मिट्टी-लकड़ी से बना चुकी हैं 250+ घर, देश-दुनिया के आर्किटेक्ट को जोड़ने के लिए शुरू की पहल

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सवनीत ने इमारत आर्किटेक्ट के तहत पिछले 26 वर्षों के दौरान मिट्टी, लकड़ी, बांस आदि जैसे प्राकृतिक संसाधनों से 250 परियोजनाओं को पूरा किया है।

पंजाब के करनाल में रहने वाली सवनीत कौर ने 26 वर्ष पहले अपनी आर्किटेक्चर फर्म “इमारत आर्किटेक्ट” की शुरूआत की थी। इसके तहत उनका उद्देश्य 2 टियर के शहरों में आर्किटेक्टचर जैसे विषय को आम लोगों तक पहुँचाना है। 

चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर से पढ़ाई करने वाली सवनीत ने द बेटर इंडिया को बताया, “साल 1994 में पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैं चंडीगढ़ में ही कुछ अपना शुरू करना चाहती थी। लेकिन, इसी साल मेरी शादी होने के बाद मैं करनाल में बस गई और मैंने वहीं कुछ करने का विचार किया।”

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सवनीत कौर

वह आगे बताती हैं, “मैंने करनाल में देखा कि लोगों को आर्किटेक्चर के बारे में कुछ नहीं पता है। लोग घर बनाने के लिए काफी पैसे खर्च कर रहे हैं, लेकिन घरों की प्लानिंग अच्छी नहीं होती थी। इससे मुझे लगा कि यहाँ काफी बेहतर किया जा सकता है।”

सवनीत ने अपने फर्म का नाम ‘इमारत’ अपने पिता के सुझाव पर रखा, जिनका मानना था कि कंपनी का नाम ऐसा हो, जिससे लोग जुड़ाव महसूस करें। 

इसके साथ ही, सवनीत को अपनी कंपनी को शुरू करने में अपने पति, भवनीत की पूरी मदद मिली। पेशे से एक सिविल इंजीनियर भवनीत, कंपनी के तकनीकी विषयों को संभालते हैं।

साल 1994 से अब तक, सवनीत इमारत आर्किटेक्ट के तहत 250 से अधिक प्रोजेक्ट कर चुकी हैं। इसके साथ ही, उनकी कंपनी में फिलहाल 20 से अधिक लोग काम करते हैं। वह छात्रों और युवा आर्किटेक्ट को काफी कुछ नया सीखा रही हैं।

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आईसीईए स्टूडियो करनाल

खास बात यह है कि सवनीत शुरू से ही घरों को मिट्टी, लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों से बनाने के साथ-साथ, सोलर पैसिव तकनीक का उपयोग करती रही हैं, जिससे कि घर को हर मौसम के अनुकूल बनाने में मदद मिलती है और घर में एसी-कूलर आदि जरूरत न के बराबर होती है।

इस बारे में वह कहती हैं, “सोलर पैसिव तकनीक के तहत हम, धूप और हवा के अनुसार अपनी संरचनाओं को तय करते हैं। इससे घर को गर्मी के मौसम में ठंडा रखने और ठंडे में गर्म रखने में मदद मिलती है।”

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सोलर पैसिव तकनीक से घर बनाती हैं सवनीत

बता दें, जब साल 2001 में इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (IGBC), भारत में लॉन्च हुआ था, तो सवनीत इसमें शामिल होने और योगदान देने वाली सबसे पहली आर्किटेक्ट में से एक थी। इसके अलावा, टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (TERI) के साथ मिलकर काम करते हुए, इमारत आर्किटेक्ट्स, उत्तर भारत में ग्रीन कंसल्टेंसी का अभ्यास करने वाली सबसे अग्रणी कंपनियों में से एक रही है।

2006 से दीदी कांट्रेक्टर के साथ काम कर रही हैं सवनीत

सवनीत, जर्मन-अमेरिकी वास्तुकार और प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित, डेलिया नारायण “दीदी” के साथ साल 2006 से काम कर रही हैं। इस दौरान उन्होंने कई उल्लेखनीय परियोजनाओं को अंजाम दिया है। जैसे – सम्भावना इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज, धर्मालय इंस्टीट्यूट ऑफ कम्पैशनेट लिविंग। 

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धर्मालय इंस्टीट्यूट ऑफ कम्पैशनेट लिविंग

सवनीत बताती हैं, “इन संरचनाओं को स्थानीय कांगड़ा शैली में मिट्टी और अन्य प्राकृतिक वस्तुओं से बनाया गया है, जो पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ सीमेंटे से बने घरों के मुकाबले काफी किफायती भी है।”

अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए की आईसीईए की स्थापना

युवा वास्तुकारों और छात्रों को सस्टेनेबल ऑर्किटेक्चर के विषय में जानकारी देने के लिए सवनीत ने करनाल में इमारत सेंटर फॉर अर्थ आर्किटेक्चर (ICEA) की स्थापना की।

इसके बारे में वह बताती हैं, “आईसीईए के तहत हमारा उद्देश्य कला, वास्तुकला और जीवनशैली को आधार बनाते हुए वास्तुकला के संदर्भ में सामाजिक व्यवहार को सकारात्मक दिशा में बदलने के साथ-साथ सतत जीवन को बढ़ावा देना है।”

मिट्टी, बाँस और लकड़ी से निर्मित है आईसीईए

वह बताती हैं, “आईसीईए की संरचना को हरियाणा के स्थानीय शैली में विकसित किया गया है। भवन को बनाने में रेतीली मिट्टी से बने ईंटों का इस्तेमाल किया गया है, जिसे धूप में सूखा कर बनाया गया। साथ ही, छत को बनाने के लिए शीशम की लकड़ी, बांस और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध घासों का उपयोग किया गया है।”

सवनीत कहती हैं कि पंजाब-हरियाणा में बाहरी वास्तुकला का काफी प्रभाव है, लेकिन हमने अपनी संरचना में यहाँ की परंपरागत वास्तुकला को  पुनर्जीवित करते हुए उसे आधुनिक रूप दिया। इन्हीं कारणों से साल 2014 में इसे पीएलईए (पैसिव और लो एनर्जी आर्किटेक्चर) के तहत इसे 165 देशों के 350 परियोजनाओं में 5 सर्वश्रेष्ठ ‘ग्रीन’ परियोजनाओं में से एक चुना गया।

देश-दुनिया के वास्तुकारों को जोड़ने के लिए शुरू की पहल

सवनीत ने लगभग 2 वर्ष पहले ‘ग्रीन आर्किटेक्चर’ को बढ़ावा देने के लिए अपने एक और उद्यम ‘मिसाल’ (माटी इंनिसिएटिव फॉर सस्टेनेबिलिटी इन आर्किटेक्चर, एग्रीकल्चर एंड लाइफ स्टाइल) की शुरूआत की।

इसके बारे में वह कहती हैं, “हम इसके तहत ईको-विलेज, हॉलिस्टिक हिलिंग सेंटर, कलास्थान आदि जैसी कई परियोजनाओं पर कार्य कर रहे हैं। इसमें संरचनाओं को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से बनाया जा रहा है।”

उन्होंने कहा, “मिसाल के तहत हमारा उद्देश्य देश-विदेश के वास्तुकारों का एक बड़ा नेटवर्क बनाना और सतत वास्तुकला को बढ़ावा देना है। क्योंकि, ज्यादातर वास्तुकार छोटे-छोटे पैमाने पर काम करते हैं और उन्हें सतत वास्तुकला के विषय में कोई ठोस जानकारी नहीं है।” 

सवनीत बताती हैं कि मिसाल की कोर टीम में पारुल ज़वेरी (अभिराम आर्किटेक्ट्स), लारा के डेविस (ऑरोविले अर्थ इंस्टीट्यूट), एंड्रिया क्लिंग (जेडआरएस आर्किटेक्ट्स, बर्लिन), मार्क मूर (यूएसए) और दीदी कॉन्ट्रैक्टर भी शामिल हैं।

कैसे आया ‘अकेडमिक दुनिया’ में आने का विचार

सवनीत, वास्तुकला के संबंध में कई विश्वविद्यालयों में अपने व्याख्यान दे चुकी हैं। इसके साथ ही, वह व्यक्तिगत स्तर पर भी, बेहद मामूली शुल्क पर छात्रों को सतत विकास और वास्तुकला की ट्रेनिंग देती हैं।

सतत वास्तुकला में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए आईआईए से सम्मानित हो चुकी हैं सवनीत

इसे लेकर वह कहती हैं, “ऑफिस चलाते-चलाते मैंने सस्टेनेबल डेवलपमेंट में मास्टर्स किया। इस दौरान, मुझे मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सतत विकास की जरूरतों का अहसास हुआ और मैंने तय किया कि समाज में एक बदलाव की शुरूआत होनी चाहिए, जिसमें भारतीयता का भाव हो।”

क्या कहती हैं भारतीय वास्तुकला के संदर्भ में

समकालीन भारतीय वास्तुकला को लेकर सवनीत कहती हैं, “ब्रिटिश राज शुरू होते ही हम अपनी वास्तुकला को भूलने लगे। आज हम जिन तकनीकों से अपना घर बना रहे हैं, वह यहाँ के जीवनशैली और भौगोलिक परिस्थितियों के विपरीत है। शायद यही कारण है कि भूकंप के हल्के झटके के बाद भी, घर में दरार पड़ जाती है। आज हमें अपने व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है। साथ ही, स्थानीय भाषाओं, खासकर हिन्दी में वास्तुकला के ज्ञान को बढ़ावा देने की जरूरत है।”

यदि आप सवनीत के काम के बारे में विस्तार से जाना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।

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