बुंदेलखंड: हर साल पड़ता था सूखा, गांववालों ने एक महीने में बना दिए 260 कुएं

गांव में कुल 11 कुएं हैं जो हर साल अप्रैल में सूख जाते थे। यही हाल हैंडपंप के साथ भी होता था। 57 हैंडपंपों में से, लगभग 25 काम करना बंद कर देते थे और मानसून के समय ही फ़िर चालू होते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।

बुंदेलखंड: हर साल पड़ता था सूखा, गांववालों ने एक महीने में बना दिए 260 कुएं

बुंदेलखंड का बांदा जिला - एक ऐसी जगह जहाँ हर साल सूखा पड़ता था, और महिलाएं दूर-दूर तक पानी के लिए भटने को मजबूर थीं। पर अब इस जिले के बरसाना बुजुर्ग गांव की 64 वर्षीया सुरतिया के घऱ से केवल 300 मीटर की दूरी पर एक हैंडपंप है। हर दिन यहीं से सुरतिया देवी पानी लाती हैं। इस गांव में लगे कुल तीन हैंडपंपों में से यह एक है, जो सुरतिया के घर से सबसे करीब है।

“अप्रैल का महीना है और अभी भी यह हैंडपंप काम कर रहा है। पिछले साल के जैसे सूखा नहीं पड़ा है, और हमें पानी मिल रहा है,” सुरतिया ने कहा।
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बरसाना बुजर्ग गांव में कुल 350 परिवार हैं। बांदा के अन्य गांवों की तरह यहां भी जल संकट एक बड़ी चुनौती रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं और तालाब भूजल के मुख्य स्त्रोत होते हैं लेकिन पिछले साल तक, अप्रैल महीना आने तक या तो वे सूख जाते थे या उनमें पानी की गुणवत्ता बिगड़ जाती थी। बोरवेल भी ज्यादातर ग्रीष्मकाल में सूख जाते थे। पर अब प्रशासनिक नेतृत्व में, बांदा के निवासियों द्वारा बड़े पैमाने पर चलाया गया 'कूआं तालाब जियाओ अभियान' बुंदेलखंड की भीषण ग्रीष्म इलाके में सफल होता दिखाई दे रहा है।

‘कुंआ तालाब जियाओ’ अभियान

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प्रशासनिक सहयोग से बांदा जिले की जनता ने ‘कुंआ तालाब जियाओ’ नाम से एक अभियान की शुरूआत की। इस अभियान में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिसका असर अब देखने को मिल रहा है। यहां के लोगबाग ने प्राकृतिक जल स्त्रोतों की रक्षा करते हुए, पीने के पानी और भूजल में वृद्धि लिए इस अभियान का खूब साथ दिया है।

जिले के सभी ग्राम-पंचायतों में जल-चौपाल बनाये गए हैं जो ग्राम-पंचायत स्तर पर कुओं और आसपास की सफ़ाई से लेकर वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) की उचित प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करते हैं। जिले के ग्रामीण भागों के निवासी अपने-अपने गाँवों में कुओं की सफाई और वर्षा जल संचयन को लागू करने के लिए स्वेच्छा से कार्य कर रहे हैं।

इस अभियान का पहला चरण पिछले साल पूरा हुआ था, जिसे दिसंबर 2019 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी जगह मिली।

पहले चरण में 2,605 तालाब छोटे तालाबों की मरम्मत और खुदाई, 2,183 हैंड पंप और 470 ग्राम पंचायतों में 260 कुओं को एक महीने के भीतर जिले में बनाया गया था (26 फरवरी से 25 मार्च, 2019 के अंतराल में)।

जल चौपाल

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समुदाय के लोगों का कहना है कि वे अब भी उन हैंडपंपों के पानी का उपयोग कर रहे हैं जो पिछले साल मार्च ख़त्म होते ही सूख जाते थे। यह सब मुमकिन हो पाया है बेहतर प्लानिंग और स्थानीय लोगों की सहभागिता से। ग्राम पंचायत स्तर पर जिलावासी 'जल चौपाल' का संचालन करते हैं और गर्मी के साथ आनेवाले पानी की कठिनाइयों पर चर्चा की जाती है।

यह सामुदायिक सहभागिता वाला अभियान है जो पिछले साल प्रशासनिक मार्गदर्शन के साथ शुरू हुआ था। कुछ गैर सरकारी संगठन भी समुदाय को मजबूत बनाने में शामिल हैं। इसकी शुरुआत तत्कालीन डीएम (बांदा) श्री हीरालाल ने की थी।

प्रत्येक जल-चौपाल में एक मुखिया सहित पंद्रह सदस्य होते हैं। हर मुखिया अपने संबंधित ग्राम-पंचायत क्षेत्र में जागरूकता फैलाने के लिए जिम्मेदार होता है।
ग्राम पंचायत महुए के जल-चौपाल मुखिया, मलखी श्रीवास बताते हैं कि कैसे सामूहिक रूप से परिवर्तन लाने के लिए बांदा के हर ग्राम पंचायत में लोगों ने मेहनत की है और यह जन- जन का अभियान है।

Bundelkhand Water Conservation
Bundelkhand Water Conservation

मलखी बताते हैं, “हमारे गांव के कुएं सूखे तो थे ही साथ ही उसमें लोगों ने कूड़ा फ़ेक कर ऊपर तक भर दिया था। तो सबसे पहले इन्हीं सब ग्राम वासियों ने मिलकर इसकी पूरी तरह सफ़ाई की। इस 70 फीट गहरे कुएं की सफाई करना बड़ा काम था। इसके बाद हमने वर्षा जल संचय पर काम किया। हमें वर्षा जल संचय के लिए भी प्रशिक्षित किया गया। हमने अपने छतों को निकटतम कुएं से जोड़ा। पिछले वर्ष तक बरसात का जो पानी बर्बाद होता था वह अब ग्रामीणों द्वारा बचाया जा रहा है।”

गांव में कुल 11 कुएं हैं जो हर साल अप्रैल में सूख जाते थे। यही हाल हैंडपंप के साथ भी होता था। 57 हैंडपंपों में से, लगभग 25 काम करना बंद कर देते थे और मानसून के समय ही फ़िर चालू होते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।

2019 में अभियान की हुई थी शुरुआत

वर्ष 2019 में ‘कुंआ तालाब जियाओ’ अभियान की शुरुआत करने वाले बांदा के तत्कालीन जिला अधिकारी हीरालाल बताते हैं, "इसका उद्देश्य जिला निवासियों को जल संकट से बचाने के साथ ही आत्मनिर्भर बनाए रखने का था। भूमिगत जल का जीवन बनाए रखने के लिए पारंपरिक कुएं और तालाब को जीवंत रखने का महत्व लोगों को बताया गया था। उन्हें सिर्फ सही सलाह और मार्गदर्शन की जरूरत थी और हमने वही किया। सही जानकारी के साथ ज़रूरी सुविधा प्रदान कर जल संरक्षण के बारे में जानकारी दी और आज परिणाम सबसे सामने है।"

हर घर ने वर्षा जल संचय का महत्व समझा है। गांव के 11 में से 11 कुएं पिछले साल सूख गए थे। तब लोगों को धार्मिक तरीके से भी कुओं से जोड़ा गया। बांदा के गांवों में पानी भरने का काम अधिकतर महिलाओं का होता है लेकिन हिन्दू महिलाओं को प्रसव के बाद 12 दिनों तक पानी भरने जाने की अनुमति नहीं है। 13 वें दिन जब वे कुएं की पूजा कर लें, तब ही वहां से पानी भरना शुरू कर सकती हैं। जल-चौपाल के लोगों ने महिलाओं को समझाया कि माँ और बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुएं का साफ सुथरा रहना ज़रूरी है।

'कुआं तालाब जियाओ अभियान' दूसरे चरण में है। इस अभियान का पहला चरण 'भूजल बचाओ, पेयजल बचाओ' अभियान पिछले वर्ष पूरा हुआ था। अभियान को दिसंबर 2019 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी स्थान मिला था। बांदा के निवासियों के लिए आशा की एक किरण के साथ अभियान का दूसरा चरण जारी है। जल-चौपाल द्वारा मासिक बैठकें आयोजित की जाती हैं। कुछ गैर सरकारी संगठन भी इस अभियान के लिए काम कर रहे हैं।

अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान जैसे गैर सरकारी संगठन लगातार इस अभियान के लिए काम कर रहै हैं।

[मलखी श्रीवास से 78970 22375 पर बात की जा सकती है]


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