किसान यदि ठान ले तो वह कुछ भी कर सकता है। समय के साथ नई तकनीक की सहायता से समूह बनाकर यदि किसान किसानी करे तो वह मिसाल पेश कर सकता है। ऐसी ही एक कहानी हरियाणा के किसान विकास कुमार चौधरी की है।
करनाल जिला के तरावड़ी में रहने वाले किसान विकास कुमार चौधरी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। पिछले 10 सालों से विकास नई-नई तकनीकों के आधार पर खेती कर रहे हैं। उनकी हाई-टेक किसानी से प्रभावित होकर देशभर से किसान और कृषि छात्र उनके खेतों को देखने के लिए आते हैं। विकास को विदेशों में भी अपनी खेती के मॉडल के बारे में बात करने का मौका मिला है।
साल 1996 में विकास दसवीं कक्षा में थे, जब उनके पिता की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई। ऐसी स्थिति में उन्होंने बड़ा फैसला लेते हुए खुद खेती करनी शुरू कर दी। खेती के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी और अपनी ग्रैजुएशन पूरी की। ग्रैजुएशन के बाद वह 2001 में पूरी तरह से खेती में लग गए।
विकास ने द बेटर इंडिया को बताया कि लगभग दस सालों तक उन्होंने अपने पिता के बताए रास्ते पर पारंपरिक तरीके से खेती की। लेकिन साल 2010 में उनके जीवन में बदलाव आया। उन्होंने कहा, ” कृषि विभाग के एक कार्यक्रम में जाना हुआ। वहां हमें बताया गया कि क्यों आज कल किसानों को परेशानियां हो रही हैं। कैसे हमें मौसम और ज़मीन को ध्यान में रखते हुए खेती करने की ज़रूरत है। पारंपरिक फसलों के साथ-साथ हमें और भी फसलें अपने खेतों में उगानी चाहिए। वहां मुझे लगा कि अब कुछ अलग-हटके करने की ज़रूरत है वरना हम यूँ ही पीछे रह जाएंगे।”
विकास ने आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय मक्का और गेहूं अनुसंधान केंद्र से नयी तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल की। इन सभी तकनीकों को वह अपने खेत में लागू करना चाहते थे, जिसके लिए आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता थी। अकेले यह संभव नहीं था क्योंकि यह सभी उपकरण काफी मंहगे होते हैं। कृषि अनुंसधान केंद्र के अधिकारियों की सलाह पर उन्होंने अपने गाँव के 10 साक्षर किसान भाइयों को साथ में लेकर एक संस्था बनाई जिसका नाम दिया गया- सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नैचुरल रिसोर्सेज एंड एम्पॉवर्ड यूथ।
ना जुताई करते हैं, न पराली जलाते हैं:

विकास और उनके सहयोगी किसान भाइयों ने इस संस्था के माध्यम से नई तकनीक के आधार पर खेती शुरू की। सबसे पहले उन्होंने अपने खेतों की जुताई बंद कर दी। पिछले एक दशक में उन्होंने अपने खेतों को बिल्कुल भी नहीं जोता है। न ही खेतों में पराली जलाई गयी, बल्कि उन्होंने पराली में ही खेतों की बुवाई की है।
कृषि संस्थानों की मदद से विकास और उनके साथी किसानों को हैप्पी सीडर और मौसम का हाल बताने वाली मशीनें मिलने में आसानी हुई। हैप्पी सीडर की मदद से वह धान की सीधी बिजाई करते हैं। फसल कटने के बाद खेत में जब सिर्फ पराली रह जाती है तो हैप्पी सीडर से उसी में गेहूं की बुवाई की जाती है।
“जब हमने यह करना शुरू किया तो गाँव के बहुत से लोगों ने मजाक बनाया। लेकिन हमने कभी हार नहीं मानी। पहले जब हम गेहूं की बिजाई करते थे तो एक एकड़ में लगभग 4500 रुपये का खर्च आता था। पहले हम कटर से धान की पराली को काटते थे फिर इसे जलाते। फिर खेतों की दो जुताई होती और पानी भी दिया जाता था। इसके बाद भी मिट्टी को समतल करके, तब कहीं जाकर हम बिजाई करते थे जिसमें काफी खर्च होता था,” उन्होंने बताया।
हैप्पी सीडर का इस्तेमाल करने से अब खर्च बहुत कम हो गया है। अभी उनकी बिजाई की लागत मुश्किल से 1200 से 1500 रुपये प्रति एकड़ आती है, जिससे किसान को 3,000 रुपये तक का फायदा हो जाता है। विकास आगे कहते हैं कि किसान पराली के प्रबंधन से क्लाइमेट चेंज में भी खेतों को बचा सकता है। यह आपके खेतों में नमी रखती है, जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाती है और ज़मीन को पोषित करती है।
उन्हें पहले ही साल में उपज में फर्क दिखा। विकास के मुताबिक उन्हें सीधी बिजाई करने और पराली न जलाने की वजह से एक एकड़ में 2 क्विंटल ज्यादा उपज मिली।
शुरू की रिले क्रॉपिंग:
साल 2013 से उन्होंने अपनी ज़मीन पर गेहूं और धान के अलावा और दूसरी फसलें उगानी भी शुरू की। उन्होंने मक्का लगाने से शुरुआत की क्योंकि मक्का को ज्यादा पानी नहीं चाहिए होता है। इसके बाद, उन्होंने गेहूं के साथ मूंग की रिले क्रॉपिंग की। इससे उन्हें काफी फायदा हुआ।
वह बताते हैं कि अगर आप गेहूं के बाद मूंग और ढैंचा बोते हैं तो यह काफी अच्छा रहता है। क्योंकि इनकी हार्वेस्टिंग के बाद, इनकी जो जड़ें मिट्टी में बचती हैं, वो स्पंज का काम करती हैं। अगर उस खेत में आप धान की बुवाई करते हैं और फिर पानी देते हैं तो खेत में काफी ज्यादा समय तक नमी रहती है। इससे किसान के पानी की बचत होती है।
“हमें इस तरह पराली के मैनेजमेंट से पानी की बचत भी हो रही है। गेहूं में जहां 5-6 पानी लगते हैं, वहां हमें एक कम पानी देना होता है। अगर धान की खेती में 30 पटवन की ज़रूरत है तो 25 में ही काम हो जाता है,” विकास ने बताया।
अपनी 35 एकड़ ज़मीन पर विकास बेहतर प्रबंधन के साथ खेती करते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हासिल किया जाए। इसके साथ ही, वह मिट्टी के पोषण का भी पूरा ध्यान रखते हैं।
आधुनिक तकनीकों का प्रयोग:
विकास ‘साइट स्पेसिफिक न्यूट्रीएंट मैनेजमेंट’ से काम कर रहे हैं, मतलब कि वह एक सॉफ्टवेयर से यह जांच करते हैं कि उनकी फसल को कितनी मात्रा में कौन-सा पोषक तत्व चाहिए। फिर उसी हिसाब से खाद और उर्वरक खेतों में डाले जाते हैं। वह कहते हैं, “मैं दावा नहीं करता कि हमारी उपज पूरी तरह से जैविक है लेकिन खेतों में कोई भी बायो-पेस्टिसाइड या फिर उर्वरक बिना जांच-पड़ताल के नहीं डाला जाता है। सबसे पहले मिट्टी की जांच की जाती है और उसी हिसाब से प्रबंधन होता है।”
उनके खेतों में ‘वेदर स्टेशन’ भी लगा हुआ है, जिससे कि उन्हें मौसम का हाल पता चलता है। इसका फायदा गाँव वालों को भी मिलता है। इसके अलावा विकास का वर्मीकंपोस्ट यूनिट भी है, जहां उनके कृषि अपशिष्ट का अच्छा प्रबंधन होता है और फिर यह खाद खेतों में इस्तेमाल होती है।
“मेरी लगभग 5 एकड़ ज़मीन पर कृषि संस्थान शोध कार्य भी करते हैं। वहां पर अलग-अलग फसलों पर प्रयोग किया जाता है। किसानों को भी मेरे खेतों पर ही ट्रेनिंग और कंसल्टेशन दी जाती है। अब तक 12 हज़ार से भी ज्यादा किसान मेरे खेतों का दौरा कर चुके हैं और हमने उनको ट्रेनिंग भी दी है,” उन्होंने आगे बताया।
इसके अलावा, उनके अपने खेत पर अब तक 4 कृषि के छात्र अपनी पीएचडी का रिसर्च वर्क पूरा कर चुके हैं। “आज ये चारों ही छात्र अच्छी जगह पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हम प्रैक्टिकल करते हैं और छात्रों के पास तकनीक संबंधी ज्ञान होता है, जितना वो हमारे खेतों पर सीखते हैं, उतना ही हम उनसे सीखते हैं। यह ज़रूरी भी है क्योंकि यही छात्र आगे चलकर कृषि संस्थानों में पहुँचते हैं। अगर आज उन्हें किसानों के खेतों पर काम करके किसानों की समस्याएं समझ में आ गईं हैं तो कल वो उनके समाधान ढूंढने की कोशिश करेंगे।”
शुरू की किसान उत्पादक कंपनी:
साल 2017 में विकास ने अपने कुछ किसान साथियों के साथ मिलकर प्रोग्रोवर्स प्रोड्यूसर लिमिटेड कंपनी भी शुरू की। वह इस कंपनी के निदेशक हैं और इस कंपनी से आज लगभग 372 किसान जुड़े हुए हैं। हर किसी की अलग स्पेशलिटी है। कोई गेहूं, धान, बाजरा आदि उगाता है तो कोई मौसमी सब्जियां। कुछ लोग खाद और बायोपेस्टिसाइड तैयार करते हैं।
विकास बताते हैं कि उन्होंने खुद भी किसानों के लिए बीज तैयार करने की पहल की है। कंपनी का सालना टर्नओवर 1 करोड़ से ऊपर है। वहीं, विकास के मुताबिक उनकी अपने खेतों से सालाना कमाई 40 लाख रुपये के आस-पास होती है। लेकिन उनका कहना है कि किसी एक किसान की कमाई से चीजें ठीक नहीं होंगी, हमें सभी किसानों को जागरूक करना होगा और युवाओं को ज़मीन से जोड़ना होगा।
“हम किसी भी किसान को कुछ गलत नहीं देना चाहते। हम चाहते हैं कि किसान सिर्फ हमसे खाद, बीज आदि ही न खरीदें बल्कि वो ज्ञान भी अर्जित करें। क्योंकि हमारा उद्देश्य खेती को भारत में फायदेमंद बनाना है, सिर्फ अपना फायदा देखना नहीं,” उन्होंने अंत में कहा।
अगर आप विकास चौधरी से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 094160 32593 पर कॉल कर सकते हैं!
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