अगर लाला लाजपत राय ने नहीं किया होता यह काम, तो आज भी गुलाम होता भारत

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने पंजाब के कई युवाओं की प्रेरणा थे, उनकी मौत का बदला लेने अंग्रेजों से लड़ पड़े थे भगत सिंह।

Lala lajpat rai

21 साल के भगत सिंह ने अपने दोस्त,  सुखदेव और राजगुरु के साथ  मिलकर अग्रेजों के खिलाफ ऐसी योजना बनाई कि अंग्रेजी ऑफिसर सार्जेंट सांडर्स की मौत के साथ-साथ देश की संसद भी हिल गई। 

अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जिस एक मौके की तलाश भगत सिंह को थी, वह मौका उन्हें लाला लाजपत राय की मौत ने दे दिया। भले ही अपने आप को नास्तिक कहने वाले भगत सिंह और आर्य समाज में मानाने वाले लाला लाजपत राय के विचारों में मतभेद था। लेकिन आजाद देश के सपने उनदोनों ने एक जैसे ही देखे थे।  

लाला जी के व्यक्तित्व से जहां पंजाब का हर एक युवा प्रभावित था, ऐसे में भगत सिंह भी उनको अपना गुरु ही मानते थे। 

एक सफल वकील, प्रतिष्ठित आर्यसमाजी, शिक्षाविद, पहले स्वदेशी 'पंजाब नेशनल बैंक' की स्थापना करने वाले और हिंदी-उर्दू-पंजाबी भाषा का उत्थान करने वाले, ये सारे लाला जी के व्यक्तित्व के कई सारे पहलू हैं। इन्हीं में से एक पहलू वह है, जिसने भगत सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की शक्ति भी दी।

बात साल 1928 की है। तब तक लाला लाजपत राय वकालत छोड़कर आजादी की लड़ाई का हिस्सा बन चुके थे। इसी साल अंग्रेजों ने भारत में अपने कानून में सुधार लाने के लिए साइमन कमीशन बनाया। संवैधानिक सुधारों के तहत 1928 में अंग्रेजों का बनाया साइमन कमीशन भारत आया। तब इसके विरोध में सबसे पहले लाला जी ही आगे आए। 

Lala Lajpat rai and Bahgat singh

वह जानते थे कि इस कमीशन में एक भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं है इसलिए इससे भारतीयों का भला होना मुमकिन ही नहीं है। 30 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन जब लाहौर पहुंचा तो जनता के विरोध और आक्रोश दिखाने के लिए लाला लाजपत राय के साथ-साथ कई क्रांतिकारियों ने लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही  ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा लगाया। वहां सार्जेंट सांडर्स के नेतृत्व में ब्रिटिश पुलिस ने आंदोलन रोकने की कोशिश की। आख़िरकार अंग्रेजों ने लाठीचार्च करना शुरू कर दिया। 

लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हुए और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 18 दिन तक संघर्ष करने के बाद 17 नवंबर 1928 को उन्होंने आखिरी सांस ली।  

उन्होंने जाते-जाते कई नौजवान क्रांतिकारियों के मन में आक्रोश भर दिया। लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह ने सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर सार्जेंट सांडर्स को मारने की ठानी।  

घायल अवस्था में लाला लाजपत राय के आखिरी शब्द थे -‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।’

और यहीं से होती है भारत में अंग्रेजी हुकूमत के अंत की शुरुआत भी।  

संपादन- जी एन झा

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