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एक चम्मच इतिहास 'चीनी' का! 

चीनी यानी शक्कर के दाने भी भारत का ही आविष्कार हैं। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति गुप्त शासन काल में हुई थी। गुड़ से जब शक्कर बनाई गई तो यह दिखने में सफ़ेद, क्रिस्टल और कंकड़ की तरह थी। इसके इसी रवेदार गुण की वजह से ही इसे 'शर्करा' कहा गया और इसी संस्कृत शब्द से बना है 'शक्कर'।

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एक चम्मच इतिहास 'चीनी' का! 

चीनी के बिना इंसान का जीवन वाकई फ़ीका रह जाता। यह एक ऐसा आहार है, जिसे विटामिन-मिनरल के बिना ही पूरी दुनिया पसंद करती है। हज़ारों साल पहले भारत में शक्कर या भूरी चीनी बनना शुरू हो गई थी, लेकिन इसे सफेद चीनी बनने में सैंकड़ों साल लग गए। 

सुबह की चाय से लेकर रात के डिज़र्ट तक, चीनी हमारे खाने में ही नहीं ज़िंदगी में भी मिठास घोलती है। इसके बिना हमें न मिठाइयां मिलतीं, न चॉकलेट, न केक और न ही सॉफ्टड्रिंक जैसी चीज़ें। लेकिन कभी ‘सफेद सोना’ कहलाने वाली यह चीनी आख़िर आई कहाँ से? चलिए इसके इतिहास के पन्ने पलटते हैं...

दुनियाभर के ऐताहासिक ग्रंथों में मिलता है चीनी का ज़िक्र

गन्ने के रस से गुड़ और फिर शक्कर सबसे पहले भारत में ही बनना शुरू हुई थी। देश-विदेश की ऐतिहासिक किताबें और कई रिपोर्ट इस बात का प्रमाण देते हैं। यूके के 'द कन्वर्सेशन' नाम के मीडिया आउटलेट नेटवर्क में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट ‘अ हिस्ट्री ऑफ़ शुगर- द फ़ूड नोबडी नीड्स, बट एव्रीवन क्रेव्ज़’ के मुताबिक़ भारत में लगभग 2,500 साल पहले यानी 500 ईसा पूर्व में चीनी बनाई गई थी।

यहाँ से इसे बनाने की तकनीक पूर्व में चीन की ओर फैल गई और ईरान से होते हुए मिडिल ईस्ट तक पहुंच गई। पहली शताब्दी में ‘नेचुरलिस हिस्टोरिया’ नाम से विश्वकोष लिखने वाले इतिहासकार प्लिनी द एल्डर ने भारत की चीनी को अरब में बनने वाली चीनी से बेहतर बताया। 

Indians discovered how to crystallize sugar during the Gupta dynasty, around 350 AD
गन्ने के रस से गुड़ और फिर शक्कर सबसे पहले भारत में बनना शुरू हुई थी।

ईसा पूर्व 7वीं शताब्दी में लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ के ‘इक्षुवर्ग’ अध्याय में गन्ने से गुड़ और शक्कर बनाने की जानकारी डिटेल में दी गई है और इसके औषधीय गुणों के बारे में भी बताया गया है। इसके अलावा, भारतीय विद्वान कौटिल्य के अर्थशास्त्र (350 ईसा पूर्व) में गुड़ और खांड समेत पांच तरह की शक्कर का वर्णन मिलता है।

बताया जाता है कि पहली बार सातवीं सदी में अरब व्यापारियों के ज़रिए खांड भारत से बाहर मध्य एशिया पहुंची, जहां इस पर कई प्रयोग हुए। मिस्र के कारीगरों ने हमारी भूरी खांड से दानेदार सफ़ेद चीनी, मिश्री की डली और बताशे बनाने के तरीके खोजे और यूरोप में यह 11वीं सदी में पहुंची। 1505 में पुर्तगाली व्यापारियों ने करिबिया में पहली शुगर कॉलोनी बनाई थी, उसके पहले तक दुनियाभर के ज़्यादातर लोग इसके स्वाद से अनजान थे।

जब लौटकर 'शक्कर' घर को आई 

मुगलकाल के दौरान खांड को सफ़ेद, दानेदार चीनी में बदलने की तकनीक चीन से भारत पहुंची और इसलिए यहाँ 'चीनी' कहलाती है। भारत में पहली चीनी मिलों की स्थापना का सबसे पहला रिकॉर्ड 1610 में है। 16वीं सदी से पहले चीनी इतनी क़ीमती थी कि शासकों और बड़े कारोबारियों तक ही इसकी पहुंच थी। इसी दौरान इसे ‘सफेद सोना’ भी कहा गया। साम्राज्यवादी विस्तार और कारोबार के दौरान धीरे-धीरे चीनी आम लोगों तक पहुंची।

संपादन- अर्चना दुबे

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