केरल के कोड़िकोड में मायनाड निवासी प्रकाशन तटारी, साल 2008 में बतौर सेल्स टैक्स अफसर रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद, अक्सर लोग घूमने-फिरने की योजना बनाते हैं। लेकिन प्रकाशन ने रिटायरमेंट के बाद अपने बचपन के शौक को पूरा करने की ठानी। उन्हें बचपन से ही मशीनों से एक अलग तरह का लगाव रहा है। मशीनों को जानना, समझना और कुछ नया बनाना, उनका शौक रहा है। आज इसी शौक के चलते, उनका नाम आविष्कारकों की सूची में दर्ज हो रहा है।
साल 2008 से प्रकाशन, लगातार किसानों के लिए तरह-तरह की मशीनें बना रहे हैं। उनके इलाके में ज्यादातर नारियल और सुपारी की खेती होती है। नारियल और सुपारी (Areca nut) के पेड़ बहुत ज्यादा लम्बाई तक बढ़ते हैं और इनमें फल भी बहुत ऊंचाई पर लगते हैं। फलों की कटाई (हार्वेस्टिंग) के लिए किसान या तो खुद पेड़ पर चढ़ते हैं या मजदूर लगाते हैं। यह प्रक्रिया बहुत मेहनत और खतरे वाली भी होती है। साथ ही, पलायन के चलते अब किसानों को कटाई के लिए मजदूर मुश्किल से मिलते हैं।
किसानों की इन प्रकाशन ने इस बारे में कुछ करने की ठानी। पिछले 12 सालों में उन्होंने 10 से ज्यादा छोटी-बड़ी मशीनें बनाई हैं। प्रकाशन कहते हैं, “मुझे हमेशा से कुछ न कुछ बनाते रहने का शौक है। नौकरी के दौरान ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं मिला। लेकिन रिटायरमेंट के बाद मैंने अपने विचारों पर काम करना शुरू किया। मैंने किसानों के लिए नारियल और सुपारी की कटाई करने के लिए यंत्र बनाएं हैं। साथ ही, नारियल और सुपारी की ‘डीहस्किंग’ (भूसा अलग करने) के लिए भी मशीन बनाई है। इन सबके लिए मैंने अपनी बचत के पैसों को इस्तेमाल किया है।”
प्रकाशन ने अब तक जितनी भी मशीनें बनाई हैं, उनमें से ‘वंडर क्लाइंबर’ को सबसे ज्यादा सफलता मिली है। इस मशीन के लिए उन्हें सबसे ज्यादा ऑर्डर और एक पुरस्कार भी मिला है।
वंडर क्लाइंबर:
‘वंडर क्लाइंबर’ के बारे में प्रकाशन बताते हैं, “यह एक ऐसा यंत्र है, जिससे किसान बिना पेड़ पर चढ़े ही सुपारी की कटाई कर सकते हैं। साल 2012 में मैंने इस पर काम किया था और कई ट्रायल्स के बाद, यह मशीन तैयार हुई। मैंने किसानों के साथ मिलकर, उनके खेतों में इसकी टेस्टिंग की। जब यह मशीन हर टेस्ट में पास हो गई, तब मैंने इसके लिए पेटेंट भी फाइल करवाया।”
वंडर क्लाइंबर को सबसे पहले सुपारी के पेड़ से बाँधा जाता है। फिर, इसे रस्सी की मदद से खींचकर ऊपर पहुँचाया जाता है। इसके ऊपर के सिरे पर सुपारी को तोड़ने के लिए ब्लेड जैसा यंत्र लगाया गया है। साथ ही, सुपारी को पकड़ने के लिए ‘पिकर’ भी लगाया गया है। यह डिवाइस ऐसे बनाया गया है कि किसान नीचे खड़े रह कर ही, रस्सियों की मदद से इसे नियंत्रित कर सकता है।
इस तरह, किसानों को सुपारी की कटाई के लिए मजदूर नहीं खोजने पड़ते हैं और इस डिवाइस में उन्हें सिर्फ एक बार इन्वेस्ट करना पड़ता है। इसके बाद सालों तक वह इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
बहुत बार, पेड़ों पर फल की कटाई के लिए चढ़ने वाले लोग दुर्घटना का भी शिकार हो जाते हैं। लेकिन यह डिवाइस, इस परेशानी को भी हल कर रहा है। प्रकाशन ने सबसे पहले इस डिवाइस को अपने आस-पास के किसानों को इस्तेमाल करने के लिए दिया और आज उनके 3000 वंडर क्लाइंबर किसानों तक पहुँच चुके हैं।
वंडर क्लाइंबर में ही थोड़ा-सा बदलाव करके, उन्होंने एक ‘स्प्रेयर डिवाइस’ (छिड़काव यंत्र) भी बनाया है। इसकी मदद से किसान सुपारी के पेड़ों पर तरल कीट प्रतिरोधक या कोई अन्य तरह की तरल खाद आसानी से छिड़क सकते हैं। प्रकाशन बताते हैं, “वंडर क्लाइंबर के लिए मुझे केरल सरकार से 2020 में ‘बेस्ट इनोवेशन’ अवॉर्ड मिला है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। क्योंकि, इस तरह के सम्मानों से काफी हौसला बढ़ता है और विश्वास भी कि हम, सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”
छह सालों से प्रकाशन का ‘वंडर क्लाइंबर’ इस्तेमाल कर रहे, कोड़िकोड के 66 वर्षीय किसान सदानंदन बताते हैं, “पहले मुझे मजदूरों से जुड़ी काफी समस्यायें होती थी। वे आसानी से काम पर नहीं आते थे। इसी वजह से, कई बार फसलें भी खराब हुई है। लेकिन जब से मैंने प्रकाशन से वंडर क्लाइंबर लिया है, मैं अपने सभी काम खुद कर लेता हूँ। मेरे खेत में सुपारी के लगभग 100 पेड़ हैं, जिनकी कटाई इस मशीन से चार से पांच दिन में हो जाती है। एक दिन में, मैं इससे 20 से 25 पेड़ों की कटाई कर पाता हूँ।”
सदानंदन के मुताबिक, प्रकाशन का वंडर क्लाइंबर किफायती भी है। क्योंकि इसमें आपको सिर्फ एक बार इन्वेस्ट करना है और फिर आपको बार-बार खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही, किसानों के समय की भी काफी बचत होती है।
बनाए हैं और भी डिवाइस:
प्रकाशन द्वारा किये गए आविष्कारों में, ‘केरा पिकर’ (Kera Picker), ‘कोकोनट कटाई रोबोट’ (Coconut Harvesting Robot), ‘केरा हस्क रिमूवर’ (Kera Husk Remover), ‘रेमो स्प्रेयर’ (Remo Sprayer), ‘अडक्का पोलियन’ (Adakka Poliyan) और मच्छर भगाने वाली मशीन आदि शामिल हैं। वह कहते हैं कि उनकी कोशिश हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहने की है। ‘केरा पिकर’ का मूलरूप (प्रोटोटाइप), उन्होंने साल 2010 में तैयार किया था। लेकिन यह पूरी तरह से 2013 में बनकर तैयार हुआ। इस डिवाइस से किसान बिना पेड़ों पर चढ़े, नारियल की कटाई कर सकते हैं। लेकिन उनके इस डिवाइस को ज्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसलिए, उन्होंने इसे बड़े स्तर पर नहीं बनाया।
वह कहते हैं, उन्होंने जो भी आविष्कार किये हैं, उसके लिए खुद ही पैसे लगाये है। इसलिए, जिस डिवाइस के लिए उन्हें लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली, उस पर उन्होंने आगे काम किया। वंडर क्लाइंबर के लिए उन्हें न सिर्फ भारत से बल्कि दूसरे देशों से भी लोगों ने संपर्क किया है।
लेकिन डिवाइस की निर्यात से जुड़ी प्रक्रियाओं को लेकर, वह बहुत ज्यादा जागरूक नहीं हैं। इसलिए, फिलहाल वह अपने डिवाइस का निर्यात नहीं कर रहे हैं। वह कहते हैं, “इस तरह की चीजों के लिए अगर हमें प्रशासन से कोई मदद मिले तो अच्छा होगा। हमें निर्यात कार्य संबंधी क्षेत्रों की ज्यादा जानकारी नहीं है। ऐसे में, अगर प्रशासन का थोड़ा भी सहयोग मिलेगा तो हम काफी आगे बढ़ सकेंगे।”
अगर आप प्रकाशन से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें t.prakasan2008@yahoo.com पर ईमेल कर सकते हैं।
संपादन – प्रीति महावर
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