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बोल-सुन नहीं सकते तो क्या? इस 'झुंड' का शोर मचेगा अब पूरी दुनिया में!

स्लम सॉकर ने पहले 'झोपड़पट्टी' फुटबॉल से स्लम में पले-बढ़े बच्चों को पहचान दिलाई और अब फुटबॉल के ज़रिए ही वे मुक-बधिर बच्चों को एक नयी पहचान दे रहे हैं!

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बोल-सुन नहीं सकते तो क्या? इस 'झुंड' का शोर मचेगा अब पूरी दुनिया में!

"मूक-बधिर बच्चे कोरे कागज़ की तरह होते हैं। उन्होंने न तो कभी कुछ बुरा सुना होता है और न ही कुछ बुरा बोला होता है। अब ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इस कागज़ पर कुछ अच्छा लिखकर इसकी शोभा बढ़ाने में मदद करें," यह कहना है स्लम सॉकर संस्थान के प्रोजेक्ट मैनेजर साजिद जमाल का।

साजिद, नागपुर में स्थित स्लम सॉकर संस्थान में 'डेफकिड्ज गोल' प्रोजेक्ट संभाल रहे हैं। स्लम सॉकर संस्थान की शुरुआत लगभग 20 साल पहले एक रिटायर्ड स्पोर्ट्स टीचर, विजय बारसे ने की थी। उनका उद्देश्य फुटबॉल के माध्यम से झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी में बदलाव करना था।

उन्होंने 'झोपड़पट्टी' फुटबॉल की शुरुआत की और स्लम में रहने वाले बच्चों को इससे जोड़ना शुरू किया। अपने इस छोटे से कदम से उन्होंने गलत गतिविधियों में लिप्त न जाने कितने ही स्लम के बच्चों की ज़िंदगी को बदला है। आज स्लम सॉकर का काम और नाम इस कदर मशहूर है कि विजय बारसे के जीवन से प्रेरित एक हिंदी फिल्म बन रही है। इस फिल्म में बारसे की भूमिका मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन निभाएंगे।

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Slum Soccer founder Vijay Barse with Actor Amitabh Bachchan during the shooting of film, Jhund

साजिद बताते हैं कि इतने बरसों में स्लम सॉकर ने न सिर्फ झोपड़पट्टियों के बच्चों को फुटबॉल खेलना सिखाया है बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया है। समय-समय पर खेल की अलग-अलग गतिविधियों से उन्होंने स्लम के लोगों के व्यवहार, उनके रहन-सहन और ज़िंदगी के प्रति नज़रिए को बदला है।

"हमारे अलग-अलग प्रोजेक्ट हैं जैसे कि एडूकिक, जिसमें हम फुटबॉल का इस्तेमाल करके बच्चों को खेल-खेल में गणित पढ़ाते हैं। एक शक्तिगर्ल्स नाम का प्रोजेक्ट है - जो नाम से ही स्पष्ट है कि लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए है। साथ ही एक कम्युनिटी प्रोजेक्ट है जिसमें हम स्लम के बड़े-बुजुर्ग, सभी उम्र के लोगों को फुटबॉल स्किल के साथ-साथ लाइफ स्किल्स भी सिखातें हैं। इस तरह से बहुत से प्रोग्राम हैं जिनका एक ही उद्देश्य है समाज के दबे हुए तबके को एक आवाज़ देना," उन्होंने आगे बताया।

इसी तरह, उन्होंने 2016 में एक और खास प्रोजेक्ट शुरू किया है- 'डेफकिड्ज गोल!'

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DeafKidz Goal! Nagpur Team with participants during football tournament

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह प्रोजेक्ट डेफ मतलब कि मूक-बधिर बच्चों के लिए है। उन्होंने नागपुर के एक मूक-बधिर स्पेशल स्कूल, शंकर नगर स्कूल के छात्रों को फुटबॉल की ट्रेनिंग देना शुरू किया है। उन्होंने वहां के 250 बच्चों में 60 बच्चों से शुरुआत की है।

साजिद कहते हैं कि अगर देखा जाए तो यह प्रोजेक्ट सिर्फ इन बच्चों के लिए नहीं है, हमारे लिए भी है क्योंकि बहुत ही कम लोगों को पता होता है कि कैसे आप किसी दिव्यांग से बात करें। उनके साथ व्यवहार करें कि उन्हें छोटा महसूस न हो।

"पहले-पहले हमने खुद इन बच्चों को फुटबॉल सिखाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। इन्हें सिखाने के लिए हमें इन्हीं के जैसा सोचना और बनना होता है। हमें हर छोटी से छोटी बात का ध्यान रखना होता है जिससे उन्हें ये कभी महसूस न हो कि वे हमसे अलग हैं," साजिद ने कहा।

कुछ ही दिनों में उन्हें समझ में आ गया कि इन बच्चों के लिए उन्हें डेफ कोच ही रखने पड़ेंगे जो उनकी भाषा को ज्यादा अच्छे से समझ सकें। इसके बाद उनकी टीम ने ऐसे लोगों को तलाशा जिन्हें वह फुटबॉल कोच बनने की ट्रेनिंग दे सकें। सेलेक्ट किए कुल 10 लोगों में से आखिरकार 4 लोगों को ट्रेनिंग देने में स्लम सॉकर की टीम कामयाब रही।

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इन लोगों की ट्रेनिंग के साथ-साथ स्लम सॉकर ने अपने स्टाफ को भी व्यवहार और संवेदनशीलता पर वर्कशॉप दीं। ताकि वे इन मूक-बधिर कोच और बच्चों के साथ सामान्य व्यवहार करें। इसके बाद पूरा प्लान तैयार किया गया कि कैसे वे लोग बच्चों का स्किल डेवेलप करेंगे और फिर उन्हें खेल की तकनीक सिखाएंगे।

"हमने महसूस किया कि हमारे और इन मूक-बधिर कोच व बच्चों के बीच की डोर बहुत ही नाजुक है। जिस पल आपके किसी भी बर्ताव से उन्हें असहज लगा, वे आपसे दूर हो जाएंगे। इसलिए हमने अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरती हुई है," साजिद ने बताया।

सबसे पहले बच्चों को फुटबॉल स्किल सिखाई गई और फिर उन्हें लाइफ स्किल के बारे में समझाया गया। अंत में उन्होंने कम्युनिकेशन पर काम किया।

साजिद कहते हैं कि अब ये बच्चे किसी भी तरह के फुटबॉल टूर्नामेंट के लिए बिल्कुल तैयार हैं। स्लम सॉकर ने नागपुर में पहला ऐसा टूर्नामेंट किया जो मूक-बधिर बच्चों के लिए था। इस टूर्नामेंट की खासियत यह थी कि इसमें इन बच्चों के साथ सामान्य बच्चों ने खेला।

एक मैच में सामान्य और डेफ बच्चों की टीम आमने-सामने थी और दूसरे मैच में, हर एक टीम में दोनों बच्चों को रखा गया। इस टूर्नामेंट ने इन मूक-बधिर बच्चों को आत्म-विश्वास मिला और उनके साथ खेलने वाले सामान्य बच्चों को ज़िंदगी को देखने का एक नया नजरिया मिला।

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Deaf Coach Sheetal interacting with deaf participants

शंकर नगर स्कूल की प्रिंसिपल, मीनल संगोड़े कहती हैं कि इस खेल के ज़रिए उनके बच्चों में लीडरशिप और टीम वर्क की भावना पैदा हो रही है। उनका आत्म-विश्वास बढ़ रहा है और इसका प्रभाव उनके जीवन के अन्य पहलुओं पर भी दिखाई पड़ रहा है।

"साथ ही, मैं इन बच्चों के मूक-बधिर कोच की आभारी हूँ जो बच्चों को स्कूल में ही आकर ट्रेनिंग देते हैं। इससे हमारे दिल में एक सुरक्षा की भावना रहती है," उन्होंने आगे कहा।

बच्चों के साथ-साथ उन्हें सिखाने के लिए ट्रेन किए गये उनके कोच भी अपना अनुभव साझा करते हैं। श्याम रघुशे को हमेशा ही मूक-बधिर होने के चलते समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ा। उनका आत्म-विश्वास इस कदर टूट चूका था कि वह कभी अपनी बेटी के स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग के लिए भी नहीं जाते थे।

स्लम सॉकर ने उन्हें फुटबॉल कोच के तौर पर ट्रेन किया और यहाँ करते-करते अब उनमें इतना हौसला आ गया है कि वह बिना झिझक के अपनी बेटी के स्कूल जाते हैं।

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Deaf Coach- Shyam Raghuse

साजिद कहते हैं कि उन्हें ख़ुशी है कि इस एक प्रोजेक्ट से स्लम सॉकर बहुत सी ज़िंदगियों को बदलने में सक्षम हो पा रहा है। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए अनगिनत चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अब उनकी मेहनत रंग ला रही है।

डेफकिड्ज गोल प्रोजेक्ट के लिए उन्हें अमेरिका के संगठन डेफकिड्ज इंटरनैशनल और कॉमिक रिलीफ से फंडिंग मिल रही है। स्लम सॉकर हर साल की तरह इस साल भी अपना फुटबॉल टूर्नामेंट कर रहा है और इसमें इस बार उनकी मूक-बधिर टीम भी भाग लेगी।

उनका टूर्नामेंट 28 फरवरी से 3 मार्च तक, गोवा में होगा। यदि उस समय आप गोवा में रहें तो इस टूर्नामेंट में जाकर इन बच्चों का हौसला ज़रूर बढ़ाएं। साजिद अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं, "हम और आप सोच भी नहीं सकते उसे कहीं ज्यादा ऊर्जावान हैं ये बच्चे। बस ज़रूरत है तो सही मौकों की, इसलिए कोई स्पेशल ट्रीटमेंट भले ही न दें लेकिन सही मौके ज़रूर दें।"

यदि आपको इस कहानी ने प्रभावित किया है और आप इस प्रोजेक्ट के बारे में अधिक जानना चाहते हैं या फिर किसी तरह से जुड़ना चाहते हैं तो 8380855918 पर संपर्क कर सकते हैं!

'झुंड' फिल्म का टीज़र रिलीज़ हो चुका है और फिल्म, 8 मई 2020 को सिनेमाघरों में लगेगी:

संपादन- अर्चना गुप्ता

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