यदि आपको दक्षिण भारतीय व्यंजन पसंद है तो यकीन मानिए यह कहानी भी आपको पसंद आएगी। यह कहानी दिल्ली के एक ऐसे दंपति की है, जिन्होंने विदेश की नौकरी छोड़कर देश में फूड बिजनेस की शुरूआत की है। फूड बिजनेस में भी यह दंपति कुछ अलग ही कर रहे हैं, इन्होंने ट्रक को अपना फूड आउटलेट (Food Truck Business) बनाया है, जिसे लेकर वह दिल्ली के अलग-अलग इलाके निकल जाते हैं लोगों को लजीज दक्षिण भारतीय व्यंजन परोसने।
ज्योति गणपति और सत्या कोनिकी पिछले 8 वर्षों से अपना फ़ूड बिज़नेस चला रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनका आउटलेट कोई फिक्स नहीं है बल्कि वह एक फ़ूड ट्रक चलाते हैं, जिसे उन्होंने नाम दिया Dosa Inc.
अपने इस सफ़र के बारे में ज्योति ने द बेटर इंडिया को बताया, “बचपन की बात है, शायद मैं 5 साल की थी, जब पहली बार एक बड़े से सज-धजे ट्रक को देखा था। मुझे आज भी वह ट्रक याद है। हालांकि तब यह ख्याल नहीं आया था कि कभी अपना भी ट्रक होगा। ऐसे ही जब मैं बड़ी हुई तो एक सपना देखने लगी कि किसी मार्केट में अपना भी एक डोसा स्टॉल हो। यह सपना तब पूरा हुआ जब मेरी शादी हुई, दरअसल मेरे पति भी फूड बिजनेस में कुछ करना चाहते थे।”
ज्योति ने अमेरिका से ग्रैजुएशन किया और फिर ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में अपनी मास्टर्स पूरी करके अपने पिता का बिज़नेस संभालने लगीं। दूसरी तरफ उनके पति सत्या ने टेलीकॉम में मास्टर्स की हुई है और उन्हें भी अमेरिका और भारत की अच्छी कंपनियों के साथ काम करने का अनुभव है। कई सालों तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने के बाद, सत्या और ज्योति ने अपने खाना बनाने के पैशन पर काम करने की ठानी। बस फिर क्या था, साल 2012 में उन्होंने अपना फ़ूड ट्रक, Dosa Inc शुरू किया।
सत्या और ज्योति ने दिल्ली के अलकनंदा इलाके से अपनी शुरूआत की और पहले ही दिन 30 किलो बैटर के बनाए मेदु वड़ा मात्र 3 घंटे में बेच डाला। इस दंपति ने अपने बिजनेस में एक नियम बनाया कि वह खुद ग्राहक के पास जाएंगे और इसमें फूड ट्रक ने उनका साथ दिया। इस नियम को फॉलो करते हुए वह अबतक नोएडा, दिल्ली और गुरुग्राम में लगभग 50 हज़ार ग्राहकों तक दक्षिण भारतीय व्यंजन पहुँचा चुके हैं। इस फूड बिजनेस से अबतक उनकी कमाई 1.5 करोड़ रूपये हुई है।
डोसा इंक के मेनू में क्या-क्या है
उनके मेनू में रवा डोसा, प्याज टमाटर उत्तपम, मेदू वडा, फिल्टर कॉफ़ी बंदकई वेपुदु, मालाबार पराठा और तेंगोज़ल लड्डू बर्फी शामिल है। दोनों पति-पत्नी अपने फ़ूड ट्रक को रेजिडेंशियल सोसाइटी, ऑफिस कॉम्पलेक्स की ओर ले जाते हैं। ज्योति बतातीं हैं कि ट्रक को जहाँ भी पार्क करते हैं उस इलाके में होम-डिलीवरी की सुविधा भी दी जाती है।
सत्या बताते हैं, “अपना फ़ूड स्टार्टअप शुरू करना हमारी ज़िंदगी का सपना था। हम रेस्तरां भी शुरू करना चाहते थे लेकिन उसमें काफी परेशानियां थीं जैसे सही जगह चुनना और इन्वेस्टमेंट ज्यादा थी। विदेशों में फ़ूड ट्रक काफी कॉमन हैं लेकिन यहाँ पर नहीं। भारत में फ़ूड ट्रक का जो कांसेप्ट है वह एक ही जगह इसे पार्क करके लोगों को सर्व करने का है। लेकिन हम इससे आगे कुछ करना चाहते थे।”
सत्या ने बताया कि किचन सेटअप करने में तकरीबन एक लाख रुपये का खर्च हुआ। वह कहते हैं, “फ़ूड ट्रक सेटअप करना अच्छा खाना बनाने से कहीं ज्यादा मुश्किल काम है। वाहन की देखभाल करना उतना ही ज़रूरी है जितना कि अच्छा खाना बनाना।”
सत्या ने पहले एक टैम्पो ट्रैवलर खरीदा था लेकिन यह बहुत ज्यादा भारी थी और इसमें सभी चीजों को रखकर ट्रेवल करना काफी मुश्किल था। इसलिए उन्होंने CNG से चलने वाला टाटा ऐस खरीदा। यह इको-फ्रेंडली भी है तो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। उन्हें एक शहर से दूसरे शहर जाने में बॉर्डर क्रॉस करते वक़्त ग्रीन फी भी नहीं देनी पड़ती है, जो 800 रुपये होती है।
इसके बाद उन्होंने सांबर और चटनी बनाने के लिए बेस किचन सेटअप किया। इसके बारे में ज्योति बतातीं हैं, “हमने एक सामान्य ट्रक खरीदा और फिर इसे फ़ूड ट्रक में तब्दील कर दिया। ट्रक का साइज़ और बाकी सभी चीजें इस बात पर निर्भर करतीं हैं कि आप कैसा खाना बनाने वाले हैं और ट्रक का उद्देश्य क्या है- आप इसे इधर-उधर लेकर जाएंगे या फिर सिर्फ एक जगह पार्क करके काम करना है। बेस किचन वह जगह होती है, जहाँ ज़्यादातर कुकिंग और क्लीनिंग का काम किया जाता है। यह किसी कमर्शियल जगह पर होना चाहिए और थोड़ी शांत जगह हो सकती है कम किराए वाली।”
ज्योति कहतीं हैं कि यदि आपके पास फूड ट्रक (Food Truck Business) है तो फिर आपको परमिट, लाइसेंस आदि की भी जरूरत होगी। इसके आलावा आपको अपने राज्य के मोटर वाहन संबंधित नियमों की भी जानकारी रखनी होगी, जिसमे फायर डिपार्टमेंट से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट, वाहन परमिट, GST रजिस्ट्रेशन, हेल्थ ट्रेड लाइसेंस शामिल हैं। उन्होंने बताया कि यदि आपके बिजनेस का टर्नओवर 10 लाख रुपये से अधिक है तो FSSAI का सर्टिफिकेट लेना होगा।
मार्केटिंग की रणनीति
ज्योति और सत्या ने आपना फूड बिज़नेस उस जमाने में शुरू हुआ था जब फ़ूड डिलीवरी एप नहीं हुआ करतीं थीं। लोग ऑनलाइन ऑर्डर करने में कतराते थे। ऐसे में उन्होंने अपनी मार्केटिंग के लिए पेम्पलेट छपवाए और खुद लोगों को बांटे। जिसमें उनका मेनू और अलग-अलग इलाके में आने का उनका समय लिखा हुआ था। आगे चलकर उन्होंने हर एक इलाके में कुछ सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर चुने, जो उनके मेनू को सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर पोस्ट करते थे। साथ ही ट्रक को अच्छे से सजाना और साफ़-सफाई का ख़ास ख्याल रखना उनकी मार्केटिंग का दूसरा तरीका था।
ज्योति ने ग्राहकों का विश्वास बनाए रखने के लिए दो बातों पर ध्यान दिया, एक तो उन्होंने ग्राहकों से पर्सनल लेवल पर रिश्ता बनाया और साथ ही, वह उनकी हर छोटी-बड़ी परेशानी को समझती थीं। खाने में नमक कम रखना, सांबर की मात्रा कम-ज्यादा करना- इन छोटी-छोटी बातों का भी उन्होंने ध्यान रखा। शायद इसी वजह से मात्र 6 महीने में उन्होंने 800 परिवारों का भरोसा जीत लिया और वह उनके नियमित ग्राहक बन गए। आज लगभग 200 इलाकों में हजारों परिवार उनके ग्राहक हैं।
उनकी एक ग्राहक, पूजा मंशानी को उनके खाने का स्वाद और क्वालिटी, दोनों ही इतनी पसंद है कि वह साउथ इंडियन डिश सिर्फ उनके यहाँ से ऑर्डर करतीं हैं।
पूजा बतातीं हैं, “दो साल पहले की बात है। मैंने डोसा इंक ट्रक देखा को वडा ट्राई किया। उनकी क्वालिटी और क्वांटिटी हमेशा एक जैसी रहती है और उनके स्टाफ के सभी 16 सदस्य हमेशा सर पर कैप और हाथों में ग्लव्स पहनते हैं।”
लॉकडाउन के दौरान तो उन्होंने साफ़-सफाई को लेकर और भी सतर्कता बरती जैसे उन्होंने मास्क और फेस शील्ड पहनकर काम किया।
ज्योति और सत्या ने नए क्षेत्रों में काम शुरू किया है। कैटरिंग से लेकर सोशल इवेंट्स और मैराथन आदि में वह सर्वइन करते हैं। पिछले साल उन्होंने साउथ इंडियन स्नैक्स भी शुरू किये जिनमें मुरुक्कू, साउथ इंडियन मिक्सचर, लड्डू, मैसूर पाक, नारियल बर्फी जैसे उत्पाद शामिल हैं। इन स्नैक्स से उन्होंने लॉकडाउन में भी कमाई की है। ये स्नैक्स उनके ट्रक (Food Truck Business) पर बिकते हैं और कॉल करके भी आप आर्डर कर सकते हैं।
इसके साथ-साथ उन्होंने अब इको-फ्रेंडली कटलरी इस्तेमाल में लेना शुरू किया है। वह पेपर बॉक्स में पैक करके देते हैं और ट्रक पर खाने वालों को पत्तल में डिश परोसी जाती है और पेपर कप में सांबर और चटनी। इतने सालों में उनकी ग्रोथ रेट 35% तक बढ़ी है। लेकिन इस सबके साथ उन्होंने बहुत सी मुश्किलों का सामना भी किया है।
ज्योति कहतीं हैं, “मुश्किलें आज भी हैं। हमें परमिट और सेफ्टी प्रोटोकॉल के प्रति काफी सजग रहना पड़ता है। नगरपालिका के साथ डील करना भी आसान काम नहीं है और काफी पेपरवर्क भी होता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अब मैं मोटर वाहन नियमों में एक्सपर्ट हो गई हूँ।”
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संपादन- जी.एन. झा
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