कर्नाटक में बंगलुरु के रहने वाले जी. वी. दसरथी का एक दशक पुराना घर आज के समय में सस्टेनेबिलिटी के सभी पैमानों पर खरा उतरता है। इस घर को उन्होंने नाम दिया है ‘कचरा माने’ क्योंकि इस घर को पुरानी, और बेकार कहकर रिटायर कर दी गयीं चीज़ों को फिर से नई ज़िंदगी देकर बनाया गया है।
1700 स्क्वायर फीट में बने इस घर को दसरथी और उनके परिवार ने डिजाईन किया और उनके डिजाईन को ज़िंदगी दी माया प्राक्सिस, आर्किटेक्चरल फर्म के अवॉर्ड विनिंग आर्किटेक्ट विजय नर्नापत्ति और डिंपल मित्तल ने। द बेटर इंडिया से बात करते हुए दसरथी ने इस घर के नाम के पीछे की कहानी और इस घर को बनाने की प्रेरणा के बारे में बताया।
“बचपन से ही मुझे पता था कि हमें पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ज़िंदगी जीनी चाहिए और 4 आर- रेड्युस, रियुज, रीसायकल और रीथिंक- बहुत ही ज़रूरी हैं। वक़्त के साथ, मुझे अहसास हुआ कि हमारे यहाँ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में यह भावना नहीं है और यह कंक्रीट जैसे वेस्ट उत्पन्न कर रही है जो किसी काम का नहीं और हमारे पर्यावरण और पानी के स्त्रोतों को प्रदूषित करता है। इसलिए दस साल पहले, जब मैंने और मेरे परिवार ने घर बनाने का निर्णय लिया तो हम चाहते थे कि इस दौरान पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे और लागत भी कम लगे।”
इस अनोखे ‘ग्रीन होम’ के बारे में 10 ख़ास बातें जो हम सबके लिए जानना बेहद ज़रूरी है:
1. ‘कचरा माने’ घर के निर्माण में लगने वाला समय और लागत, दोनों ही किसी सामान्य शहरी घर से 50% कम लगे। साथ ही, निर्माण के समय सीमेंट, स्टील और रेत का प्रयोग भी 80% तक कम किया गया।
2. घर में 20 हज़ार लीटर का रेनवाटर हार्वेस्टिंग टैंक होने से नगर निगम के पानी पर उनके परिवार की निर्भरता लगभग आधी हो गयी है। साथ ही, घर के ग्रे वाटर जैसे कि नहाने और वॉश बेसिन के पानी को बगीचे और टॉयलेट फ्लश में इस्तेमाल किया जाता है।
3. ठंडों के दिनों में गरम पानी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए 200 लीटर की क्षमता वाला सोलर वाटर हीटर भी है।
4. दरवाजों और अलमारी के अलावा सभी जगह देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है और यह लकड़ी ऐसी जगह से खरीदी गयी है जो कि सामान रखने वाले बक्से खरीदते हैं और लकड़ी को बेच देते हैं।
5. घर की दीवारों पर बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ हैं। कंस्ट्रक्शन में लगा 80% ग्लास ऐसी दुकानों से ख़रीदा गया है जो कि ढह चुकी इमारतों से बचा-कूचा ग्लास का माल लाते हैं। सिर्फ़ खिड़की में लगे शीशे नए हैं क्योंकि इन्हें किसी ढह चुकी इमारत से नहीं लाया जा सकता था।
दसरथी बताते हैं कि बंगलुरु में कुछ ख़ास फर्म हैं जो कि पुरानी और जर्जर हालत में खड़ी इमारतों को गिराती हैं और इनकी लकड़ी और अन्य सामान को, जो कि फिर से काम में आ सकता है, दुकानों पर बेच देती हैं। ऐसी बहुत सी दुकानें आपको शिवाजीनगर और बम्बू बाज़ार के नाम से मशहूर सिटी मार्किट में मिल जाएंगी।
6. घर के टॉयलेट्स को भी इसी तरह से रीयूज्ड मटेरियल जैसे कि वॉश बेसिन, कमोड, नल, शावर आदि को इन दुकानों से कम लागत में खरीदकर लगाया गया है। इससे उन्होंने लागत में लगभग 85% की बचत की।
7. घर में प्लेन सीमेंट का फर्श है, इसके लिए किसी भी तरह की टाइल या सिरेमिक का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
8. छत बनाने के लिए भी सीमेंट की जगह बांस की शीट का उपयोग हुआ है। इससे छत की लागत में 30% की बचत हुई है। यह सिर्फ़ 5 मिमी मोटी है और गर्मियों में भी गर्म नहीं होती है।
9. ईंट की दीवारों पर सिर्फ़ 0.25″ प्लास्टर है, जिस वजह से ये असमतल दिखती हैं। लेकिन समतल दीवारों के मुकाबले इनकी लागत 50% कम है क्योंकि समतल दीवारों पर 1.5″ प्लास्टर लगता है।
10. इस घर में न तो रसोई में कोई आर्टिफीशियल चिमनी है और न ही एसी।
इस सबके अलावा, घर में इस्तेमाल होने वाली अधिकतर चीज़ें या तो सेकंड हैंड हैं या फिर फैक्ट्री सेकंड हैं।
क्या होते हैं फैक्ट्री सेकंड एप्लायंस?
ये एप्लायंस, वैसे तो नए होते हैं लेकिन शिपिंग या फिर स्टोरेज के वक़्त इनमें कोई डैमेज हो जाये जैसे कि फ्रिज पर का कहीं से पिचक जाना आदि। इनमें कोई फंक्शनल कमी नहीं होती है, बस बाहरी बॉडी पर कोई छोटा-मोटा निशान पड़ना या फिर हल्का-सा क्रैक आदि। इन प्रोडक्ट्स को कंपनी 30 से 40 प्रतिशत कम लागत पर बेचतीं हैं।
जब आप इस तरह की चीज़ें खरीदते हैं तो आप न सिर्फ़ पैसे की बचत करते हैं बल्कि यह एक इको-फ्रेंडली स्टेप भी है।

इको-फ्रेंडली घर बनाना हर किसी के बस की बात नहीं लेकिन दसरथी कुछ ऐसे टिप्स बताते हैं जिनसे आप एक सस्टेनेबल लाइफ की तरफ अपने कदम बढ़ाते हैं।
1. ऐसे कपड़े पहनें जिन्हें प्रेस करने की ज़रूरत न पड़े जैसे कि डेनिम।
2. डिटर्जेंट का इस्तेमाल कम से कम करें, इससे पानी का प्रदुषण बहुत बढ़ता है। इसके लिए आप गहरे रंग के कपड़ें पहनें और उन्हें सिर्फ़ पानी से धोएं। दसरथी बताते हैं कि वे अपने कपड़ों को लगभग 50 बार तक सादे पानी से ढोते हैं और फिर एक बार डिटर्जेंट से। अपने कपड़ों को लगभग आधे घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखें, फिर उन्हें थोड़ा रगड़ें और फिर निचोड़कर सुखा दें। बाकी बचे पानी को अन्य घरेलू काम के लिए इस्तेमाल करें।
3. कपड़ों को सुखाने के लिए ड्रायर वाली वाशिंग मशीन खरीदने की बजाय उन्हें सीधे धूप में सुखाएं। इससे बिजली की बचत तो हो ही रही है, साथ ही, सूरज की युवी किरणों से कपड़ों पर लगे सभी बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।
4. अपने तौलिये को बहुत ज़्यादा न धोएं क्योंकि इसे आप सिर्फ़ नहाने के बाद शरीर पोंछने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
“मैं अपने तौलिये को 15 बार इस्तेमाल करने के बाद एक बार डिटर्जेंट से धोता हूँ। और ज़्यादातर उन्हें बाहर सुखा देता हूँ। पतले और गहरे रंग के तौलिये इस्तेमाल करें। जितना मोटा तौलिया होगा, उतना ही ज़्यादा डिटर्जेंट और पानी इसे धोने में इस्तेमाल होगा,” उन्होंने आगे कहा।
5. अपने आस-पास के कामों के लिए साइकिल का इस्तेमाल करें और यदि कहीं लम्बा सफर करना है तो अच्छा है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल किया जाये।
“मेरे घर से मेरा ऑफिस 15 किमी दूर है। मैं पिछले 20 सालों से दफ्तर जाने के लिए या तो साइकिलिंग करता हूँ या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करता हूँ। आप यह आज से ही शुरू कर सकते हैं। हफ्ते में सिर्फ़ एक दिन पैदल चलकर, साइकिलिंग करके या फिर बस से जाना शुरू करें।”

अंत में हमारे पाठकों के लिए दसरथी सिर्फ़ एक ही बात कहते हैं,
“हम खुद को अपनी लाइफस्टाइल से बर्बाद और ख़त्म कर रहे हैं। इसलिए सस्टेनेबल बिल्डिंग और लाइफ की तरफ हमारा बढ़ना बहुत ज़रूरी है। अगर आपके पास एक इको-फ्रेंडली घर बनाने का विकल्प नहीं है और पहले से बना हुआ कोई फ्लैट खरीदना है, फिर भी आप कुछ बदलाव कर सकते हैं। टाइल और मार्बल की जगह, पुरानी इमारतों से लाये गये सेरेमिक, लकड़ी आदि को फिर से इस्तेमाल करके अपना खुद का इंटीरियर डिजाईन करें। जब भी घर बनायें तो सिर्फ़ अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को इम्प्रेस करने के लिए या फिर स्टेटस सिम्बल के लिए न बनायें। बल्कि कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए बनाना शुरू करें।”
यदि आपको यह कहानी पसंद आई है तो दसरथी से जुड़ने के लिए उनका ब्लॉग lowcarbonlife.in फॉलो करें। यहाँ पर उन्होंने अपनी सस्टेनेबल लाइफ और प्रैक्टिस के बारे में विस्तार से लिखा है।
संपादन – मानबी कटोच
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