकता है, तो ज़रा सोचिए हम सभी प्रयास करें, तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता?
संपादनः अर्चना दुबे
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