मार्च 2020 में कोविड-19 के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए, पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई थी। लॉकडाउन की अचानक हुई घोषणा से कई लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा, कई लोगों की ज़िंदगी ठहर सी गई और व्यापार पर भी इसका ख़ासा असर पड़ा। महाराष्ट्र के अहमदनगर में किसानों की स्थिति भी कुछ अलग नहीं थी। जो किसान मुंबई, पुणे और अन्य पड़ोसी शहरों में सब्जियों और फलों को बेचा करते थे, उनके पास अचानक सब्जियों का स्टॉक बढ़ गया। अपनी उपज बेचने के लिए, कोई बाज़ार भी नहीं था। फिर कैसे कुछ किसानों ने मिलकर शुरू की एक ‘Farmer Producer Company’, आइये जानते हैं।
आज हम आपको महाराष्ट्र के अहमदनगर के कुछ ऐसे ही किसानों की कहानी बताएंगे, जिन्होंने परेशानी के इस समय में न केवल नए आईडिया के साथ प्रयोग किया बल्कि संकट के समय को अवसर में बदल दिया। इस इलाके से करीब एक दर्जन किसान व्हाट्सऐप के जरिए जुड़े और एक योजना के तहत साथ आए। अप्रैल 2020 में, ये सभी सोशल मीडिया से जुड़े ताकि पारंपरिक बिचौलियों और खरीदारों पर भरोसा करने के बजाय, सीधा उपभोक्ताओं के साथ संपर्क किया जा सके।
करीब एक साल बाद, 2021 में, यह ग्रुप अब 480 किसानों का एक समुदाय बन गया है और इन किसानों ने मिलकर ‘KisanKonnect’ नाम से एक कंपनी की स्थापना की है। इस कंपनी के ज़रिए, वे सीधा ग्राहकों को अपनी उपज बेचते हैं। ग्राहकों से सीधे जुड़कर, सब्जियों की एक लाख पेटी बेचने और 6.6 करोड़ रुपये की इकाई स्थापित करने की योजना बनाई है।
11 से 480 तक पहुँचने का सफर
जुन्नर के एक 39 वर्षीय किसान और समूह के संस्थापक सदस्य मनीष मोरे कहते हैं, “क्षेत्र के किसान सोशल मीडिया पर पहले से ही एक दूसरे के संपर्क में थे और समाधान पर विचार कर रहे थे। एक बार जरूरी चीजों के लिए जब आवाजाही शुरु हो गई तो 11 किसानों ने साथ मिलकर, एक डिजिटल बाज़ार बनाने की कोशिश की।”
मनीष ने एग्रीकल्चर ऐंड बिज़नेस मैनेजमेंट में ग्रैजुएशन (B.Sc.) किया है। उन्होंने बिग बाज़ार और रिलायंस जैसी रिटेल कंपनियों के साथ काम भी किया है। वह कहते हैं कि उन्हें अच्छी तरह से पता था कि ये कंपनियां किसानों से क्या चाहती हैं। मनीष बताते हैं कि उन्हें कंपनी की नीतियों के बारे में भी पता था, जो हमेशा किसानों के पक्ष में नहीं होती हैं। मनीष ने द बेटर इंडिया को बताया कि खाद्य उत्पादक, हमेशा कॉर्पोरेट्स द्वारा मांग की गई सब्जियों की पूरी सूची देने में सक्षम नहीं होते हैं।
मनीष ने पहले ही अपनी नौकरी छोड़ दी थी और 2008 में खेती करना शुरू कर दिया था। वह कहते हैं, “मैंने कंपनियों के साथ काम करने की कोशिश की, लेकिन कभी सफल नहीं हुआ।” बाजार की उनकी समझ के कारण, वह इन दोनों स्तर पर अंतर को अच्छे से समझ पा रहे थे। खुदरा विक्रेताओं पर निर्भर रहने की बजाय, उन्होंने अन्य किसानों को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचने का सुझाव दिया।
मनीष कहते हैं, “अप्रैल में, हमने अपने नेटवर्क के माध्यम से मुंबई और पुणे में कई आवासीय सोसाइटी तक पहुँचना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे, हमारे बारे में अन्य लोगों को पता चलना शुरु हो गया। हम 100 आवासीय सोसाइटी के संपर्क में आए, जहाँ हम बिना किसी बिचौलिए के हर हफ्ते सब्जी की पेटियां (वेजिटेबल बास्केट) सप्लाई करते हैं।”
इस बारे में विस्तार से बात करते हुए, मनीष कहते हैं कि चार किलो से लेकर 12 किलो तक की पेटियां सप्लाई की जाती हैं। वह कहते हैं, “अलग-अलग आकार की पेटियों में, हम उसी मात्रा में कई तरह की सब्जियां दे रहे थे। इसके बाद हमने ‘वेजिटेबल बास्केट’ के अलावा, ‘फ्रूट बास्केट’ और ‘इम्यूनिटी बास्केट’ भी सप्लाई करनी शुरू कर दी। इम्यूनिटी बास्केट में ऐसी कई तरह की सब्जियां थी, जो शरीर के इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।” मनीष आगे बताते हैं, “हमने बाद में ग्राहकों की मांग के अनुसार, पेटियां तैयार करनी भी शुरु कर दी।”
24 घंटे के भीतर ताजा सब्जियों की डिलिवरी
अहमदनगर जिले में राहता के एक और एमबीए किसान, श्रीकांत ढोक्चावले का कहना है कि ‘डायरेक्ट सेलिंग कॉन्सेप्ट’ यानी ग्राहकों को सीधे उत्पादन बेचने के कांसेप्ट ने बिचौलियों को हटा दिया है। वह कहते हैं, “हमने एक नया डिलिवरी मॉडल बनाया, जिसके अंतर्गत हम फल-सब्जियों की सुरक्षित पैकेजिंग कर, उन्हें हाइजीनिक पेटियों में ग्राहकों के घर तक 24 घंटे से भी कम समय में पहुँचा रहे हैं।”
विले पार्ले की ईशा चौगुले कहती हैं, “मुझे लॉकडाउन के शुरुआती महीनों के दौरान, सब्जियां खरीदने में काफी परेशानी हो रही थी। तब मेरे एक दोस्त ने मुझे इस कंपनी के बारे में बताया और यहाँ से सब्जियां खरीदने की सलाह दी। पिछले छह महीनों से, मैं इनकी नियमित ग्राहक बन गई हूँ।”
ईशा कहती हैं कि वेबसाइट पर किए गए, सभी ऑर्डर निर्धारित समय के भीतर डिलिवर हो जाते हैं और हाइजीनिक रूप से पैक होते हैं। वह बताती हैं, “मेरी सास की उम्र 77 वर्ष है। इसलिए भी मुझे परिवार की सुरक्षा और स्वास्थ्य के मामले में, विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इस कंपनी ने कभी मुझे निराश नहीं किया है। स्थानीय बाजार में उपलब्ध सब्जियों की तुलना में, यहाँ की सब्जियां ज्यादा ताजा और स्वस्थ होती हैं।”
पहले महीने में ही किसानों को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली, उन्होंने 40 लाख रुपये का कारोबार किया। इस सफलता को देखते हुए, कई किसान उनके साथ जुड़ने लगे।
श्रीकांत कहते हैं, “पहले छह महीने, हमने व्हाट्सऐप ग्रुप्स के माध्यम से संचालन किया। इसके बाद, हमें व्हाट्सऐप पर एक साथ बहुत सारे ग्राहकों के ऑर्डर लेना, मुश्किल सा हो गया था। फिर हमने अपने आईटी सेक्टर के दोस्तों से संपर्क किया और वेबसाइट तैयार करवाई ताकि वहाँ ग्राहकों के ऑर्डर आसानी से लिये जा सके।”
श्रीकांत बताते हैं कि बिना किसी बिचौलिए के, किसानों द्वारा खुद से बनाई गई ‘फार्म-टू-डोरस्टेप्स’ सप्लाई चेन ने, उन्हें एक अलग और नई पहचान दी है। वह कहते हैं “इस काम से हमारी आय में भी वृद्धि हुई है क्योंकि, अब निर्माता और खरीदार के बीच ही व्यापार होता है।”
वर्तमान में, कंपनी ग्राहकों से अपने एक मोबाइल ऐप, वेबसाइट और कस्टमर केयर सेंटर के जरिए ही आर्डर स्वीकार करती है। कस्टम केयर सेंटर में अंग्रेज़ी बोलने वाले स्टाफ हैं, जो पहले मेट्रो शहरों में कॉल सेंटर में काम करते थे। कंपनी ने स्थानीय विक्रेताओं से लॉजिस्टिक्स के लिए कई वाहन भी किराए पर लिये हैं।
श्रीकांत का कहना है कि यह पहल, इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि संकट के समय किसान कैसे एक साथ मिलकर, अपने समुदाय के लिए काम करते हैं और समस्या का समाधान निकाल सकते हैं।
मूल लेख- हिमांशु नित्नावरे
संपादन- जी एन झा
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