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अगर ज़िंदगी में आप समाज के लिए कुछ भी अच्छा कर रहें हैं तो 'थोड़ा भी बहुत है।' इसलिए यह मत सोचिए कि 'सिर्फ मेरे एक पॉलिथीन इस्तेमाल न करने से क्या हो जायेगा?' आपका हर छोटा कदम एक बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है क्योंकि बून्द-बून्द से ही तो सागर भरता है।
इस सोच को अपनी ज़िन्दगी का फलसफा बनाकर हैदराबाद के एक आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिज़ाइनर पिछले कई सालों से अपने हर एक प्रोजेक्ट में कला के नए रंग जोड़ रहे हैं।
41 वर्षीय जेमीयन राव साल 1998 से आर्किटेक्चर का काम कर रहे हैं। लेकिन उनके लिए उनका प्रोफेशन सिर्फ़ पैसे कमाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि यह उनका पैशन है। शायद इसलिए ही वह अपने हर एक प्रोजेक्ट को बहुत ही रचनातमक और कलात्मक ढंग से करते हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए जेमीयन ने बताया,
"जब मैंने काम करना शुरू किया था तब ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज जैसे शब्द कम ही सुनने को मिलते थे। इसलिए पर्यावरण संरक्षण या फिर सस्टेनेबल लाइफ जैसे सिद्धांतों पर भी हम ज़्यादा बात नहीं करते थे। पर जैसे-जैसे काम बढ़ा और बड़े-बड़े प्रोजेक्ट किये तो मुझे एहसास हुआ कि हम 'यूज़ एंड थ्रो' के वातावरण में जी रहे हैं। हम अपनी ज़रूरत से कहीं ज़्यादा खरीदते हैं और इससे हम सिर्फ़ वेस्ट बढ़ा रहे हैं।"
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इसलिए जेमीयन ने अपने प्रोजेक्ट्स को बहुत अलग ढंग और नज़रिए से करना शुरू किया। उन्होंने ऐसा कुछ करने की पहल की जिससे कि समाज पर एक सकारात्मक प्रभाव हो। अपने हर एक प्रोजेक्ट में उनकी एक ही कोशिश रहती है - कम से कम कचरा उत्पन्न करना। वह जिन भी घरों में, ऑफिस में या फिर किसी अन्य साईट पर कोई प्रोजेक्ट करते हैं, वहां पहले से ही जो भी चीज़ें उनके क्लाइंट के पास उपलब्ध होती हैं, उसे ही रीसायकल या फिर अपसाइकिल करके वह एक नया रूप और रंग देते हैं।
वे आगे बताते हैं,
"जब भी मेरे पास कोई ग्राहक आता है तो मैं उन्हें सबसे पहले पूछता हूँ कि कौन-सी चीज़ें वे 'रिटायर' करने वाले हैं। सबसे पहले मैं जाकर वो चीज़ें देखता हूँ, बहुत बार लोग पुराना फर्नीचर, कोई व्हीकल आदि कबाड़ में देने वाले होते हैं। पर मेरे काम की चीज़ें मुझे कबाड़ में ही मिलती हैं। रॉ मटेरियल के लिए मेरा सबसे बड़ा स्त्रोत कबाड़ी वाला ही है।"
आपके लिए जो पुरानी घिसी-पीटी अलमारी है, उसमें जेमीयन को टेबल या फिर सोफा नज़र आता है। तो वहीं हो सकता है कि वो पुराने कबाड़े में पड़े सोफे को अपसाइकिल करके कंप्यूटर टेबल का रूप दे दें। पुराने टायर की मेज बन जाती है तो खाली बोतलों से सिर्फ़ प्लांटर्स ही नहीं लैम्प भी बनाते हैं।
रीसाइक्लिंग या फिर अपसाइकिलिंग से उनका मतलब साफ़ है - "किसी भी प्रोडक्ट की ज़िंदगी बढ़ाना।"
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हैदराबाद के सिकंदराबाद में सैनिकपुरी इलाके में स्थित उनका अपना ऑफिस- JNRO स्टूडियो, इस 'बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट' का सबसे अच्छा उदाहरण है। उनके ऑफिस में सभी मेज और कुर्सियाँ, पुराने कबाड़ में पड़े लकड़ी, ग्लास, मेटल आदि को इस्तेमाल करके बनायीं गयीं हैं। प्लंबिंग पाइप्स को खुबसुरत लैंप्स का रूप दिया गया है, तो प्लाईवुड के बचे-कुचे टुकड़ों को इकट्ठा करके बर्ड-हाउस बनाया गया है।
उनके दफ़्तर की छत बांस और एक ट्रांसपेरेंट ऐक्रेलिक शीट का इस्तेमाल करने बनायी गयी है। इससे उनके ऑफिस में सूरज की रौशनी ख़ूब आती है और उन्हें कोई एक्स्ट्रा लाइट ऑन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इतना ही नहीं, जेमीयन का ऑफिस इको-फ्रेंडली कॉन्सेप्ट पर भी खरा उतरता है। उनके ऑफिस में आपको सोलर पैनल और रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी मिल जाएंगे।
"मैं अपने ऑफिस को क्लाइंट के लिए उदाहरण की तरह इस्तेमाल करता हूँ। पर फिर भी इस तरह की एप्रोच हर किसी को समझ नहीं आती। हर एक ग्राहक को यह समझाना आसान नहीं। इसलिए मैं सिर्फ़ ऐसे ही प्रोजेक्ट अपने हाथ में लेता हूँ, जहाँ मैं समाज और पर्यावरण के लिए भी कुछ कर पाऊं," उन्होंने आगे कहा।
अपने ऑफिस के अलावा उन्होंने अपने एक और ख़ास प्रोजेक्ट के बारे में बताया। इसमें उन्होंने एक कार गराज को होम ऑफिस में तब्दील किया है। वह बताते हैं कि उस गराज में जो भी पुराना, इस्तेमाल में न आने वाला सामान था, वो सभी कुछ उन्होंने इस्तेमाल कर लिया।
पुराने फर्नीचर से लेकर बैलगाड़ी के पहिये तक, उन्होंने हर एक चीज़ को एक नया रूप देकर इस साईट पर लगाया। बैलगाड़ी का एक पहिया, एंट्रेंस पर डेकोर के लिए इस्तेमाल हुआ है तो दूसरे से कॉफ़ी टेबल बनायी गयी है। इसके अलावा अन्य बचे हुए भाग से हैंगिंग लाइट्स बनाई गयी हैं।
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ट्रेवलिंग और फोटोग्राफी करने वाले जेमीयन एक सर्टिफाइड ड्रोन पायलट भी हैं। वह सफलतापूर्वक अपने काम में ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। जेमीयन के मुताबिक ड्रोन टेक्नोलॉजी को लेकर अभी भी हमारे यहाँ कई सारे मिथक हैं। यह क्षेत्र अभी भी भारत में ज़्यादा एक्स्प्लोर नहीं हुआ है। पर ड्रोन टेक्नोलॉजी उनके काम में काफ़ी मददगार साबित हो रही है।
अंत में जेमीयन सिर्फ़ इतना कहते हैं कि बस एक बार अपने घर में नज़र घुमाइए और परखिये कि कितना सामान आप वाकई में इस्तेमाल कर रहे हैं। और बाकी कितना कुछ बस यूँ ही पड़ा हुआ है। लेकिन फिर भी हम और चीज़ें लाते जा रहे हैं, खरीदें जा रहे हैं।
"मैं सिर्फ़ यही कहूँगा कि मैं 'डी-क्लटर' में विश्वास रखता हूँ यानी कि हर चीज़ कम से कम में करना। अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को सिर्फ़ ज़रूरी और उचित चीजों में ही पूरा कर लेना। अपने सभी प्रोजेक्ट्स में रीसाइकिलिंग या अपसाइकिलिंग करके कम से कम कचरा करना। क्योंकि जो दूसरों को वेस्ट दिखता है, उसमें मैं एक नई ज़िंदगी तलाशता हूँ।"
द बेटर इंडिया, जेमीयन राव की इस सोच की सराहना करता है और उम्मीद करता है कि हम सभी कम से कम कचरा उत्पन्न करें और किसी भी चीज़ को फेंकने से पहले उसके अपसाइकिलिंग या रीसायकलिंग पर विचार करें। यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप जेमीयन राव को [email protected] पर मेल कर सकते हैं!
संपादन - मानबी कटोच