भारत ने कोविड-19 का अपना पहला टीका बनाया है, जिसे 15 अगस्त तक लॉन्च करने की तैयारी भी की जा रही है। लेकिन आज हम आपको बताएँगे कि कौन हैं इसे बनाने वाले शख्स।
भारत में यह वैक्सीन हैदराबाद स्थित कंपनी भारत बायोटेक द्वारा बनाई जा रही है। COVAXIN नाम से बनने वाली इस वैक्सीन को मानव क्लीनिकल परीक्षण की अनुमति मिल गई है। देश में कोविड-19 वैक्सीन का निर्माण करने वाली यह कंपनी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सहयोग से इस टीके को तैयार करने के प्रयास में लगी है।
यह वही फर्म है जिसने दुनिया का सबसे सस्ता हेपेटाइटिस वैक्सीन बनाया था और पहली कंपनी थी जिसने दुनिया में सबसे पहले जीका वायरस के टीका की खोज की थी।
खेती से जैव प्रौद्योगिकी ( बायोटेक्नोलोजी ) तक
इस फर्म की शुरुआत डॉ. कृष्णा एला ने की थी जिनका जन्म तमिलनाडु के थिरुथानी के एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। कृष्णा अपने परिवार से पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कृषि के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी यानी बायोटेक्नोलॉजी की दुनिया में कदम रखा।
वर्तमान में डॉ. कृष्णा भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (भारत बायोटेक) के चेयरमैन और मैनेजिंग डॉयरेक्टर हैं। रेडिफ के साथ एक साक्षात्कार में डॉ कृष्णा ने बताया कि उन्होंने कृषि की पढ़ाई की और शुरूआत में उनकी योजना खेती करने की थी। लेकिन आर्थिक दबाव के कारण वह एक केमिकल और फार्मास्यूटिकल्स कंपनी, बायर के साथ जुड़ गए। वहाँ वह कृषि प्रभाग का हिस्सा थे। यह वह समय था जब उन्हें हंगर फेलोशिप के लिए स्कॉलरशिप मिली और वह पढ़ने के लिए अमेरिका चले गए।
हवाई विश्वविद्यालय में अपने मास्टर्स और विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद 1995 में कृष्णा भारत लौट आए।
इसी इंटरव्यू में डॉ. कृष्णा ने बताया कि उनका भारत लौटने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन उनकी माँ की इच्छा थी कि वह भारत लौट आएँ और जो काम करना चाहते हैं वह यहीं करें। वह कहते हैं, “इसलिए मैं एक सस्ती हेपेटाइटिस वैक्सीन बनाने की व्यावसायिक योजना के साथ भारत वापस आया क्योंकि भारत में इसकी भारी मांग थी।”
कृष्णा ने अपने पास मौजूद चिकित्सा उपकरणों के साथ हैदराबाद में एक छोटी लैब स्थापित की और यही भारत बायोटेक की शुरुआत थी। कंपनी ने 12.5 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट प्रस्ताव पेश किया जिसमें हेपेटाइटिस टीके की दर 1 डॉलर थी जबकि बाकी कंपनियों की यही वैक्सीन 35 और 40 डॉलर थी।
उन्होंने बताया कि उन्हें उतना फंड नहीं मिला जितनी उन्होंने उम्मीद की थी। आखिरकार उन्होंने आईडीबीआई बैंक का रुख किया, जिसने उन्हें 2 करोड़ रूपये का फंड दिया। केवल चार वर्षों में उन्होंने यह वैक्सीन तैयार कर ली, जिसे 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा लांच किया गया था।
कंपनी ने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के लिए प्रति खुराक 10 रुपये की कीमत पर 35 मिलियन खुराक की आपूर्ति की और 65 से अधिक देशों में कुल 350-400 मिलियन खुराक की आपूर्ति की।
जीनोम वैली – मेडिकल दुनिया को दे रहा है भारत का पहला कोविड-19 वैक्सीन
1996 में, कृष्णा एला ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के सामने प्रदूषणकारी उद्योगों के बिना बायोटेक नॉलेज पार्क स्थापित करने का एक विचार रखा था।
जल्द ही उन्हें नॉलेज पार्क – जीनोम वैली बनाने के लिए आंध्र प्रदेश इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन से स्वीकृति और ज़मीन, दोनों मिल गई।
पार्क के रूप में स्थापित होने वाला पहला उद्योग भारत बायोटेक का हेपेटाइटिस वैक्सीन प्लांट था। इसके बाद आईसीआईसीआई नॉलेज पार्क आया। आज की तारीख में यहाँ 100 से भी ज़्यादा ज्ञान-आधारित उद्योग हैं, जिनमें नोवार्टिस इंडिया लिमिटेड, बायर बायोसाइंसेज जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लेकर भारतीय दिग्गज, आईटीसी भी शामिल है।
वह कहते हैं, “भारत में जहाँ तक बायोटेक पार्क का सवाल है, जीनोम वैली बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। इसने ऐसे पार्कों के बारे में सोचा है जो अब बेंगलुरु और पुणे में देखे जाते हैं।”
डॉ. कृष्णा आगे कहते हैं कि ज्ञान आधारित उद्योगों में पहला, दूसरा और तीसरा स्थान मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को दिया जाता है क्योंकि भारत में किए गए अकादमिक शोध में जनता की समस्याओं को उचित महत्व नहीं दिया जाता है। वह कहते हैं, “यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ हमें ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”
भारत बायोटेक
भारत बायोटेक अब ‘पहली’ कंपनी बन गई है जिसने प्रिजर्वेटिव-फ्री वैक्सीन (Revac-B mcf हेपेटाइटिस B वैक्सीन) बनाई है। इसी कंपनी ने भारत की पहली सेल-कल्चरल स्वाइन-फ्लू वैक्सीन भी लॉन्च की है और दुनिया की सबसे सस्ती हेपिटाईटिस वैक्सीन का निर्माण भी यही कंपनी करती है। इतना ही नहीं यह जीका वायरस का टीका खोजने वाली दुनिया की पहली कंपनी भी है। वैश्विक स्तर पर, कंपनी ने कुल 3 बिलियन वैक्सीन की आपूर्ति की है।
डॉ. कृष्णा को 100 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें 2013 में बायो स्पेक्ट्रम पर्सन ऑफ द ईयर, यूनवर्सटी ऑफ विस्कॉन्सिन डिस्टिंग्विश्ट एलुमिनी अवार्ड (2011), बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर 2011 और 2008 में भारत के प्रधानमंत्री से सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी और नवाचार पुरस्कार शामिल हैं।
डॉ कृष्णा कहते हैं, “जब कंपनी टीके को आम आदमी के लिए सस्ती कर देती है तो अक्सर गुणवत्ता के साथ समझौता होने का आरोप लगता है लेकिन हम इस विश्वास के साथ टीका बनाते हैं कि टेक्नोलोजी आम आदमी तक पहुंचनी चाहिए और किसी भी नागरिक को स्वास्थ्य सेवाओं के समाधान से वंचित नहीं होना चाहिए। यही कारण है कि मेरी कंपनी सस्ती दर पर कई टीकों का उत्पादन करने में सक्षम रही है।”
जबकि दुनिया कोविड-19 का जवाब ढूंढने में लगी हुई है, हमें गर्व है कि भारत बायोटेक एक टीका लेकर आया है। हमें उम्मीद है कि महामारी को समाप्त करने में सभी वैज्ञानिकों के प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
मूल लेख-SERENE SARAH ZACHARIAH
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