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जब तमिलनाडु सरकार ने प्लास्टिक की जगह कपड़े की थैली को बढ़ावा देने के लिए 'मीनदम मंजप्पई' योजना की शुरुआत की, तब कोयम्बटूर के कल्याण कुमार ने इस अवसर को रोजगार में बदलने के लिए एक अनोखी पहल की। उन्होंने अपनी खुद की फैक्ट्री में एक ऐसी मशीन बनाई जो कई तरह की ईको-फ्रेंडली कटलरी बनाती है।
इसे बनाने के लिए वह सिर्फ बायो वेस्ट का इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि चावल, गेहूं की भूसी, मूंगफली के छिलके, इमली के बीज, केले के पत्ते आदि। कल्याण की एक ही मशीन इन सभी वेस्ट को बेहतरीन प्रोडक्ट्स में बदल देती है।
पढ़ाई छूटी तो किया आविष्कार
एक समय पर किसी पारिवारिक परेशानी के कारण कल्याण अपनी BBA की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे। बाद में उन्होंने अपने पिता की छोटी-छोटी मशीन बनाने की फैक्ट्री में काम काम करना शुरू किया।
साल 2017 में उन्हें प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर एक मशीन बनाने का ख्याल आया। उस समय पर मात्र एरेका के पत्तों से ही ज़्यादातर लोग प्लेट्स बनाते थे। लेकिन कल्याण ने एक कदम आगे बढ़कर दूसरे वेस्ट को भी इस्तेमाल करने की शुरुआत की।
उनकी बनाई मशीनों की कीमत 3 लाख से लेकर 35 लाख रुपये तक है। कल्याण का कहना है कि छोटी मशीनें लीवर कंट्रोल के साथ मैनुअल होती है, जिसमें रोज़ 1,000 से अधिक चाय के कप बनाए जा सकते हैं। वहीं महंगी मशीन पूरी तरह से स्वचालित है और प्रतिदिन इससे चाय के 10000 कप बनाए जा सकते हैं।
आज कल्याण खुद हर महीने चाय के 10 लाख कप बेच रहे हैं। उनका मानना है कि यह मात्र एक शुरुआत है। वो आने वाले समय में दूसरों को भी इसकी ट्रेनिंग देना चाहते हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसका इस्तेमाल करें और हर जगह लोगों के पास प्लास्टिक का एक ईको-फ्रेंडली विकल्प मौजूद रहे।
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