महिलाओं के मुद्दों को घर के चूल्हे-चारदीवारी से निकाल, चौपाल तक पहुँचाने वाली बेबाक लेखिकाएं!

द बेटर इंडिया पर, पढ़िए ऐसी कुछ लेखिकाओं के बारे में, जिनकी रचनाओं ने स्त्री के मुद्दों को घर के चूल्हे और चारदीवारी से निकालकर पुरुष-प्रधान चौपाल तक पहुँचा दिया। इनमें कृष्णा सोबती, अमृता प्रीतम, मृदुला गर्ग, कमला भसीन, इस्मत चुग़ताई, अनुराधा बेनीवाल और चित्रा देसाई जैसे नाम शामिल होते हैं!

मिल बहनें लेंगी- आज़ादी
मिल बच्चियाँ लेंगी- आज़ादी
हिंसा से लेंगी- आज़ादी
अत्याचार से लेंगी- आज़ादी
हम मौन से लेंगे- आज़ादी
बलात्कार से लेंगे- आज़ादी
आने-जाने की हो- आज़ादी
हंसने-गाने की हो- आज़ादी
सब-कुछ कहने की हो- आज़ादी
निर्भय रहने की हो- आज़ादी
है प्यारा नारा- आज़ादी
हम सबका नारा- आज़ादी
नारी का नारा- आज़ादी

– कमला भसीन

एक कवयित्री और स्त्री-पुरुष समानता की प्रतिनिधि, कमला भसीन का मानना है कि हमें समाज में लड़का-लड़की के भेदभाव को ख़त्म करने के लिए शिक्षा में ख़ास बदलाव करने होंगे। इसके लिए वे नए सिरे से बच्चों के लिए ऐसी कविताएँ और कहानियाँ लिख रही हैं, जो उन्हें लिंग-भेद से निकालकर इंसानियत का रास्ता दिखलायें। महिलाओं की आवाज़ को बुलंदी से उठाने वाली कमला भसीन अपनी लेखनी के ज़रिए हर बार पितृसत्ता का खंडन करती आई हैं।

उन्होंने कई बार कहा, “डेढ़-सौ सालों से चली आ रही ये लड़ाई मर्दों से नहीं, पितृसत्ता से है, उनसे है जो इसे मानते हैं।”

कमला भसीन

टेलीविज़न सीरीज सत्यमेव जयते के एक एपिसोड में भी उन्होंने बलात्कार के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए कहा था कि जब किसी लड़की का रेप होता है, तो कहते हैं कि इज्ज़त चली गयी। पर एक लड़की की इज्ज़त कैसे चली गयी? समाज से किसने कहा कि वे अपनी इज्ज़त और सम्मान, एक औरत की योनि में रखें?

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हालांकि, नारी और नारी के मुद्दों पर बोलने और लिखने वाली कवियत्री और लेखिकाओं की फ़ेहरिस्त में सिर्फ़ एक कमला भसीन का नाम ही नहीं है। बल्कि अगर ठीक से शोध किया जाए, तो न जाने कितनी लेखिकाओं और महिलाओं पर उनकी लिखी कविता, कहानी, उपन्यास आदि के बारे में पता चले।

आज द बेटर इंडिया पर, पढ़िए ऐसी ही कुछ लेखिकाओं के बारे में, जिनकी रचनाओं ने महिलाओं के मुद्दों को घर के चूल्हे और चारदीवारी से निकालकर, पुरुष-प्रधान चौपाल तक पहुँचा दिया!

कृष्णा सोबती

कृष्णा सोबती

साल 2017 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मशहूर हिंदी लेखिका और निबंधकार कृष्णा सोबती ने देश के विभाजन, धर्म-जाति और ख़ासकर, स्त्रियों के अधिकारों के मुद्दों पर लिखा। सोबती उन चंद नामों में से एक हैं, जिन्होंने महिलाओं के मुद्दों, उनकी ख्वाहिशों, पहचान और उनके अधिकारों पर लिखने की जुर्रत की। उन्होंने जब भी लिखा, बहुत बेबाकी से लिखा।

उनकी लिखी कुछ रचनाएँ, जैसे कि ‘मित्रो मरजानी,’ ‘सूरजमुखी अँधेरे के,’ ‘डार से बिछुड़ी’ आदि स्त्रियों के बारे में निडर होकर बातें करती हैं। कई बार उनकी रचनाओं पर विवाद भी हुआ, क्योंकि एक स्त्री का बेपरवाही से स्त्रियों की ख्वाहिशों और उनकी पहचान के बारे में बात करना, हमारे समाज को नागंवार गुज़रा। पर इन विरोधों से डरकर उनकी कलम कभी नहीं रुकी!

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सोबती ने कभी किसी की परवाह नहीं की और साहित्य में ‘स्त्री-विमर्श’ को एक नया आयाम और मुक़ाम दिया। उनकी लिखी एक लघु कथा, ‘सिक्का बदल गया’ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें!

भारत के बँटवारे की पृष्ठभूमि पर बुनी गयी यह कहानी बहुत ही मार्मिक रूप से एक औरत के दर्द को झलकाती है, जिसे अपना घर-ज़मीन और अपने लोग, सब कुछ छोड़कर सिर्फ़ अपने स्वाभिमान के साथ दहलीज़ के इस ओर आना है। सोबती ने बहुत ही प्रभावी तरीके से एक बूढ़ी औरत के जज़्बातों और दिल के गुबार को शब्दों में उतारा है, जिसे अपनी पूरी ज़िंदगी और ज़िंदगी भर की कमाई पीछे छोड़ कर; एक नई कर्मभूमि बनानी है।

अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम

पंजाबी साहित्य की पहली महिला लेखिका, जिनकी रचनाओं ने उन्हें उन साहित्यकारों की कतार में ला खड़ा किया, जिन्होंने समाज के दोगले चेहरे को अपनी लेखनी के ज़रिए उजागर किया। साहित्य जगत अमृता के जिक्र के बिना अधुरा-सा लगता है।

बँटवारे के दर्द को और उस बँटवारे में तन-मन से कई हिस्सों में बाँट दी गयी महिलाओं के दर्द को उन्होंने ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ कविता में व्यक्त किया।

“सभी कैदों में नज़र आते हैं
हुस्न और इश्क को चुराने वाले
और वारिस कहां से लाएं
हीर की दास्तान गाने वाले…

तुम्हीं से कहती हूँ – वारिस !
उठो ! कब्र से बोलों
और इश्क की कहानी का
कोई नया पन्ना खोलों…

वे पहली लेखिका थीं जिन्होंने ‘पिंजर’ में भारत के बँटवारे की दास्तान एक औरत के नज़रिये से लिखी।

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उनकी बेबाकी न सिर्फ उनके साहित्य का बल्कि उनकी ज़िन्दगी का भी रंग थी। अपनी रचनाओं के साथ-साथ वे अपने निजी जीवन और खुले विचारों के लिए भी मशहूर रहीं। अपने उपन्यास की नायिकाओं की ही तरह, वे खुद भी अपने जीवन में किसी नायिका से कम नहीं थीं। महिलाओं के लिए वे खुद हिम्मत और हौंसले की मिसाल थीं।

‘अमृता प्रीतम’ पर हमारी एक विडियो देखने के लिए क्लिक करें!

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इस्मत चुग़ताई

इस्मत चुग़ताई

उर्दू साहित्य का चौथा स्तंभ कही जाने वाली महान लेखिका इस्मत चुग़ताई को कोई अश्लील कहता रहा, तो कोई बेशर्म; पर इस्मत आपा की लेखनी तो स्त्रियों के अधिकारों और उनकी इच्छाओं को बेपर्दा करती रही।

उन्होंने अपनी कहानियों के ज़रिए समाज को बताया कि महिलाएं सिर्फ हाड़-मांस का पुतला नहीं, उनकी भी औरों की तरह भावनाएं होती हैं। वे भी अपने सपने को साकार करना चाहती हैं।

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इस्मत आपा ने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने उन मुद्दों पर लिखा, जिन्हें बंद कमरों में औरतें हर रोज़ झेलती थी और जिन पर अक्सर शर्म का पर्दा गिरा दिया जाता था। इस्मत ने इन सभी पर्दों को हटाकर अपनी कहानियों की नायिकाओं को कुछ इस तरह गढ़ा, कि वे आम औरतों का चेहरा बन गयीं।

उनकी रचनाओं का बेबाकपन इतना था कि सआदत हसन मंटों ने भी एक बार उनके लिए कहा था कि अगर वे औरत होते तो इस्मत होते या फिर इस्मत मर्द होती तो मंटों होती।

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मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में जन्मी मृदुला गर्ग हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने लगभग 30 किताबें लिखी हैं। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है, जिनमें जर्मन, चेक तथा जापानी भी शामिल हैं।

हालांकि, जब उन्होंने महिलाओं पर लिखा, तो अचानक से उनकी रचनाएँ समाज के लिए अश्लील हो गयीं। साल 1979 में आये उनके उपन्यास ‘चित्ताकोबरा’ ने उन्हें विवाद में खड़ा कर दिया। इस उपन्यास में उनकी नायिका एक शादीशुदा औरत है, जो अपनी शादी से संतुष्ट नहीं है। इस उपन्यास के कुछ पन्नों में उन्होंने बहुत ही स्पष्ट रूप में औरतों की इच्छाएं और उनकी सेक्शुयालिटी पर बात की है।

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इस किताब के लिए मृदुला के ख़िलाफ़ मुकदमा चला, उनकी गिरफ्तारी का आदेश निकला और यहाँ तक कि किताब की कई हज़ार कॉपियों को जब्त कर लिया गया। इस पर बड़ी ही निर्भीकता से मृदुला ने एक बार कहा,

“औरतों को हमेशा ही बस एक जिस्म और एक चीज़ की तरह देखा जाता रहा है, पर औरतें किसी मर्द के लिए, अपने पति के लिए ऐसा नहीं सोच सकती। शायद इसीलिए सब इतने क्रोधित हो गये!”

हालांकि, इस केस के बाद भी उनकी लेखनी कभी नहीं रुकी और वे हर सम्भव तरीके से महिलाओं के अधिकारों की आवाज़ उठाती रही। उनके बारे में अधिक पढ़ने के लिए क्लिक करें!

अनुराधा बेनीवाल

अनुराधा बेनीवाल

हरियाणा की एक लड़की, जो आज स्त्री-स्वतंत्रता की नयी आवाज़ बन रही है। अनुराधा बेनीवाल, एक समय पर भारत की बेहतरीन चैस खिलाड़ी, जिसने अपने गाँव की गलियों से लेकर यूरोप की गलियों तक का सफ़र तय किया और पूरी दुनिया में लड़कियों के लिए ‘आज़ादी’ का ब्रांड बन गयी।

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उनकी यूरोप की यात्रा के अनुभव को उन्होंने एक किताब की शक्ल दी, ‘आज़ादी मेरा ब्रांड’! इस किताब में अनुराधा ऐसे सवालों को उठाती हैं, जिन्हें हर एक आम लड़की अक्सर अपने घरवालों से पूछना चाहती है, पर पूछ नहीं पाती। फिर अपनी यात्रा में वो इन सवालों के जवाब तलाश करती हैं और यूरोप को सिर्फ़ किसी पर्यटक नहीं बल्कि एक स्त्री की आँखों से देखती हैं, एक स्त्री, जो आज़ादी की सांस तलाश रही है।

इस किताब के अंत में उन्होंने हर एक भारतीय लड़की के लिए एक ख़त लिखा है,

“तुम चलना। अपने गाँव में नहीं चल पा रही हो, तो अपने शहर में चलना। अपने शहर में नहीं चल पा रही हो, तो अपने देश में चलना। अपना देश भी चलना मुश्किल करता है, तो यह दुनिया भी तेरी ही है, अपनी दुनिया में चलना। लेकिन तुम चलना….
तुम चलोगी तो तुम्हारी बेटी भी चलेगी और मेरी बेटी भी चलेगी। फिर हम सबकी बेटियाँ चलेंगी। और जब सब साथ-साथ चलेंगी, तो सब आज़ाद, बेफिक्र और बेपरवाह ही चलेंगी। दुनिया को हमारे चलने की आदत हो जाएगी।”

अनुराधा बेनीवाल और उनकी किताब के बारे में अधिक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें!

चित्रा देसाई

चित्रा देसाई

दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने वाली चित्रा का नाम आज की उन लेखिकाओं में शामिल होता है, जो वर्तमान में हिंदी साहित्य को नए किनारे दे रही हैं। उनके कविता संग्रह, ‘शुरू यात्रा’ और ‘सरसों से अमलतास’ काफ़ी प्रसिद्द हैं।

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अगर आज की महिलाओं पर कविताओं की बात की जाए और उन कविताओं में यथार्थ को पिरोना हो, तो आपको चित्रा की कविताएँ ज़रूर पढ़नी और सुननी चाहियें।

इन सभी लेखिकाओं के अलावा भी साहित्य जगत में ऐसे कई और नाम हैं, जिन्होंने महिलाओं और उनके अधिकारों पर लिखा है। उम्मीद है कि इसी तरह लेखक-लेखिकाओं की लेखनी नारी के मुद्दों पर बेबाकी से चलती रहेगी और समाज में बदलाव की नींव बनेगी।

(संपादन – मानबी कटोच)


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