जानिये कैसे सरकारी नौकरी छोड़, ये इंजिनियर, खेती करके बना करोड़पति !

ज़िन्दगी में अगर कुछ बड़ा हासिल करना हो तो छोटे-छोटे जोख़िम उठाने ही पड़ते है । कुछ ऐसा ही किया एक 24 वर्षीय इंजीनियर हरीश धनदेव ने। इन्होंने 2013 में अपनी अच्छी तनख़्वाह वाली सरकारी नौकरी छोड़ दी और एलोवेरा ( घृतकुमारी ) की खेती करने लगे। आज वह एक कंपनी के मालिक हैं जिसका कारोबार करोड़ो में है।

ज़िन्दगी में अगर कुछ बड़ा हासिल करना हो तो छोटे-छोटे जोख़िम उठाने ही पड़ते है। कुछ ऐसा ही किया एक 24 वर्षीय इंजीनियर हरीश धनदेव ने। इन्होंने 2013 में अपनी अच्छी तनख़्वाह वाली सरकारी नौकरी छोड़ दी और एलोवेरा ( घृतकुमारी ) की खेती करने लगे। आज वह एक कंपनी के मालिक हैं, जिसका कारोबार करोड़ो में है।

से समय में जब भारत जैसे कृषिप्रधान देश में लोगों की कृषि में रूचि कम होती जा रही है, इंजीनियर से किसान बने हरीश धनदेव एक प्रेरणा हैं, उन सभी युवाओं के लिए जो कृषि क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार – भारत में 1270.6  लाख ऐसे किसान हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। और यह आंकड़ा, कुल जनसँख्या का सिर्फ 10% हैं।
नवीनतम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार : 1991 की तुलना में आज 150 लाख किसान (मुख्य कृषक) कम हो चुके हैं और 2001 से 70. 7 लाख कृषक कम हो चुके हैं। औसतन, पिछले 20 सालों से लगभग 2035 किसान प्रतिदिन कृषि छोड़ रहे हैं।
दूसरी ओर एक रिपोर्ट के अनुसार – भारत में करीब 15 लाख छात्र हर साल इंजीनियरिंग कर रहे हैं, जिनमें से 80% बेरोजगारी झेल रहे हैं, पर इसके बावज़ूद , कृषि को कैरियर के विकल्प के तौर पर नहीं अपनाना चाहते हैं।

 

लेकिन हरीश धनदेव एक ऐसे इंजीनियर हैं जिन्होंने कृषि के लिए अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। और आज उनका सालाना कारोबार 1.5 करोड़ से 2 करोड़ रूपए तक का है।

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हरीश धनदेव

हरीश धनदेव के पास जैसलमेर, राजस्थान में 80 एकड़ पैतृक जमीन थी। उनके पिता रूप राम धनदेव को कृषि से काफी लगाव था पर वो अपनी सरकारी नौकरी की वजह से कृषि को ज़्यादा समय नहीं दे पाये।

हरीश ने 2013 में आर्य कॉलेज, जैसलमेर से इंजीनियरिंग में स्नातक किया और उन्हें पहली पोस्टिंग जैसलमेर में ही मिल गयी।
इसी बीच उनके पिता सेवानिवृत हुए और उन्होंने खेती करनी शुरू कर दी। हरीश को भी जब भी समय मिलता, वे अपने पिता की खेत में मदद करते पर उनका इरादा पूरी तरह से खेती में काम करने का नहीं था। पर इस दौरान हरीश ने देखा कि उनके खेत में किसान जी तोड़ मेहनत तो करते है पर उन्हें उसका पर्याप्त फल नहीं मिलता। और ऐसा इसलिए क्यूंकि वे योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं कर रहे थे। उनके काम में मेहनत की तो कोई कमी नहीं थी पर योजना की कमी ही कमी थी।

हरीश बताते हैं, “मुझे उन तीन लकड़हारों की कहानी याद हो आयी, जिन्हें कुल्हाड़ी दे कर 3 घंटे में पेड़ काटने को कहा गया था। उनमें से दो लकड़हारे तुरंत कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटने में जुट गए जबकि तीसरे लकड़हारे ने 2 घंटे तक अपनी कुल्हाड़ी को धार दिया और उसके बाद पेड़ को काटना शुरू किया। और अंत में जीत इसी तीसरे लकड़हारे की  हुयी। काम करने की योजना और प्राथमिकता का क्रम तय करना ज़रूरी है तभी आप उसका मन मुताबिक़ फल पा सकते हैं। जिन कृषकों को मैंने देखा था उनमें इस कौशल की कमी थी। “

धीरे- धीरे जैसे समय बीता, हरीश ने एक इंजीनियर के तौर पर जो नियोजन और कौशल सीखा था उसे खेती में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पर वो अपनी अच्छी तनख़्वाह वाली सरकारी नौकरी छोड़ने में हिचक रहे थे। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था, ऐसे समय में उन्हें अपनी बड़ी बहन अंजना मेघवाल से प्रेरणा मिली।

2 बच्चों की माँ, अंजना ने 2011 में एक कार दुर्घटना में अपने पति को खो दिया। वे खुद भी में 9 महीने तक अस्पताल में रही। पर इन सबके बावज़ूद उन्होंने अपनी ज़िन्दगी को दोबारा शुरू किया। इस हादसे के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा पढाई शुरू की और आज वो जैसलमेर की मेयर हैं।

हरीश कहते हैं, “मेरी बहन मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। मैंने उनसे सीखा है कि यदि आप जोख़िम लेते हैं और अपने उठाये कदम के प्रति समर्पित रहते है, तो निश्चित तौर पर आपको सफलता मिलेगी। “

और आखिर 2013 में, सरकारी नौकरी लगने के करीब 6 महीने बाद ही हरीश ने इस्तीफा दे दिया और अपना सारा समय खेती को समर्पित कर दिया।

 

खेत की मिट्टी का परिक्षण –

हरीश ने खेती की शुरुवात करने से पहले अपनी जमीन की मिट्टी का कृषि विभाग में परीक्षण कराया।

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हरीश बताते हैं, “कृषि विभाग ने सुझाव दिया कि मुझे बाजरा, मूंग और ग्वार जैसी फसलें उगानी चाहिये, क्यों कि इन्हें बढ़ने के लिए कम पानी की ज़रुरत होती है। मेरे खेत में पहले से ही कुछ भाग में अलोवेरा की खेती होती थी पर जैसलमेर क्षेत्र में अलोवेरा के बाज़ार में बिकने की कम सम्भावना होने के कारण उन्होंने एलोवेरा की खेती करने की सलाह नहीं दी।

पर हरीश यही नहीं रुके, उन्होंने शोध किया और पाया कि इस बात की अच्छी संभावनाएं हैं कि अगर वो इसकी बिक्री के लिए ऑनलाइन बिक्री पोर्टल जैसे इंडियामार्ट पर अपना उत्पाद बेचते हैं, तो वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक अपने उत्पाद की बिक्री कर सकते हैं।

 

रोपण

हरीश ने 15 से 20 एकड़ जमीन में एलोवेरा के पौधे लगाये। एलोवेरा के पौधों की लागत ज़्यादा होने की वजह से शुरू में उन्हें काफी निवेश करना पड़ा।

पर जल्द ही पौधों में नए अंकुर फूटे इससे हरीश के लगाये 80,000 पौधों की संख्या बढ़ कर 7 लाख हो गयी।

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हरीश कहते हैं, “किसान अपने सुविधा क्षेत्र से बहार नहीं आना चाहते इसलिए वे पीढ़ियों से उगाई जाने वाली फसलें ही उगा रहे हैं। लेकिन ये एक  बुनियादी नियम होना चाहिए कि हर साल मिट्टी का परीक्षण किया जाये और उसके अनुसार ही ये निर्णय लिया जाए कि किस चीज़ की खेती करनी है।“

 

खाद एवं कीटनाशक

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हरीश अपने खेतों में रासायनिक खाद या कीटनाशक की जगह गाय के गोबर और गौमूत्र से बने प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करते हैं। उनके खेतों को राजस्थान आर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी (ROCA) ने प्राकृतिक होने का प्रमाणपत्र  भी दिया है।

 

एलोवेरा का गुदा (पल्प) निकालना

पहले हरीश एलोवेरा से बनने वाले सामान के विक्रेताओं को अपने एलोवेरा के पत्ते बेच दिया करते थे। पर जल्द ही उन्होंने पता किया कि ये विक्रेता एलोवेरा के गुदे से ये सामग्री बनाते है, जिसकी कीमत पत्तो से कई ज्यादा होती है। इसके बाद हरीश ने गुदा निकालने की प्रक्रिया पर भी शोध किया और इस काम की भी शुरुआत कर दी।

pulp

 

हरीश कहते हैं, “ पल्प ( गूदा ) निकालना एक बहुत ही आसान प्रक्रिया है। यह हाँथों से भी किया जा सकता है इसके लिए किसी मशीन की ज़रुरत नहीं है। बस गूदा निकालते वक़्त सफाई का ख़ास ध्यान रखना होता है।“

 

खेती करने के 6 महीने के भीतर ही, हरीश ने अलोवेरा के पत्ते बेचना बंद कर दिया और अपने खेत के मजदूरों को ही गूदा निकालने का प्रशिक्षण दिया। इससे मजदूरों की कुछ अतिरिक्त आय भी हो जाती।

अपने काम का और विस्तार करने के लिये हरीश ने और ज़मीन खरीदी और अब उनकी एलोवेरा की खेती 100 एकड़ जमीन पर फैली हुई है। अपनी कुछ जमीनों में उन्होंने अनार, आँवला और गुम्बा जैसे पौधे भी लगाये हैं।

 

other plants
उनकी कंपनी, ‘धनदेव ग्लोबल ग्रुप’ जैसलमेर राजस्थान से 45 किलोमीटर दूर दहिसर में है। उनका सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ से 2 करोड़ तक का है। धनदेव ग्लोबल ग्रुप के एलोवेरा उत्पाद का नाम, ‘नेचरेलों’ है और अब जल्द ही वो इसकी बिक्री अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करने की तयारी कर रहे हैं।

हरीश मानते हैं कि, “ज्ञान ही सफलता की कुंजी है और इसी के ज़रिये हम खेती में भी क्रांति ला सकते है। “

 

हरीश धनदेव और उनके काम के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट पर जाएँ या उन्हें  harishdhandev@gmail.com पर मेल करे।

मूल लेख मानबी कटोच द्वारा लिखित 


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