कोविड-19 महामारी में जब अधिकांश लोग अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब देश के कुछ ऐसे असाधारण नायक (COVID Warrior), जरूरतमंदों की मदद करने के लिए आगे आए, जिनके पास न तो बहुत पैसा था और न ही साधन। लेकिन संकट के उस दौर में उन्होंने यह नहीं सोचा कि समाज की सेवा कैसे करेंगे? बल्कि यह सोचा कि हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा और बस निकल पड़े आगे के सफर पर।
बस एक उम्मीद साथ थी कि समाज में बदलाव लेकर आना है, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में क्यों न डालनी पड़े। सुंदरबन के 29 साल के सौमित्र मंडल भी उन्हीं नायकों में से एक हैं, जिन्होंने राह में आने वाली परेशानियों की परवाह किए बिना लोगों की सेवा की। महामारी की पहली और दूसरी लहर के समय सबसे जरूरी चीज़, ऑक्सीजन सिलेंडर को जरूरतमंदों तक पहुंचाया।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के गोसा ब्लॉक के सुदूर द्वीप में वह लोगों के लिए किसी सुपरहीरो से कम नहीं हैं। वह एक वन मैन आर्मी हैं, जो आज भी अपने दम पर अकेले एक गांव से दूसरे गांव जाकर, लोगों को दवाइयां और ऑक्सीजन पहुंचाते हैं। आने-जाने के लिए उनके पास बस एक साइकिल है, जिसपर सफर करते हुए वह रोजाना लोगों की मदद करने के लिए निकल पड़ते हैं।
“मैं लोगों के लिए कुछ करना चाहता था”
सौमित्र (COVID Warrior) ने बताया, “जब महामारी फैली, तो मुझे लगा कि हाथ पर हाथ रखकर बैठने के बजाय, जमीनी स्तर पर कुछ करना चाहिए। गोसाबा ब्लॉक में यहां सभी नौ दीपों के लिए सिर्फ एक अस्पताल है और इमरजेंसी में वहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। हमारे लोग समय पर इलाज पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, इसलिए मैंने एनजीओ के जरिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर, सिलेंडर और दवाओं की व्यवस्था करनी शुरू कर दी। ताकि जरूरतमंद लोगों की समय पर सहायता की जा सके।”
उनका कहना है कि कई गैर-सरकारी और समाज कल्याण संगठनों ने उन्हें ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर, सिलेंडर और दवाइयां मुहैया कराईं। सौमित्र बताते हैं, “मुक्ति और किशालय फाउंडेशन जैसे संगठनों ने मुझे दो ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर दिए हैं। वहीं कुछ समाज सेवियों ने मुझे कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर भी दिए। हालांकि साइकिल पर सिलेंडर ले जाना मुश्किल होता है, क्योंकि वे काफी भारी होते हैं, लेकिन फिर भी मैं हर रोज़ लंबी दूरी तय करता हूं। द्वीपों को पार करने और दूर-दराज़ के गांवों तक पहुंचने में मुझे एक घंटे से ज्यादा का समय लगता है।”
खुद हुए पॉजिटिव, लेकिन नहीं रुके कदम

डायबिटिक होने के बावजूद, सौमित्र (COVID Warrior) पहली और दूसरी लहर के दौरान भी लोगों की मदद करने से नहीं रुके। उन्होंने अपनी सेहत की परवाह नहीं की और लोगों तक, उनके इलाज के लिए जरूरी समान पहुंचाते रहे। वह मरीजों की हालत देखकर उन्हें दवाएं भी देते हैं। उन्होंने कहा, “मरीजों को दवाएं देने से पहले मैं हमेशा डॉक्टर से फ़ोन पर सलाह लेता हूं। मैं सिर्फ डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही काम करता हूं।”
वह बताते हैं कि एनजीओ की मदद तो मिल ही रही है, साथ ही स्थानीय सरकार भी उनकी इस पहल में उनका साथ दे रही है। उनके अनुसार, “गोसाबा ब्लॉक के अधिकारी मेरे काम में मदद कर रहे हैं। द्वीपों में मेरी यात्रा फ्री हो सके इसके लिए उन्होंने मुझे आर्थिक सहायता भी दी है।”
जून 2021 में सौमित्र को कोविड हो गया था। बस यही वह समय था, जब उन्होंने अपने इस काम से ब्रेक लिया था। वह कहते हैं, “डायबिटीज़ होने के कारण, कोविड होना जोखिम भरा था। लेकिन यह भी मुझे रोक नहीं सका और जैसे ही मैं ठीक हुआ, मैंने अपना काम फिर से शुरू कर दिया।”
जीवन कभी आसान नहीं रहा
एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले सौमित्र (COVID Warrior) को बचपन में ही अपना घर छोड़ना पड़ा था। वह अपने रिश्तेदारों के घरों में पले-बढ़े, जिन्होंने उनकी शिक्षा का खर्च उठाने में मदद की। सौमित्र, भूगोल (ऑनर्स) में ग्रैजुएट हैं और बीएड की डिग्री भी उनके पास है। वह कहते हैं, “जीवन कभी आसान नहीं रहा। लेकिन मुझे खुशी है कि कम से कम मैं अपनी शिक्षा तो पूरी कर सका।”
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह वापस बाली लौट आए थे। बाली, गोसाबा का एक द्वीप है और उनका पैतृक गांव भी। यहां आकर वह एक सरकारी स्कूल से जुड़ गए। वह पार्ट टाइम टीचर के रूप में यहां काम कर रहे थे। वह कहते हैं, “टीचिंग मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह हमेशा से मेरा जुनून रहा है और अपने गांव के बच्चों को पढ़ाना मुझे अच्छा लगता है।”
उन्होंने (Saumitra Mandal) आगे कहा, “यह उसी साल की बात है। मैंने अपने इलाके के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को मुफ्त में जॉग्रफी का ट्यूशन देना शुरू किया था। मैं छात्रों की स्कूल और कॉलेजों में प्रवेश पाने में भी मदद करता हूं। मैं इसके लिए कोई पैसा नहीं लेता हूं। कई अलग-अलग स्वयंसेवी संगठन और सामाजिक कल्याण संगठन बच्चों को स्कॉलरशिप देते हैं। मैं जरूरतमंद छात्रों को उन लोगों से जोड़ने के लिए बस एक जरिया हूं।”
नहीं रही नौकरी, फिर भी बच्चों को फ्री में पढ़ाया

साल 2019 में सौमित्र की नौकरी चली गई थी। स्कूल में उस विषय का तब तक कोई टीचर नहीं था और सौमित्र वहां पार्ट टाइम काम कर रहे थे। सरकार ने जब उस खाली पद पर स्थायी टीचर की नियुक्ति कर दी, तो उन्हें वहां से नौकरी छोड़नी पड़ी। सौमित्र मुस्कुराते हुए कहते हैं, “जब मेरी नौकरी चली गई, तो मैं थोड़ा निराश जरूर हुआ, लेकिन मैंने बच्चों को फ्री ट्यूशन देना जारी रखा।”
बाद में महामारी फैली, तो उन्होंने सुंदरबन के ऑक्सीजन मैन के रूप में अपनी यात्रा शुरू कर दी। वह हंसते हुए कहते हैं, “यहां हर कोई मुझे जानता है और लोग मुझे ‘राजा’ कहते हैं। जब भी कोई इमरजेंसी होती है, तो लोग फ़ोन या फेसबुक पर मुझसे संपर्क करते हैं।”
स्कूल बनाने के लिए दान में दी जमीन
सौमित्र (COVID Warrior) से जब पूछा गया कि उन्हें सामाज सेवा करने की प्रेरणा किससे मिली, तो वह जवाब दिया, “मैं हमेशा से अपने दादा का बहुत सम्मान करता हूं। उन्होंने स्कूल बनाने के लिए अपनी जमीन दान में दे दी थी। मेरे पिता भी बहुत नेक दिल इंसान हैं। लोगों की मदद करने के लिए, उनसे जो बन पड़ता है, वह करते हैं। मुझे लगता है कि यह उनका ही प्रभाव है, जिसने मुझे एक सामाजिक कार्यकर्ता बनाया।”
उनके पिता, कोलकाता में एक टेक्सटाइल फर्म में काम करते हैं और परिवार का खर्च उठा रहे हैं। सौमित्र ने बताया, “हमारे पास थोड़ी सी जमीन है, जिसपर हम धान और सब्जियों की खेती करते हैं। बस इस सब से हमारे परिवार का गुजारा चल जाता है।”
फिलहाल सौमित्र नौकरी की तलाश में हैं। उनका मानना है कि अगर हाथ में नौकरी होगी, तो वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर पाएंगे।
आप सौमित्र से 8967703354 पर संपर्क कर सकते हैं।
मूल लेखः अंजलि कृष्णन
संपादनः अर्चना दुबे
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