परमवीर चक्र से सम्मानित कारगिल के ये दो जांबाज़ आज भी कर रहे है देश की सेवा!

सूबेदार योगेंद्र यादव और नायब सुबेदार संजय कुमार ने साल 1999 के कारगिल युद्ध के बाद परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले वे अफसर यहीं जो आज भी सेना में सेवारत हैं। यादव उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और कुमार हिमाचल प्रदेश से।

ब एक सैनिक अपने कर्तव्य के लिए कुछ भी कर-गुजरता है, तो यह केवल चंद पलों का निर्णय होता है। जिसमें वह केवल अपने देश के बारे में सोचता है।

ऐसा ही कुछ कर दिखाया था, देश के दो सिपाही, सूबेदार योगेंद्र यादव और नायब सुबेदार संजय कुमार ने साल 1999 के कारगिल युद्ध में। ये दोनों भारतीय सेना के वो अफसर हैं, जो परमवीर चक्र से सम्मानित होने के बाद, आज भी सेना में सेवारत हैं।

यादव केवल 19 वर्ष के थे जब उन्हें परमवीर चक्र मिला। देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा उनके खून में था। उनके पिता भी एक सैनिक थे और मात्र 16 वर्ष की उम्र में यादव को भारतीय सेना के एक पैदल सेना रेजिमेंट ‘द ग्रेनेडियर’ में भर्ती किया गया था।

कारगिल के युद्ध के दौरान कुमार केवल 23 वर्ष थे और 13 जैक राइफल्स में तैनात थे।

इन दोनों सैनिकों ने खतरनाक परिस्थितियों में भी अविश्वसनीय बहादुरी दिखाई और बर्फीली चोटीयों और घाटियों में अपने मिशन को अंजाम दिया।

साल 1999 में गर्मियों की बात है। यादव अपनी शादी के लिए 5 मई को अपने घर, बुलंदशहर आए थे और 20 मई को अपनी यूनिफार्म में बटालियन में शामिल होने के लिए लौट आए। इन सैनिकों को पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा कब्जे में ली गयी टोलोलिंग पीक को हासिल करने का आदेश दिया गया था।

फोटो: सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव

इस घटनाक्रम में मात्र 21 दिनों में भारतीय सेना ने अपने दो अधिकारियों, दो जूनियर कमीशन अधिकारी और 21 जवानों को खो दिया था।

हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए यादव ने कहा कि मौत तो जैसे बहुत आम बात हो गयी थी।

18 ग्रेनेडियर के साथ वे ‘घातक’ कमांडो पलटन का हिस्सा थे। उनका काम खतरनाक रास्ते तय करके पाकिस्तानी सेना पर हमला करना था। यादव और उनके साथी पहाड़ी की चोटी पर स्थित पाकिस्तानी पोस्ट तक दो रात व एक दिन में पहुंच गए थे।

“हमें आखिरी पड़ाव तक रस्सी की मदद से चढ़ना था। हालाँकि हम बिना कोई आवाज किये आगे बढ़ रहे थे लेकिन कुछ चट्टानों के खिसकने से दुश्मनों को पता चल गया और उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी। सिर्फ हम सात लोग ऊपर तक पहुंच पाए,” यादव ने बताया।

बाद में लड़ाई में, भारतीय सैनिकों ने चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया, और फिर वे उनके बंकरों में छुप गए। पांच घंटे के क्रॉसफायर को सहन करने के बाद, सेना ने बारूद बचाने के इरादे से शांति से छुपकर इंतजार करने का फैसला किया।

पाकिस्तानी जवानों ने उन्हें मृत समझा और उन्हें देखने के लिए बाहर आये। तभी यादव और उनके साथियों ने गोलीबारी करना शुरू कर दिया। उन्होंने अधिकतर पाकिस्तानी सेना को खत्म कर दिया था। लेकिन एक पाकिस्तानी सैनिक बच निकला और अन्य सैनिकों के साथ वापिस आकर, यादव और उनके सैनिकों पर हमला बोल दिया।

सभी सैनिकों में से केवल यादव ही बच पाए। उन्होंने बाकी सभी मृत सैनिकों के बीच मरे होने का नाटक किया। हालाँकि, पाकिस्तानी सैनिक फिर भी गोलियां बरसाते रहे। एक गोली उनके सीने में भी आकर लगी, लेकिन वह उनके जेब में रखे सिक्के से टकरा कर लौट गयी।

यादव ने इसे अपने बचने का इशारा समझा। यादव के शरीर में 18 गोलियां लगी थी और उनके बाएं हाथ की हड्डी टूट गयी थी। लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत करके दुश्मन की तरफ एक बम फेंका। इसके बाद एक नाले में से रेंगते हुए उन्होंने अपने पलटन को आगाह किया।

बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और उन्हें ठीक होने में 16 महीने लगे।

13वें बटालियन, जम्मू-कश्मीर राइफल्स के सैनिक नायब सुबेदार संजय कुमार, 4 जुलाई को मुशकोह घाटी में प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर कब्जा करने के लिए एक सैन्य टुकड़ी के साथ आगे बढ़े।

फोटो: नायब सूबेदार संजय कुमार

कुमार हिमाचली थे और उन्हने पहाड़ों पर चढ़ने की आदत थी। टीम ने चट्टान पर चढ़ना शुरू किया, लेकिन लगभग 150 मीटर की दुरी से दुश्मन के बंकरों ने उन पर मशीन गन से हमला कर दिया।

पर बहादुरी दिखाते हुए कुमार ने अकेले रास्ता पार किया। अपनी परवाह किये बिना वे दुश्मन से लड़े और तीन पाकिस्तानी सिपाहियों को मार गिराया। इस दौरान उन्हें भी काफी चोटें आयी, वे लड़ते रहे। उन्होंने एक बंकर पर चढ़कर दुश्मन पर हमला शुरू कर दिया। उनका खून बहता रहा फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्हें देखकर उनके साथियों  हौसला बढ़ा और उन्होंने दुश्मनों से फ्लैट टॉप को आजाद करा दिया।

इस कारगिल युद्ध ने इन दोनों सिपाहियों की ज़िन्दगी बदल दी। हालाँकि उन्होंने इस युद्ध में अत्यधिक हौंसला और निस्वार्थता का परिचय दिया, लेकिन वे इसे महान नहीं मानते। यादव कहते हैं कि उन्होंने वही किया जो करना चाहिए था।

मूल लेख: रेमंड इंजीनियर


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X