टिहरी गढ़वाल के एक छोटे से गांव भैंसकोटी के रहनेवाले कुलदीप बिष्ट ने बचपन से अपने दादा जी को खेती करते देखा था। हालांकि कुलदीप के पिता एक टीचर हैं, इसलिए वह चाहते थे कि कुलदीप भी पढ़ाई करके कोई नौकरी करें। इसी सोच के साथ उन्होंने कुलदीप को MBA करने के लिए गाज़ियाबाद भेजा।
कुलदीप पढ़ाई के बाद, एक प्रतिष्ठित बैंक में काम भी कर रहे थे। लेकिन खेती के प्रति अपने लगाव के कारण उन्हें हमेशा लगता था कि इस क्षेत्र में कुछ काम करना चाहिए। देहरादून में नौकरी करने के दौरान, उन्होंने अपने इसी विचार को अपने एक दोस्त प्रमोद जुयाल से भी साझा किया।
हालांकि, देहरादून के आस-पास का इलाका मशरूम की खेती(Mushroom Farming) के लिए काफी जाना जाता है, लेकिन साल 2017 तक उनके गांव में ज्यादा लोग इसकी खेती नहीं करते थे। तभी उनके दिमाग में मशरूम की खेती(Mushroom Farming) से जुड़ने का ख्याल आया और उन्होंने खुद की जमा पूंजी लगाकर एक छोटी सी शुरुआत कर दी।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए कुलदीप कहते हैं, “फिलहाल मैं अपने दादाजी के बागान का ध्यान रखने के साथ, मशरूम उगाने और इससे प्रोडक्ट्स बनाने का काम कर रहा हूँ।”
नौकरी के साथ सीखा मशरूम उगाना
कुलदीप के दादाजी पहले सिंचाई विभाग में काम करते थे और बाद में उन्होंने घर पर भी अपनी ज़मीन पर 250 से 300 फलों के पेड़ लगाए थे, जिसकी देखभाल में कुलदीप भी उनका साथ दिया करते थे। नौकरी के दौरान भी वह हमेशा सोचते थे कि कैसे कुछ अपना काम किया जाए। लेकिन घरवालों को मनाना एक बड़ा काम था। साल 2015 से नौकरी करते हुए उन्होंने मशरूम उत्पादन के फायदों के बारे में जाना और नौकरी के साथ ही उत्तराखंड उद्यान विभाग और स्थानीय मशरूम किसानों से ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया।
कुलदीप कहते हैं, “मेरे दोस्त ने इस काम में मेरा साथ दिया और हमने अपनी सेविंग के तक़रीबन 40 हजार रुपये लगाकर काम करना शुरू किया। हमने किराये पर एक कमरा लिया और उस दौरान हम दिन में नौकरी करते थे और रात को खेती।”
पहली ही बार में उन्हें अच्छा उत्पादन मिला, जिससे उनका हौसला और बढ़ गया। उन्होंने करीब एक साल नौकरी के साथ ही मशरूम उत्पादन का काम किया। उन दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं कि कभी-कभी हम ऑफिस से थोड़ा समय निकालकर मंडी में मशरूम बेचने जाया करते थे। धीरे-धीरे हमने बटन, ऑयस्टर मिल्की मशरूम के साथ जैसे गेनोडर्मा, शीटाके (Medicinal Mushroom) कई और किस्मों के मशरूम उगाना और इसकी अलग-अलग जगह से तालीम लेना शुरू किया। आख़िरकार, एक साल बाद उन दोनों ने नौकरी छोड़कर JMD Farms कम्पनी की शुरूआत कर दी।
शुरुआत में घरवालों और दोस्तों ने उनके इस फैसले को गलत भी बताया। लेकिन कुलदीप के दादा को बड़ी ख़ुशी हुई कि उनका पोता खेती से जुड़ रहा है।
मशरूम के प्रोडक्ट्स बनना शुरू किया
जैसे-जैसे उनका काम बढ़ने लगा, उन्होंने देहरादून और टिहरी में भी प्रोडक्शन शुरू किया। फ्रेश मशरूम के अलावा, जो मशरूम बच जाते जाते थे उनसे उन्होंने बाय-प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया।
फ़िलहाल वह मशरूम से अचार, मुरब्बा, बिस्कुट और ड्राई पाउडर सहित कई प्रोडक्ट्स बना रहे हैं और आने वाले दिनों में वह नूडल्स और मशरूम च्यवनप्राश बनाने पर भी विचार कर रहे हैं।
अपने गांव को बना रहें मशरूम गांव
वह मशरूम के अलावा, अपने गांव की बागवानी में कई तरह के फल भी उगा रहे हैं। वहीं अपने प्रोडक्ट्स को वह ‘Fungoo’ ब्रांड नाम के साथ बेच रहे हैं। लॉकडाउन के बाद, उनका काम जब कम हो गया था, तब उन्होंने गांव की महिलाओं को भी ट्रेनिंग देना शुरू किया। उन्होंने यह ट्रेनिंग मुफ्त में ही मुहैया करवाई। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम से उनको काफी फायदा भी हुआ है और गांव में उनका मशरूम किसानों का एक बढ़िया ग्रुप बन गया है। कुलदीप फ़िलहाल इन किसानों से मशरूम खरीदकर बाय-प्रोडक्ट्स बना रहे हैं।
अब तक वह 2500 लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। अभी भी हर हफ्ते वह ट्रेनिंग प्रोग्राम कराते रहते हैं।
कुलदीप कहते हैं, “हमारे प्रोडक्ट्स जल्द ही ऑनलाइन सभी शॉपिंग साइट पर मिलने लगेंगे। लेकिन अभी हमारे प्रोडक्ट्स आर्मी कैंट लैंसडाउन, दिल्ली एयर फ़ोर्स सहित देहरादून और देश के कई राज्यों में बिक रहे हैं। बिना ऑनलाइन सेलिंग के भी हमें इतने ऑर्डर्स मिल रहे हैं कि उन्हें पूरा करना मुश्किल हो जाता है।”
उनके बनाए मशरूम बिस्कुट सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।
मशरूम के बिज़नेस से उन्होंने पिछले साल 40 लाख का मुनाफा कमाया है। कुलदीप अपने गांव को मशरुम गांव बनाने का सपना देख रहे हैं। मशरूम उत्पादन में कुलदीप की माँ भी उनका साथ देती हैं। मार्केटिंग का सारा काम कुलदीप संभालते हैं, जबकि ऑर्डर्स का काम उनके पार्टनर देखते हैं। फिलहाल उनके गांव में 90 लोग मशरूम उत्पादन के काम से जुड़ चुके हैं। आप उनके बिज़नेस के बारे में ज्यादा जानने के लिए उन्हें यहां संपर्क कर सकते हैं। आप उन्हें 9634104201 या 8755897207 पर भी संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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