भारतीय इतिहास में गुजरात के खेड़ा जिले का एक खास स्थान है। यहीं की मिट्टी में लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म हुआ था। आगे, यहीं महात्मा गांधी ने अपने दूसरे सत्याग्रह को शुरू किया। ऐतिहासिक श्वेत क्रांति की शुरुआत भी यहीं से हुई, जिसने अमूल ब्रांड को जन्म दिया।
लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि इस जगह का भारत में टेलीविजन प्रसारण में महत्वपूर्ण योगदान था। आइये जानते हैं खेड़ा कम्युनिकेशंस प्रोजेक्ट की एक छोटी-सी कहानी।
दुनिया में टेलीविजन सेवा सबसे पहले, 1936 में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (BBC) द्वारा शुरू की गई। इसके दो दशकों से अधिक समय के बाद, भारत में 15 सितंबर 1959 में दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा टेलीविजन की शुरुआत की गई।
भारत में टेलीविजन की शुरुआत यूनस्को की मदद से हुई। शुरुआती दिनों में, प्रसारण हफ्ते में सिर्फ दो बार एक-एक घंटे के लिए होता था। इस दौरान नागरिक अधिकारों और जिम्मेदारियों, सामुदायिक स्वास्थ्य, यातायात जैसे विषयों को लेकर कार्यक्रम चलाए जाते थे।
दो वर्षों के बाद, इसमें स्कूली बच्चों के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों को भी शामिल किया गया। भारत में टीवी की शुरुआत एक प्रयोग के तौर पर शुरू हुई थी और इसे ऑल इंडिया रेडियो द्वारा संचालित किया जाता था। 1972 में, मुंबई (तब बॉम्बे) में देश का दूसरा टीवी स्टेशन खोला गया।
इसके बाद, 1973 में अमृतसर और श्रीनगर और 1975 में मद्रास, कलकत्ता और लखनऊ में स्टेशन खोले गए। इसके बावजूद, गांवों में रहने वाले लोगों के लिए टीवी अभी भी दूर की कौड़ी ही थी।
हालांकि, अब तक देश के सबसे महान वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले विक्रम साराभाई ने इस दिशा में अपना कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का पितामह माना जाता है।
एक विमान दुर्घटना में डॉ. होमी जहांगीर भाभा के अचानक गुजर जाने के बाद, विक्रम साराभाई को मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष चुना गया। वह संचार, मौसम विज्ञाम और शिक्षा से संबंधित बाधाओं को दूर करने के लिए, स्पेस साइंस की शक्ति का उपयोग करना चाहते थे।
जिस साल वह परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष चुने गए, उसी साल उन्होंने अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से संवाद शुरू कर दिया, जिसके फलस्वरूप सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) के लिए आधार तैयार हुआ।
SITE को 1975 में लॉन्च किया गया था। यह भारत और अमेरिका के बीच, स्पेस साइंस के क्षेत्र में पहली बड़ी साझेदारी थी। यह देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तकनीक का इस्तेमाल का पहला प्रयास भी था। यह भारतीय टेलीविजन के इतिहास का सबसे निर्णायक मोड़ है।
इस प्रयोग के पीछे का मूल आइडिया नासा के पहले डायरेक्ट ब्रॉडकास्टिंग सैटेलाइट का इस्तेमाल कर, टीवी को गांवों तक पहुंचाना था। इस सैटेलाइट में नौ मीटर का एंटीना लगा था, जो अंतरिक्ष में एक छाते की तरह खुला था। सैटेलाइट भले ही विदेशी हो, लेकिन डायरेक्ट रिसेप्शन इक्विपमेंट, टीवी सेट और कार्यक्रमों को सैटेलाइट तक अपलिंक करने के लिए अर्थ स्टेशन को भारत में बनाया और डिजाइन किया गया था।
इसी कांसेप्ट को ध्यान में रखते हुए, खेड़ा कम्युनिकेशंस प्रोजेक्ट को SITE के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीविजन प्रसारण के लिए सबसे पहले खेड़ा जिले के सुदूरवर्ती गांव पिज (Pij) को चुना गया।
इसके बाद, यहां संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा दिए गए लो पावर ट्रांसमीटर और एक प्रोडक्शन स्टूडियो को स्थापित किया गया। जबकि, अहमदाबाद के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (SAC) में एक सैटेलाइट अर्थ स्टेशन को स्थापित किया गया। परियोजना के तहत, 35 किलोमीटर के दायरे में 400 गांवों में 651 टीवी सेट वितरित किए गए थे।
आखिर इंतजार का लम्हा जुलाई 1975 की एक उमस भरी शाम में खत्म हुआ। पिज में सौ से अधिक ग्रामीण एक मैदान में जमा हो गए और सभी निगाहें एक लकड़ी के बक्से पर एक खाली कांच की स्क्रीन पर टिकी थीं।
तभी थोड़ी खड़खड़ाहट की आवाज आई और ऑडियो-विजुअल के साथ स्क्रीन जीवंत हो गई। इसमें स्थानीय भाषा में लोगों से जुड़े मुद्दों की चर्चा हो रही थी। ग्रामीण हैरान थे और उनके लिए यह किसी जादू से कम नहीं था। यह पल पूरी जिंदगी उनके साथ रहने वाली थी।
खेड़ा संचार परियोजना का सफर इस यादगार लम्हें के साथ ही खत्म नहीं हुआ। इसने एक ऐसे मॉडल को जारी रखा, जो विकास योजनाओं को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने में प्रभावी हो।
इसे लेकर अहमदाबाद के इसरो कैम्पस में कई वैज्ञानिक, इंजीनियर, लोक संस्कृति विशेषज्ञ और फिल्म निर्माता जमा हुए। यह वास्तव में कुछ ऐसा था, जिसे दुनिया के किसी स्पेस एजेंसी में पहले कभी नहीं देखा गया।
स्वतंत्र और एजेंसी, दोनों क्षेत्र के प्रोड्यूसरों ने खेड़ा के कई गांवों का दौरा किया और स्थानीय कलाकारों के जरिए स्थानीय सामाजिक मुद्दों को शूट किया। लोगों के साथ इस जुड़ाव ने इस परियोजना को अलग और प्रभावी बना दिया।
उदाहरण के तौर पर, साप्ताहिक कार्यक्रम ‘दाद फरियाद’ एक खास समस्या पर आधारित था और इसमें ग्रामीण से बात करने के बाद प्रभावी समाधान के लिए सरकारी अधिकारी से भी चर्चा की जाती थी। इसी तरह ‘हवे ना सहेवा पाप’ संवेदनशील मुद्दों पर आधारित एक और धारावाहिक था, जिसमें उच्च जाति के किसानों द्वारा हरिजनों के शोषण को लेकर जागरूकता पैदा की गई।
खेड़ा कम्युनिकेशंस प्रोजेक्ट द्वारा टीवी कार्यक्रमों के प्रभाव को समझने और आंकने पर भी काफी जोर दिया गया। ग्रामीण टीवी से जैसे-जैसे परिचित होने लगे, लोगों ने इसे आसानी से स्वीकार कर लिया। स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के अध्ययनों से पता चला कि इस परियोजना के तहत जिन गांवों को कवर किया गया, वहां दूसरे गांवों की अपेक्षा लोग अधिक जागरूक थे।
उदाहरण के तौर पर, इम्यूनाइजेशन के विषय में एक कार्यक्रम प्रसारित किया गया। इस शो को देखने वाले 96 फीसदी ग्रामीणों को, इम्यूनाइजेशन के फायदों के बारे में पता था। जबकि, नहीं देखने वाले सिर्फ 24 फीसदी लोगों को इस विषय में जानकारी थी।
खेड़ा कम्युनिकेशंस प्रोजेक्ट को एक साल के लिए प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया था और 1976 में इसे बंद कर दिया जाता, लेकिन भारी सफलता को देखते हुए इसे अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया और आगे बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे छह राज्यों के दूर-दराज के गांवों में इसका विस्तार करते हुए सामुदायिक टीवी सेट स्थापित किए गए। इसके तहत स्वास्थ्य, खेती और शैक्षिक कार्यक्रम चलाए जाते थे।
1984 में, इस परियोजना को रूरल कम्यूनिकेशन इफिशिएंसी के लिए यूनेस्को पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हालांकि, 1985 में अहमदाबाद में दूरदर्शन की फुल फ्लेज्ड फैसिलिटी शुरू होने के बाद होने के बाद, पिज ट्रांसमीटर को दूसरे चैनल के लिए चेन्नई ले जाने का फैसला हुआ। लेकिन, स्थानीय लोगों को यह फैसला मंजूर नहीं था और उन्होंने इसका पूरा विरोध किया। उनका इस ऐतिहासिक ट्रांसमीटर से इतना लगाव हो गया कि उन्होंने इसके लिए ‘पिज टीवी केंद्र बचाओ’ आंदोलन भी शुरू कर दिया था।
इन विरोधों के बावजूद, 1 किलोवाट ट्रांसमीटर टावर को 1990 में चेन्नई ट्रांसफर कर दिया गया। खेड़ा के जिस जमीन पर यह ट्रांसमीटर लगा था, आज वहां सब्जियों की खेती होती है और पिज के बूढ़े-बुजुर्गों के लिए बस सुनहरी यादें रह गई हैं।
हालांकि, खेड़ा कम्यूनिकेशंस प्रोजेक्ट (पूर्ण रूप से SITE) के दूरगामी प्रभाव को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। इस परियोजना ने न केवल ग्रामीण भारत में रहने वाले लाखों भारतीयों के जीवन को छुआ है और सकारात्मक दिशा दी है, बल्कि दुनिया को आजाद भारत के तकनीकी विकास का एक खास संदेश भी दिया है।
मशहूर साइंस फिक्शन लेखक आर्थर क्लार्क ने 2015 में SITE की 40वीं वर्षगांठ पर इसे विश्व इतिहास का सबसे बड़ा संचार प्रयोग बताया।
मूल लेख – संचारी पाल
संपादन- जी एन झा
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