दुर्गा पूजा! हर बंगाली के लिए यह पर्व हर साल ढेरों खुशियां लेकर आता है। देश के किसी भी कोने में चले जाईये, दुर्गा पूजा के अवसर पर आपको वहां रह रहे सभी बंगाली एक ही पंडाल में नज़र आएंगे। आरती, भोग प्रसाद, अड्डा – इन सभी का एक ही केंद्र होते हैं ये पूजा पंडाल। वहीं, कोलकाता के दुर्गा पूजा की तो बात ही अलग है, जहाँ सबसे ज़्यादा बंगालियों का वास है और सबसे ज़्यादा पूजा पंडालों का भी। यहाँ के अलग-अलग पूजा पंडालों का उद्देश्य माँ की आराधना करना ही नहीं होता, बल्कि सामाजिक मुद्दों के प्रति सभी को जागृत करना भी होता है।
इसी कड़ी में इस बार कोलकाता के बेहाला के बारिशा क्लब दुर्गा पूजा समिति ने माँ दुर्गा की मूर्ती को एक प्रवासी मज़दूर माँ का रूप दिया है।
कोरोना के इस विषम समय में प्रवासी मज़दूरों का दर्द हम में से किसी से भी छुपा नहीं है। गोद में, कांधे पर और हाथ पकड़े हुए अपने बच्चों को लिए ऐसी कई प्रवासी मज़दूर माताएं बिना हिम्मत हारे निकल पड़ी थीं अपने-अपने गाँवों की ओर।
उन माँओं को सलाम करने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता था।आईये आप भी देखें माँ के इस रूप की एक झलक –
बरीशा क्लब की इस बार की थीम है ‘त्राण’, जिसका मतलब है ‘राहत’। इस थीम के ज़रिये यह पूजा पंडाल अपने -अपने गाँवों को लौटी माताओं के वापस आने का जश्न मनाना चाहता है, ठीक उसी तरह जैसे हर साल माँ दुर्गा के आने पर हम जश्न मनाते हैं।
इस थीम का आईडिया रिंटू दास का है, जिन्हें शिल्पकार बिकाश भट्टाचार्य की एक पेंटिंग से इसकी प्रेरणा मिली। इसके बाद उनके साथी कलाकार पल्लब भौमिक ने मूर्ती रूप में इसे साकार किया।
इस सोच और कलाकृति को साकार रूप देने के लिए इस कलाकार को सलाम!
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संपादन – मानबी कटोच
सभी तस्वीरें साभार – ट्विटर और बरीशा क्लब फेसबुक पेज
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