अक्सर मारवाड़ी शादियों में आपने देखा होगा कि बारात के स्वागत के समय ‘तोरण मारने’ की रस्म होती है। दूल्हे को अपनी तलवार से घर के द्वार पर बंधी ‘तोरण’ को मारना होता है। इस रस्म के पीछे एक लोककथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक तोरण नामक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था। जब दूल्हा द्वार पर आता, तो उसके शरीर में प्रवेश कर, दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। एक बार जब एक राजकुमार शादी करने के लिए, दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था, तब अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। तभी से ‘तोरण मारने’ की प्रथा प्रचलित हो गयी।
हालांकि, ‘तोरण’ का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। कहते हैं कि संस्कृत के ‘तोरणा’ शब्द से ‘तोरण’ बना है, जिसका अर्थ होता है – प्रवेश करना। समय के साथ, तोरण शब्द के अर्थ और प्रचलन में बदलाव आया है।
जैसे बौद्ध आर्किटेक्चर में ‘तोरण’ का इस्तेमाल किया गया, जिसका मतलब होता है ‘पवित्र प्रवेशद्वार।’ मौर्य काल में बने साँची स्तूप में तोरण का प्रमाण मिलता है। भारत के अलावा, जापान और चीन में भी प्रवेशद्वार के निर्माण के लिए, इससे प्रेरणा ली गयी है। इन्हें बनाने का स्टाइल भले ही अलग हो, लेकिन इनके पीछे की सोच में समानता है।
आर्किटेक्चर के अलावा, तोरण हमारी संस्कृति और हस्तकला का भी बहुत अभिन्न अंग है। भारत में कई जगहों पर, तोरण को ‘बंदनवार’ भी कहा जाता है। हिंदू धर्म को माननेवाले घरों में कोई त्यौहार, पूजा या दूसरा कोई भी शुभ काम हो, घर के दरवाजे पर आम के पत्तों या गेंदे के फूलों के बंदनवार लगाना जरूरी होता है। इसके पीछे मान्यता है कि घर के दरवाजे पर बंदनवार लगाने से, कोई नकारात्मक ऊर्जा घर के अंदर नहीं आती है।
अलग-अलग प्रांतों के अलग तोरण:
भारत के हर एक प्रांत की अपनी पहचान है। खासकर बात जब हस्तकला और कारीगरी की हो, तो हमारे देश में बहुत सी चीजें घर में ही हाथों से बनाई जाती हैं। इनमें सालों से घर के द्वारा पर लगने वाली तोरण भी शामिल है। दक्षिण भारत में आपको आम के पत्तों की, तो उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में गेंदे के फूलों के तोरण मिलेंगे। कई जगहों पर अब लोग तोरण बनाने के लिए, आम के पत्ते और गेंदे के फूल, दोनों का इस्तेमाल करते हैं। कहीं-कहीं पर, लोग धान की फसल आने पर, इसे भी अपने घर के द्वारा पर तोरण की तरह लगाते हैं।
प्रकृति के अलावा, और भी कई चीजों से खूबसूरत तोरण या बंदनवार हमारे यहां बनाए जाते हैं। जैसे कि राजस्थान और गुजरात में आपको बहुत अलग-अलग तरह के बंदनवार मिलेंगे। समय के साथ, इनके डिज़ाइन, स्टाइल और इस्तेमाल के तरीकों में काफी बदलाव आया है। बहुत से लोग धार्मिक आस्था के चलते, अपने घर में बंदनवार लगाते हैं। क्योंकि कहते हैं कि बंदनवार घर के द्वार पर लगाने से लक्ष्मी देवी आपके घर आती हैं। जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। वहीं, बहुत से लोगों के लिए आज यह, होम डेकॉर याने घर सजाने की चीज है।
अलग-अलग क्षेत्रों में, अपने रीति- रिवाजों और कलाओं के अनुसार बंदनवार बनाए जाते हैं। जैसे कपड़ों पर कशीदाकारी करके, बहुत सुंदर बंदनवार बनते हैं, तो कहीं-कहीं मोतियों, छोटे-छोटे खिलौनों, घंटी/घुँघरू आदि को इस्तेमाल करके रंग-बिरंगे तोरण बनाते हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी महिलाएं ब्याह-शादी या त्यौहार के मौकों पर खुद ही बंदनवार बनती हुईं दिख जाएंगी। लेकिन शहरों में ज्यादातर लोग, बाजार से ही अपनी पसंद के तोरण खरीदते हैं। जिस कारण, ग्रामीण कारीगरों को भी रोजगार मिल जाता है।
बड़े-बड़े शहरों के बाजारों में पहुँचने के कारण, बंदनवार अलग-अलग जगहों के लोगों के घरों का भी हिस्सा बन गयी है। क्योंकि मेट्रो शहरों में अलग-अलग जगहों से आकर बसे हुए लोग एक-दूसरे की संस्कृति को जानना-समझना शुरू करते हैं। देखते ही देखते, वे एक दूसरे की संस्कृति को अपनाना भी शुरू कर देते हैं। और इसी तरह, बहुत से रीति-रिवाजों या इनके प्रतीकों को घर में जगह मिलने लग जाती है। दिलचस्प बात यह है कि तोरण या बंदनवार अब सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है।
विदेशों में भी बढ़ रही मांग
पिछले कुछ समय में सोशल मीडिया और अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की मदद से भारत की तोरण जैसी पारंपरिक चीजें, विदेशों में भी अपनी जगह बना रही हैं। भारतीयों का दूसरे देशों में पलायन इस बदलाव की बड़ी वजह है। भारत में जिस तोरण को आप अपने घर में बना सकते हैं, या फिर बाजार से ज्यादा से ज्यादा 200-250 रुपए तक की कीमत में खरीद सकते हैं। उसी तोरण की कीमत दूसरे देशों में amazon पर छह-सात डॉलर से शुरू होकर 30 डॉलर तक भी जाती है। हालांकि, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या यूरोप में तोरण ज्यादातर भारत से ही एक्सपोर्ट किये जाते हैं।
ऐसे में, यह भारतीयों के लिए काफी अच्छा व्यवसाय भी है। जयपुर के क्राफ्ट वाटिका के फाउंडर, कृष्णा कुमार बंसल कहते हैं, “भारतीय हेंडीक्राफ्ट की हमेशा से ही विदेशों में मांग रही है। हमारे अपने देश से ज्यादा, विदेशी लोगों को हाथ से बनी चीजों की तलाश रहती है। जैसे होम डेकॉर, ज्वेलरी, कपड़े या दूसरी चीजें। इस बढ़ती मांग के कारण, हम भी अपने पारंपरिक कारीगरों की कला को ग्लोबल स्तर पर पहुंचा पा रहे हैं।”
साल 2014 से, बंसल ‘क्राफ्ट वाटिका’ चला रहे हैं, जिसके जरिये वह न सिर्फ भारत में, बल्कि दूसरे देशों में भी हाथ से बनी साज-सज्जा की चीजें ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। उन्होंने बताया कि तोरण के अलावा, और भी भारतीय पारंपरिक चीजों की विदेशों में मांग है। “घर के दरवाजे पर तोरण लगाना हमारी संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। लेकिन विदेशों में लोगों के लिए यह कला की बात है। उनकी दिलचस्पी तोरण को बनाने में लगने वाली हस्तकला में है। कई बार वहां पर लोग इसे अपने घर में सिर्फ सजावट के लिए भी लगाते हैं। इसके अलावा, विदेशों में बसे भारतीयों के लिए यह एक अच्छा उपहार भी होता है,” उन्होंने बताया।
अगर आप कभी US के अमेज़ॉन वेबसाइट पर जाकर, अलग-अलग तोरण के लिए ग्राहकों के फीडबैक पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि अमेरिका के नागरिकों के बीच यह सजावट के तौर पर काफी प्रचलित हो रही है। इस कारण विदेशों में इसकी मांग बढ़ने लगी है। क्राफ्ट वाटिका के उत्पाद अमेरिका के अलावा यूरोप के दूसरे देशों में भी एक्सपोर्ट हो रहे हैं।
बंसल कहते हैं कि उनका 40% रेवेन्यू एक्सपोर्ट से आता है। कपड़ों और मोतियों से बनाये गए तोरण के अलावा, बहुत से लोग आर्टिफीशियल आम के पत्तों और गेंदे के फूलों के तोरण भी दूसरे देशों में बेच रहे हैं। व्यवसायिक दृष्टि से भारतीय लोगों के लिए यह बहुत अच्छा विकल्प है। आज भारत के कई हेंडीक्राफ्ट स्टोर और स्टार्टअप दूसरे देशों में अपनी पहचान बना रहे हैं।
संपादन- जी एन झा
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