यह बात साल 2014 की है। तब एमएस स्वामीनाथन किसानों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कर रहे थे। स्वामीनाथ वही हस्ती हैं, जिन्होंने 1966 में आई हरित क्रांति में बड़ी भूमिका निभाई थी। यह वो वक्त था, जब देशवासी एक मुट्ठी अनाज के लिए तड़प रहे थे।
स्वामीनाथन ने पुरस्कार समारोह के दौरान कहा था, “मिस्टर राजपाल गांधी विल ब्रिंग स्वीट रिवॉल्यूशन इन इंडिया। उन्होंने चीनी से भी अधिक मीठा, स्टीविया की खेती शुरू कर एक ऐसे आंदोलन को जन्म दिया है, जिससे न सिर्फ लोगों का स्वाद बदलेगा, बल्कि किसानों को भी आमदनी का एक बेहतर जरिया मिलने वाला है।”
उन्होंने ये बातें स्टीविया की खेती करने वाले राजपाल सिंह गांधी के लिए कही। मूल रूप से पंजाब के बंगा के रहने वाले राजपाल को देश में स्टीविया की खेती को एक नया आयाम देने के लिए जाना जाता है।
राजपाल के पास फिलहाल 200 एकड़ जमीन है, जिस पर वह न सिर्फ स्टीविया की खेती करते हैं, बल्कि आम, एवोकाडो, बादाम, इलायाची, जेनसिंग जैसे 30,000 से अधिक पेड़ भी हैं।
वह स्टीविया की प्रोसेसिंग भी करते हैं। उनके उत्पाद भारत के अलावा जर्मनी में भी जाते हैं और मध्य-पूर्व, दक्षिण अफ्रीका और सिंगापुर जैसे देशों में उनकी बात चल रही है। इस पूरे काम को वह अपनी कंपनी “ग्रीन वैली स्टीविया” के जरिए करते हैं।
कैसे मिली प्रेरणा
इस कड़ी में उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं एक टैक्स कंसलटेंट भी हूं। मेरे पास कोई जमीन नहीं थी, लेकिन मैं खेती करना चाहता था। इसलिए 2005 में अपने शहर से कुछ किलोमीटर दूर, बालाचौर में 40 एकड़ जमीन खरीदा और खेती करने लगा। इस जमीन पर पहले कभी खेती नहीं हुई थी और मैं अपने घर का पहला किसान था।”
वह कहते हैं, “आज खेत खरीद कर किसान कोई नहीं बनना चाहता है, लेकिन मैं लोगों के सामने एक उदाहरण पेश करना चाहता था कि खेती में निवेश भी फायदे का सौदा हो सकता है।”
लेकिन राजपाल के लिए राह आसान नहीं थी। उन्होंने शुरूआती दिनों में आलू और कई सब्जियों की खेती की, लेकिन उन्हें उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं हो रही थी। फिर, उन्होंने सोचना शुरू किया कि यहां के मौसम और मिट्टी के हिसाब से सबसे अधिक कमाई देने वाली फसल कौन सी हो सकती है।
इस दौरान उन्हें स्टीविया के बारे में पता चला। इसके लिए न तो ज्यादा पानी की जरूरत थी और न ही ज्यादा देखभाल की। इस तरह स्टीविया पर आकर उनकी तलाश रूक गई।
वह कहते हैं, “उस दौर में भारत में स्टीविया की खेती कहीं नहीं होती थी। जब मैंने इंटरनेट पर सर्च किया तो मुझे इसे लेकर न कोई जानकारी मिली और न ही किसी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में इसकी पढ़ाई हो रही थी।”
फिर भी, राजपाल ने अपने 6 एकड़ जमीन पर स्टीविया की खेती शुरू की।
वह कहते हैं, “तीन महीने के बाद मेरी फसल तो आ गई। लेकिन असली चुनौती अब शुरू हुई। उस वक्त इसका कोई खरीदार ही नहीं था। कुछ लोग 50-100 ग्राम खरीद रहे थे। लेकिन यह मेरा कमर्शियल मॉडल नहीं हो सकता था।”
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वह आगे कहते हैं, “फिर मैंने पता लगाया कि लोग इसे क्यों नहीं खरीद रहे हैं। मैंने देखा कि एक ओर जापान में जहां 1970 के दौर से ही 60 फीसदी से अधिक आबादी शुगर की जगह पर स्टीविया का इस्तेमाल कर रही है, वहीं भारत में इसकी चीनी बनाने के लिए कोई यूनिट ही नहीं है। ऐसे में, मेरे सामने दो ही विकल्प था कि या तो मैं स्टीविया की खेती बंद कर दूं या खुद से एक यूनिट शुरू करूं।”
फिर, राजपाल ने हिम्मत दिखाई और उन्होंने यूनिट शुरू करने का फैसला किया।
वह कहते हैं, “मैंने 2007 में आईआईटी मुंबई से भी संपर्क किया। यह रिसर्च दो वर्षों तक चली और उन्हें एक टेक्नोलॉजी पार्टनर के रूप में हमारे साथ पायलट स्केल तक काम किया। लेकिन मैं नतीजे से खुश नहीं था। क्योंकि टेस्ट अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार नहीं हो पाया था।”
इसके बाद राजपाल ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब को सेटअप किया और एक यूनिट की शुरुआत की।
वह बताते हैं, “2012 में मुझे सेंट्रल मिनिस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस की ओर से एक ग्रांट भी मिला। लेकिन उस समय स्टीविया को खाद्य सुरक्षा मानकों पर मान्यता नहीं मिली थी और इसे हासिल करने में मुझे 3 साल लग गए।”
वह कहते हैं नवंबर 2015 में मान्यता मिलने के बाद, 2016 के शुरुआती दिनों से उनका बिजनेस अच्छी तरह से चल रहा है।
क्या हैं स्टीविया के फायदे
राजपाल बताते हैं कि वह अपनी आधी जमीन पर स्टीविया की खेती करते हैं। इतना ही नहीं, वह पंजाब, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कई अन्य किसानों से भी जुड़े हुए हैं और उनसे बाय बैक एग्रीमेंट के तहत स्टीविया की कांट्रेक्ट फार्मिंग करवाते हैं।
वह बताते हैं, “एक एकड़ में स्टीविया के करीब 30 हजार पौधे लगते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद, 5 वर्षों तक सोचने की कोई जरूरत नहीं। फसल की कटाई हर तीन महीने में होती है। इस तरह एक साल में तीन-चार बार कटाई होती है।”
वह कहते हैं कि एक एकड़ में हर साल 1.5 से 2 टन सूखी पत्तियां होती हैं। जिससे 2.25 लाख का रिटर्न आसानी से हासिल किया जा सकता है।
वह कहते हैं, “यदि एक पौधा लगाने में दो रुपए का खर्च आ रहा है, तो 30 हजार पौधे लगाने में करीब 60 हजार खर्च होंगे। इस तरह सलाना हर कटाई पर करीब 15-20 हजार का खर्च आता है, जो दूसरी फसलों के बराबर ही है। लेकिन इसमें हर साल 1.5 लाख का फायदा होता है, जो परंपरागत फसलों से कहीं ज्यादा है।”
वह कहते हैं कि एक ओर जहां गन्ने की कटाई के बाद सेल्फ लाइफ 3-4 दिनों की होती है, तो वहीं स्टीविया की 3-4 वर्षों तक।
नहीं पड़ती ज्यादा देखभाल की जरूरत
राजपाल कहते हैं, “इसे ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती है। यह एक औषधीय पौधा है, जिस वजह से इसमें कभी कीड़े नहीं लगते हैं। वहीं, यदि एक किलो चीनी बनाने के लिए गन्ने की खेती में 1500 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, तो स्टीविया के लिए सिर्फ 75 लीटर पानी की जरूरत होगी। जो करीब 5 फीसदी है।”
वह कहते हैं कि स्टीविया सूर्यमुखी परिवार का पौधा है। इसलिए इसे पूरी धूप की जरूरत होती है। गर्मियों में इसका पौधा तेजी से बढ़ता है।
करते हैं वैल्यू एडिशन
राजपाल कहते हैं, “स्टीविया गुणों में बिल्कुल तुलसी की तरह है। इसलिए लोग इसे मीठी तुलसी भी कहते हैं। इसमें कोई कैलोरी नहीं होती है और इसमें कई पोषक तत्व होते हैं। डायबिटीज के मरीज इसे चीनी के विकल्प के रूप में इस्तेमाल करते हैं।”
राजपाल स्टीविया की पत्तियों और पाउडर को बेचने के अलावा कई वैल्यू एडेड प्रोडक्ट भी बनाते हैं।
वह स्टीविया को प्रोसेस करने के लिए एकोस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं। इसमें सूखी पत्तियों को गर्म पानी में उबाला जाता है और अलग-अलग मोलीक्यूल को सेपरेट किया जाता है। वह बताते हैं कि एक किलो पत्ती से 8-10 फीसदी एक्सट्रेक्ट निकलता है।
उन्होंने स्टीविया को मोरिंगा, ग्रीन टी, हल्दी और दूध जैसे कई चीजों के साथ भी लॉन्च किया है। राजपाल वैल्यू एडेड स्टीविया को 3000 रुपए से 6000 रुपए किलो तक बेचते हैं।
सैकड़ों किसानों को कर चुके प्रशिक्षित
राजपाल 500 से अधिक किसानों को स्टीविया की ट्रेनिंग दे चुके हैं। हरियाणा के रोहतक में रहने वाले डॉ. कुलभूषण उनसे जुड़े ऐसे ही एक किसान हैं।
कुलभूषण पहले पंजाब के कृषि विभाग में एक अधिकारी थे। वह कहते हैं, “बीते साल मई में रिटायर होने के बाद, मैंने एक एकड़ जमीन पर स्टीविया की खेती शुरू की। पहली बार में करीब 2 क्विंटल उत्पादन हुआ। इसे मैंने राजपाल जी को बेच दिया। गेहूं और धान जैसी परंपरागत फसलों की तुलना में इसमें फायदा अधिक है और लागत कम।”
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
2014 में एमएस स्वामीनाथन ने राजपाल को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने के बाद, अपने 20 सदस्यीय बोर्ड में भी शामिल किया था। इसके अलावा उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
वह कहते हैं, “2019 में गुरू नानक देव जी के 550वीं जयंती के मौके पर, दुनिया भर के 550 सिखों को अपने-अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदानों के लिए सम्मानित किया गया, जिसमें एक मैं भी थी। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भी शामिल था। मेरे लिए यह सबसे सम्मान की बात है।”
राजपाल अंत में कहते हैं कि आज जब सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कोशिश कर रही है, तो स्टीविया की खेती उनके लिए वरदान साबित हो सकती है। इसे देश के अधिकांश हिस्सों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसमें न किसानों को खाद-पानी के पीछे ज्यादा खर्च करने की जरूरत है और न ज्यादा मेहनत की। बस एक बार लगाइये और सालों तक निश्चिंत हो जाइये।
आप राजपाल की ग्रीन वैली स्टीविया से यहां संपर्क कर सकते हैं।
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