जब आम के किसी पुराने पेड़ पर फल लगना बंद हो जाते हैं, तो अक्सर हम यही कहते हैं कि यह पेड़ अब बूढ़ा हो चुका है। ऐसे में, ज्यादातर लोग उस पेड़ को काट कर, वहां नया पौधा लगा देते हैं। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने एक अनोखी तकनीक से इन पेड़ों को बचाने और फलदार बनाने का काम किया है। हम बात कर रहे हैं, गुजरात के वलसाड में रहने वाले किसान और एक बागान के मालिक राजेश शाह की। वह अपनी ‘गर्डलिंग’ तकनीक (Girdling) से बूढ़े पेड़ों को फलदार बनाते हैं।
पेड़ के तने या शाखाओं से छाल को चारों तरफ से हटाने की प्रक्रिया, गर्डलिंग (Girdling) कहलाती है। इस विधि को अपनाकर, आप अपने बहुत पुराने पेड़ों को भी फलदार बना सकते हैं। साथ ही, इस विधि से फल ज्यादा बड़े, रसीले और मीठे हो जाते हैं।
यह गर्डलिंग (Girdling) का ही कमाल है, जो आज 61 वर्षीय राजेश के 125 साल पुराने आम के पेड़ों में भी ताजा-रसीले आमों की भरमार लगी है। वलसाड से 45 किमी दूर उमरगाम तालुका के फणसा गाँव में, उनके ये पेड़ बहुत ही शानदार तरीके से फल-फूल रहे हैं। इन पेड़ों की तार सी पतली शाखाओं पर बड़े-बड़े आम झूलते रहते हैं। नीचे झूलते हुए फलों को कड़ी धूप से बचाने के लिए, राजेश इन्हें तोड़कर रख लेते हैं। उन्होंने बताया, “हापुस या Alphonso आम के पेड़, तीसरे साल से फल देने लगते हैं। 35 साल पुराने हापुस आम के पेड़ या तो दो साल में एक बार फल देते हैं, या इनमें फल लगने कम हो जाते हैं। ऐसे में, इन पेड़ों की गर्डलिंग (Girdling) की जा सकती है।”
राजेश का आम का बागान 65 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें ज्यादातर हापुस और केसर आम लगे हुए हैं। शुरुआत में, उनके दादा मगन लाल शाह ने इस बागान में सैंकड़ों पेड़ लगाए थे। इन पेड़ों में से 100 ऐसे पेड़ हैं, जो अब 125 साल के और 500 पेड़, 80 साल के हो चुके हैं। राजेश मूल रूप से राजस्थान से हैं। लेकिन, उनके पूर्वज लगभग 180 साल पहले वलसाड में आकर बस गए थे। उनका परिवार आज भी, राजस्थान में बिलिया गाँव के अपने डेढ़ सौ साल पुराने पुश्तैनी मकान में ही रहता है। वहीं, राजेश अपनी पत्नी के साथ गुजरात में रहते हैं और उनके बेटे और बेटी दोनों मुंबई में चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं।
शाह ने 10वीं के बाद अपनी पढ़ाई नहीं की, क्योंकि उन्हें इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ना बहुत असहज लगता था। उनका बागान, उनके घर से छह किमी दूर है। इसलिए, वह रोजाना अपनी ऑल्टो गाड़ी से बागान तक का सफ़र तय करते हैं। उन्होंने 15 साल की उम्र से ही खेती करना शुरू कर दिया था। फलों की कटाई के बाद वह पेड़ों को पोषण देने के लिए, जमीन में उनके चारों ओर खाद के तौर पर, ज्यादा मात्रा में गाय का सुखा गोबर डालते हैं। उन्हें हापुस आम काफी पसंद हैं, इसलिए उन्होंने साल 1973 में हापुस के 300 पौधे लगाये थे। इसके बाद, उन्होंने 2006 में हापुस के 900 और 2009 में 1700 पौधे और पायरी तथा मलगोवा आम की कुछ किस्में भी लगाईं।
2020 में, उन्होंने आम बागान से 2,30,000 किलो उपज ली थी। लेकिन, पिछले मानसून के बाद से वहां काफी बारिश हुई है। जिसे देखते हुए, उन्हें लगता है कि इस साल आम की फसल बहुत कम होगी।
गर्डलिंग (Girdling) के बारे में बताते हुए, राजेश कहते हैं कि वह एक गुर्जर लोककथा से प्रेरित थे। इस कथा में पुराने पेड़ों के तने में छेद करके, उन्हें फिर से फलदार बनाने की विधि के बारे में बताया गया था। उन्होंने कहा, “मैंने 1996 में इस तकनीक में प्रयोग करना शुरू किया और लगातार कोशिश करने की वजह से, 2011 तक इस तकनीक में महारत हासिल कर ली। इस साल मैंने 75 पेड़ों की शाखाओं को गर्डल किया है।”
एक साफ तेज चाकू से पेड़ की छाल को चारों तरफ से एक इंच काट दिया जाता है। इसमें किसी तरह का इंफेक्शन न हो, इसलिए गेरू मिट्टी और कीटनाशक से बने पेस्ट को कटे हुए हिस्से में लगाया जाता है। यह प्रक्रिया सही तरीके से हो जाने पर, पेड़ के अंदर जरूरी शुगर का प्रवाह फिर से होने लगता है। समय के साथ पेड़ पर नई परतें आने लगती हैं, जिससे कटे हुए हिस्से ढक जाते हैं। राजेश दीवाली के आसपास शाखाओं पर गर्डलिंग (Girdling) करते हैं, क्योंकि उन दिनों ह्युमिडिटी का स्तर लगभग 70 प्रतिशत रहता है।
शाह के अनुसार, 35 साल या उससे ज्यादा उम्र के पेड़ों पर और जमीन से कम से कम 15 से 20 फीट ऊँची शाखाओं पर गर्डलिंग (Girdling) की जानी चाहिए। वह कहते हैं, “शाखा का घेरा कम से कम 30 सेंटीमीटर होना चाहिए।”

गर्डलिंग (Girdling) के विज्ञान के बारे में ज्यादा जानने के लिए, हमने गुजरात सरकार के पूर्व ज्वॉइंट डायरेक्टर (कृषि), सुमन शंकर गावित से बात की। वह 90 के दशक से ही, राजेश की इस गर्डलिंग तकनीक (Girdling) के बारे में जानते हैं। वह कहते हैं कि यह एक वैज्ञानिक तकनीक है और राज्य के कई बागानों में इस विधि से फल उगाये जा रहे हैं। उन्होंने आगे बताया, “गर्डलिंग तकनीक से पेड़ में मौजूद शुगर, काटे गए हिस्से से ऊपर शाखाओं के जरिये फलों में पहुंच जाती है। ऐसा देखा गया है कि इस तकनीक से फल ज्यादा बड़े और मीठे उगते हैं।”
शाह के इस नवाचार के लिए, गुजरात सरकार ने 2006 में उन्हें ‘कृषि के ऋषि’ (કૃષિ ના ઋષિ) की उपाधि से सम्मानित किया। 2009 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने ‘सरदार पटेल कृषि अनुसंधान पुरस्कार’ और 2018 में ‘भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान’ (IARI) ने उन्हें ‘इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार’ से नवाजा।
अंत में राजेश कहते हैं, “वैसे तो यह तकनीक काफी आसान लगती है, लेकिन इसका प्रयोग बड़ी ही सावधानी से करना चाहिये। आपका एक गलत कदम, आपके बड़े से हरे-भरे पेड़ को बर्बाद कर सकता है।”
मूल लेख: हिरेन कुमार बोस
संपादन- जी एन झा
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