आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाते हैं, जिन्होंने महज चौथी कक्षा तक पढ़ाई की लेकिन जैविक खेती में उनका ज्ञान किसी भी विशेषज्ञ को मात देता है। यह शख्स हैं सिक्किम के धनपति सपकोटा।
धनपति ने जैविक सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में अलग पहचान बनाई है। 66 वर्षीय धनपति सपकोटा का दावा है कि वह सिक्किम के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्होंने जुकुनी फारसी नामक खीरे के आकार की कद्दू की प्रजाति उगाई। कद्दू का बीज काठमांडू से लाया गया था। सिक्किम में यह कद्दू बहुत ही लोकप्रिय है और यही वजह है कि कद्दू की इस प्रजाति का नाम सपकोटा के ही नाम पर ‘सपकोटा फरासी’ रखा गया है।
प्रगतिशील किसान धनपति सपकोटा ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे बचपन से ही खेती में रुचि थी। पिता से खेती के बारे में ढेर सारी जानकारी मिली। उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया।”
शुरूआत में उन्होंने घरेलू उपभोग के लिए धान और मक्का की जैविक तरीके से खेती की। जैविक खेती की ट्रेनिंग लेने के बाद वह पूरी तरह से जैविक किसान बन गए। अब वह क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रदेश के उद्यान विभाग से वह लगातार संपर्क में रहते हैं। इन दिनों वह चेरी पेपर, शिमला मिर्च, टमाटर, कद्दू और ब्रोकली की खेती कर रहे हैं।
धनपति सपकोटा ने 2003 में जैविक खेती शुरू की। उन्हें 2011 में कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने की वजह से स्टेट अवार्ड भी मिला, जिसके बाद राज्य में उनकी पहचान जैविक खेती के संवाहक के रूप में होने लगी। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। वह कहते हैं, “मैंने अब तक जो कुछ हासिल किया है, वह मुझे प्रकृति से मिला है। जैविक खेती, खेत और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए आवश्यक है, यह हम सभी को समझना होगा।”
धनपति सपकोटा ने पशुपालन और पशुधन प्रबंधन में भी जोरथांग स्थित सेंटर से ट्रेनिंग ली है, जिसके बाद उन्होंने वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी तैयार किया।
मिला 2.5 लाख रुपये का नगद इनाम
2008 गंगटोक में हुए इंटरनेशनल फ्लावर फेस्टिवल में बेस्ट वेजीटेबल ग्रोअर कैटेगरी में उन्हें 2.5 लाख रुपये का इनाम मिला था। उन्होंने उत्तराखंड के उद्यान विभाग से भी तीन सप्ताह का बागवानी प्रशिक्षण लिया है।
सिक्किम के इस चर्चित जैविक किसान ने महज 1900 बीजों से 19 क्विंटल चेरी पेपर उगाने का भी रिकार्ड बनाया है, जिसकी कीमत डेढ़ लाख रुपए से अधिक थी।
उनके फार्म को देखने और उनसे सीखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते रहते हैं। वह इन सभी किसानों को बेहतर जैविक खेती करने का सुझाव देते हैं।
खेती में है मुनाफा
सपकोटा कहते हैं कि दो एकड़ जमीन में खेती से उन्हें करीब तीन लाख रुपये की कमाई हो जाती है। टेक्नोलॉजी मिशन के तहत उन्होंने मिश्रित सब्जियाँ भी उगाई हैं। उद्यान विभाग की ओर से उन्हें बीज, कीटनाशक और अन्य सहयोग भी प्राप्त हो रहा है। वह बताते हैं, “यदि अच्छा बीज धैर्य के साथ बोया जाए तो उसके अच्छे परिणाम सामने आते हैं। अधिकतम लाभ के साथ ही बेहतर फसल उगाने पर फोकस जरूरी है। मिट्टी को सबसे पहले जैविक खेती के लिए तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती है।”
आने वाला समय जैविक खेती का
धनपति सपकोटा कहते हैं कि आने वाला समय जैविक खेती का ही है। वह कहते हैं, “इस समय लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान अपने स्वास्थ्य को लेकर है। कोविड-19 ने लोगों के लिए जीवन को मुश्किल बनाया है, लेकिन कुछ जरूरी सबक भी दिए हैं और उनमें सबसे बड़ा सबक यह है कि अपने खान-पान को बदलना जरूरी है। यदि ऐसा न किया गया तो शरीर पहले ही रासायनिक तत्वों की वजह से जहरीले खाद्य पदार्थों का शिकार हो चुका है।”
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