मिलिए उत्तर प्रदेश के चिरोड़ी गांव के 25 वर्षीय मास्टर सचिन बैंसला से, जिन्हें एक समय पर स्टार्टअप शुरू करने के लिए ढेरों ताने सुनने पड़े थे। लेकिन आज उनका पूरा गांव उन्हीं के नाम से जाना जाता है। पढ़ें, इस युवा के सफलता की कहानी।
51 वर्ष की किरण स्वामी कोटा में शिवशक्ति ब्रांड के नाम से अन्नपूर्णा गृह उद्योग चलाती हैं, जिसके माध्यम से वह 10 से ज्यादा हर्बल शरबत, बिना सिरके वाले 16 तरह के आचार, खट्टी-मीठी हर्बल नींबू चटनी, 13 तरह के मसाले बनाकर बेचती हैं।
कॉरपोरेट करियर छोड़कर, सोनिया आनंद ने ओडिशा के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहनेवाले आदिवासियों के लिए 'मोंक एंड मेइ' नाम के कपड़ों के ब्रांड की शुरुआत की, जिसने इस क्षेत्र में रह रहे लोगों की जिंदगी तो बदल ही दी, साथ ही आज करोड़ों में कमाई भी कर रहा है।
गुरुग्राम की रहने वालीं 64 वर्षीय वीणा मल्होत्रा ने बिमारी के बाद बालों की समस्या को देखते हुए अपना हेयर ऑयल बनाना शुरू किया। कई जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से प्राकृतिक हेयर ऑयल बनाकर आज वह अपना बिज़नेस चला रही हैं।
62 वर्षीय स्मिता सुरेंद्रनाथ ब्लागन ने अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद अपने उस सपने पर ध्यान दिया जिसे वह हमेशा से पूरा करना चाहती थीं। उन्होंने गोवा के सिरिदाओ में लेक व्यू रेस्टोरेंट शुरू किया है।
कोरोनाकाल में नौकरी जाने और पिछले साल ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी का पता चलने के बाद भी, अहमदाबाद के मिलिन वाढेर ने हिम्मत हारने के बजाय अपनी पत्नी के साथ एक नई शुरुआत की है। पढ़ें, उनके टिफिन सर्विस बिज़नेस के बारे में।
पेशे से इंजीनियर, हरियाणा के रहनेवाले 28 वर्षीय नीरज शर्मा पिछले दो सालों से ‘मिट्टी, आप और मैं' नाम से अपना बिज़नेस कर रहे हैं। इसके ज़रिए वह अपने गांव के कुम्हारों को रोज़गार देने के साथ-साथ, आम लोगों तक केमिकल फ्री मिट्टी के बर्तन पहुंचा रहे हैं।
अहमदाबाद का ‘सिस्टर्स किचन' में तीन बहनें मात्र 90 रुपये में भर पेट खाना खिला रही हैं। पढ़ें, कैसे उन्होंने अपने पिता की याद में इस बिज़नेस की शुरुआत की।
मेरठ के रहनेवाले मनीष भारती, अपने गाँव से ‘भारती मिल्क स्पलैश' ब्रांड नेम के साथ शहरभर में दूध बेच रहे हैं। इसके साथ ही, वह एक कैफ़े और ऑर्गेनिक स्टोर भी चलाते हैं। पढ़ें कैसे, MBA की पढ़ाई के बाद गाँव में रहकर ही उन्होंने बनाई अपनी पहचान।
चाय का सफल बिज़नेस चला रहे आलप्पुष़ा (केरला) के रहनेवाले, फैज़ल यूसुफ़ के पिता का कम उम्र में ही निधन हो गया था और उन्हें 12वीं में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद, वह अख़बार बांटने का काम करने लगे। कुछ सालों बाद उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया, जिसने उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी।