लड़के कसते थे फब्तियां, इन चेंज लीडर्स ने पूरे गांव को दिखाई नई राह

Gender Justice

भारत में महिलाओं की स्थिति काफी सोचनीय है। उन्हें अपने घर से लेकर पूरे समाज में कई तरह की हिंसा और भेदभाव से गुजरना पड़ता है। लेकिन ‘ब्रेकथ्रू इंडिया संस्था’ ने अपने प्रयासों से समाज में एक नई उम्मीद कायम की है। जानिए कैसे!

भारत में स्कूली लड़कियों को अपनी पढ़ाई के दौरान, कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीबीपुर गांव की लड़कियों को भी स्कूल जाने के दौरान कई बार लड़कों के फब्तियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन वहां की कुछ लड़कियों ने मिलकर कुछ ऐसा प्रयास किया, जिससे सिर्फ स्कूली लड़कियों को ही नहीं, पूरे गांव की महिलाओं को एक नई मजबूती मिली है। 

यह कहानी है बीबीपुर गांव की ही रहने वाली शिवानी और अनुराधा की, जो प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठन ब्रेकथ्रू इंडिया की टीम चेंज लीडर हैं। यह संस्था महिलाओं और लड़कियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए मजबूती से काम कर रही है।

इस कड़ी में 18 वर्षीया शिवानी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं ब्रेकथ्रू संस्था से करीब तीन साल पहले जुड़ी थी। मुझे इसके बारे में माला दीदी से पता चला था। जब मैं आठवीं में पढ़ती थी, तो उस दौरान वह हमारे स्कूल में एक फील्ड स्टाफ के तौर पर, लड़कियों को अपने अधिकारों (Gender Justice) के प्रति जागरूक करने आई थीं। फिर, इसे लेकर हमने गांव में एक नुक्कड़ नाटक भी किया, जिसका लोगों पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा।” 

Domestic Violence, Women Empowerment, Gender Justice
सांकेतिक तस्वीर

वह आगे बताती हैं, “हमारे गांव में लड़कियां घर से अकेले शहर नहीं जाती हैं। लेकिन, ब्रेकथ्रू संस्था से जुड़ने के बाद, मुझ में हिम्मत आ गई और गांव के हाई स्कूल से निकलने के बाद, इंटरमीडिएट में दाखिला लेने के लिए, मैं अकेले सीनियर सेकेंडरी स्कूल चली गई, जो यहां से कुछ किलोमीटर दूर है।”

फब्तियां कसते थे लड़के

फिलहाल 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली शिवानी बताती हैं, “हाई स्कूल जाने के रास्ते में एक पुलिया पड़ती है। उस पर कुछ लड़के बैठकर स्कूल जाने वाली लड़कियों को तंग किया करते थे। मैंने यह बात स्कूल में बताई, लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं रहा।”

इसके बाद, शिवानी स्कूल से पास आउट हो गईं, लेकिन उन्होंने ब्रेकथ्रू संस्था का साथ नहीं छोड़ा, जहां वह “तारों की टोली” की सदस्य थीं और फिलहाल संस्था की महत्वाकांक्षी “टीम चेंज लीडर” पहल की सदस्या हैं।

वह बताती हैं, “हमने लड़कियों को होने वाली इन परेशानियों को पीआरआई फॉलोअप मीटिंग में उठाया और अपने ग्राम प्रधान और अन्य प्रभावी लोगों से जरूरी कदम उठाने की अपील की। इसके बाद, उन्होंने गांव के दो-तीन लड़कों पर कानूनी कार्रवाई करने की हिदायत दी। इसके बाद, उन्होंने लड़कियों से कभी कोई बद्तमीज़ी नहीं की।”

सुरेन्द्र कुमार रावत, जो कि बीबीपुर के प्रधान हैं, कहते हैं, “मई 2021 में ग्राम प्रधान चुने जाने के बाद, मैंने एक बार पीआरआई मीटिंग में हिस्सा लिया है। इस दौरान गांव की कुछ लड़कियों ने हमें बताया कि कुछ अराजक तत्व उन्हें स्कूल जाने के दौरान परेशान करते हैं। इसके बाद, हमने उन्हें सख्त चेतावनी दी कि यदि उन्होंने दोबारा ऐसा किया, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। किसी भी समाज में महिलाओं के सम्मान (Gender Justice) से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

Domestic Violence, Women Empowerment, Gender Justice
टीसीएल में ट्रेनिंग

वह आगे बताते हैं, “लड़कियों ने एक खेल के मैदान की भी मांग रखी थी, हमलोगों ने एक मैदान चिन्हित किया है, जिस पर कुछ लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है। फिलहाल मैदान पर अवैध कब्जा हटाने का प्रयास चल रहा है, जल्दी ही उसे कब्जा मुक्त कराकर गांव के बच्चों के खेलने के लिए उपलब्ध करा दिया जाएगा।”

स्कूल ड्रापआउट पर लगाम लगाने की कोशिश

इस विषय में बीएससी की अंतिम वर्ष की छात्रा और टीम चेंज लीडर अनुराधा बताती हैं, “हमारे गांव में हर साल 50 से अधिक लड़कियां दसवीं पास करती हैं। लेकिन करीब आधी लड़कियां भी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाती। इसकी मूल वजह है कि गांव से कॉलेज काफी दूर है और यहां सड़कों की स्थिति खराब होने के साथ ही, यातायात की सुविधा भी अच्छी नहीं है।”

19 वर्षीया अनुराधा आगे बताती हैं, “इन्हीं चिन्ताओं को हमने ग्राम पंचायत की बैठकों में उठाया है और मांग की है कि गांव में कम से कम 12वीं तक की पढ़ाई हो, ताकि लड़कियां पढ़ सकें और अपने गांव-घर का नाम रौशन कर सकें।”

आज लड़कियों की पढ़ाई छूटते ही, शादी के बंधन में बंधना आम है। इस वजह से उन्हें कम उम्र में ही कई मानसिक और शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

अनुराधा कहती हैं कि आज लड़कों की तरह, लड़कियों को भी पढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि लड़कों की तरह लड़कियां भी घर संभालने के साथ-साथ, अपनी पहचान भी बना सकती हैं। इसलिए उनके साथ बिना कोई भेदभाव किए, उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए।

Domestic Violence, Women Empowerment, Gender Justice
पीआरआई मीटिंग में होती हैं टीम चेंज लीडर्स की महत्वपूर्ण भूमिका

अनुराधा और शिवानी एक स्वर में कहती हैं, “गांव में अपनी सक्रिय भूमिका के कारण, पीठ पीछे कई लोग हमारे बारे में कई तरह की बातें भी करते हैं। लेकिन, हमें अपने घर से पूरी मदद मिलती है। इसलिए हम उनकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं और अपने मकसद में जुटे रहते हैं।”

वे आगे बताती हैं, “हम बैठकों के लिए लड़कियों और महिलाओं को कई बार बुलाने के लिए जाते हैं और कई लोग कह देते हैं कि यह समय की बर्बादी है। लेकिन, इससे हमारा मनोबल नहीं टूटता है और हम उन्हें अपने प्रयासों के नतीजे को लेकर जागरूक करने का प्रयास जारी रखते हैं।”

टीम चेंज लीडर का मकसद

समाज में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए बच्चों को शुरु से ही इस दिशा में शिक्षित करना जरूरी है। ब्रेकथ्रू संस्था के “टीम चेंज लीडर” पहल में अधिकांश तौर पर, 19 से 25 साल के वैसे युवाओं को मौका दिया जाता है, जो संस्था के साथ टीसीएल के रूप में जुड़ने से पहले भी संस्था के कार्यक्रमों में अपनी सक्रिय भूमिका निभा चुके हों। इस पहल की शुरुआत, बीते साल हुई थी।

इस पहल का मकसद समाज में लैंगिक समानता (Gender Justice) को बढ़ावा देते हुए, विकास कार्यों को एक नया आयाम देना है। ये चेंज मेकर्स स्थानीय स्तर पर सोशल मैपिंग में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि किसी गांव में स्कूल, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं कैसी हैं। 

इस विषय में ब्रेकथ्रू संस्था की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्य कहती हैं, “हमारा उद्देश्य युवाओं को समय के साथ बदलाव के लिए प्रेरित करना है। हम उनके साथ काम करते हैं, ताकि उन्हें लैंगिक समानता (Gender Justice) को लेकर एक बेहतर दृष्टिकोण बनाने में मदद मिले और उनसे शुरू हुई बदलाव की प्रक्रिया पूरे समाज तक पहुंचे। हमारे टीम चेंज लीडर्स और किशोर-किशोरी सशक्तिकरण कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों को सकारात्मक सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए ही शुरू किया गया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।”

Domestic Violence, Women Empowerment, Gender Justice
सोहिनी भट्टाचार्य

वहीं, ब्रेकथ्रू के लखनऊ क्षेत्र के ट्रेनिंग एंड कम्यूनिटी मोबिलाइजेशन मैनेजर मनीष कुमार बहल कहते हैं,“कभी-कभी देखने को मिलता है कि गांव-घरों में किसी खास समुदाय के पास काफी ज्यादा सुविधाएं हैं, जबकि किसी-किसी के पास कुछ नहीं। समाज में इसी फर्क को मिटाने के लिए, हमने सोशल मैपिंग कांसेप्ट को शुरू किया। इसके तहत हम लड़कियों और महिलाओं की जरूरत क्या है, जैसे कि उनके लिए शिक्षा व्यवस्था, आने-जाने के रास्तों को सुरक्षित करना भी निर्धारित करते हैं।”

वह आगे बताते हैं, “सोशल मैपिंग के लिए समुदाय के किशोर-किशोरियों को ट्रेनिंग देकर, उन्हें बदलाव की पहल से जोड़ा जाता है। यह एक ऐसा प्रयास है, जिसका समाज पर एक स्थायी प्रभाव देखने को मिलेगा। ये चेंज मेकर्स, स्थानीय स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। जबकि हमारा काम उन्हें सही मार्गदर्शन देना है।”

मनीष बताते हैं कि सोशल मैपिंग का कांसेप्ट, सोशल ऑडिट से आया है। जिसके तहत, पंचायतों में एक खुली बैठक होती है कि पैसों का इस्तेमाल कहां और कैसे होगा।  

संस्थान द्वारा सोशल मैपिंग के लिए हर साल मीटिंग होती है। फिर, इन बैठकों में चुने गए मुद्दों को पीआरआई फॉलोअप मीटिंग में उठाया जाता है।

क्या है पीआरआई फॉलोअप मीटिंग

इसे लेकर मनीष कहते हैं, “पीआरआई यानी पंचायती राज इंस्टिट्यूशन फॉलो अप मीटिंग में हम पहले ग्राम प्रधानों और अन्य चुने गए लोगों की ट्रेनिंग करवाते हैं। इस दौरान, उन्हें गांव में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात करने की सलाह दी जाती है। साथ ही, यह भी अपील की जाती है कि ग्राम पंचायत विकास योजनाओं को बनाने से पहले हमें जानकारी जरूर दी जाए।”

आगे वह बताते हैं, “फिर, हम इन योजनाओं में महिलाओं (Gender Justice) से जुड़े मुद्दों को शामिल करने का प्रयास करते हैं। क्योंकि, पंचायत स्तर पर महिलाओं की समस्याओं को हल करने से, समाज को एक खास संदेश दिया जा सकता है और उनकी दशा काफी सुधारी जा सकती है। हमने इस मॉडल को लखनऊ के लालपुर गांव में भी अपनाया है, जिसे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।”

ब्रेकथ्रू संस्था ने पीआरआई फॉलोअप मीटिंग की शुरुआत चार साल पहले की थी। यह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज संकल्पना पर आधारित है। 

स्थानीय स्तर पर सुलझायी जाती हैं महिलाओं की समस्याएं

मनीष बताते हैं, “ग्राम प्रधानों का अपना एजेंडा होता है, क्योंकि चुने जाने से पहले वह कई लोगों से अलग-अलग वादे करते हैं और उनकी कोशिश हमेशा अपने इन वादों को पूरा करने की होती है। लेकिन, महिलाओं का मुद्दा (Gender Justice) कभी उनकी प्राथमिकता नहीं होती है। इसलिए पीआरआई मीटिंग के जरिए हम, महिलाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर सीधा संवाद स्थापित करते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में हमें उन्हें अपनी मांग के लिए राजी करने में लंबा समय लग जाता है। हम साल में दो-तीन मीटिंग कर पाते हैं।”

वह बताते हैं कि आबादी के अनुसार, पंचायती राज सदस्यों की संख्या 9 से 15 हो सकती है। इनका काम गांव के स्तर पर फैसला लेना होता है। इसमें ग्राम प्रधान और अन्य चुने गए सदस्यों के अलावा समुदाय के लोगों और युवाओं की भागीदारी होती है।

कोरोना महामारी के दौरान लोगों की मदद

मनीष बताते हैं, “कोरोना महामारी के दौरान, लोगों की आमदनी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इस वजह लोगों के बीच आपसी कलह बढ़ने के साथ ही, उन्हें कई अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। लेकिन हमारे टीम चेंज लीडर्स ने इस दौरान अलग-अलग तरीकों से लोगों की मदद की है।”

वह बताते हैं, “टीसीएल ने इस दौरान न सिर्फ घरेलू हिंसा (Domestic Violence) को कम करने का प्रयास किया, बल्कि ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए पैसे और पुराने कपड़े जमा कर, मास्क और सैनिटाइजर जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध कराई। यह कुछ ऐसी जगहें थी, जहां सरकारी सुविधाएं भी ठीक से नहीं पहुंच पा रही थी। हमारे कार्यों को यूनीसेफ द्वारा भी सराहा गया है।”

ब्रेकथ्रू की पहल ‘टीम चेंज लीडर’ देश के दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे पांच राज्यों में प्रभावी है।

लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिनों का एक्टिविज्म

महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को रोकने के लिए 1991 में वूमेंस ग्लोबल लीडरशिप इंस्टीट्यूट द्वारा “लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिनों का एक्टिविज्म” कार्यक्रम की शुरुआत की गई।

इस कार्यक्रम के तहत दुनियाभर के देश 25 नवंबर यानी अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस से लेकर 10 दिसंबर यानी मानवाधिकार दिवस तक, अलग-अलग तरीके से लिंग भेद के खिलाफ जागरूक अभियान चलाते हैं।

इस मौके पर ब्रेकथ्रू के टीम चेंज लीडर्स भी, अपने तरीके से लोगों को जमीनी स्तर पर जागरूक बनाने के लिए अलग-अलग कार्यक्रम का आयोजन करते हैं और संस्था इसमें उनकी पूरी मदद करता है। 

इस बार की थीम “ऑरेंज द वर्ल्ड: एंड वॉयलेंस अगेंस्ट वुमन नाउ” है, जिसका अर्थ है कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा का अंत तुरंत हो। 

लोगों से अपील

ब्रेकथ्रू संस्था का मकसद, महिलाओं के खिलाफ होने वाली किसी भी हिंसा को सभी के लिए अस्वीकृत बनाना है। इसके लिए वे अलग-अलग तरीकों से समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। 

इसे लेकर सोहिनी भट्टाचार्य कहती हैं, “ब्रेकथ्रू के जरिए हम बच्चों को लैंगिक भेदभाव के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक पक्षों पर नकारात्मक असर को लेकर शिक्षित करते हैं। इसे लेकर कई तरह के ट्रेनिंग सेशन और वर्कशॉप आयोजित किए जाते हैं। हम युवाओं की आवाज और लीडरशिप को सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ावा देते हैं कि वे सिर्फ अपने जीवन को लेकर बेहतर फैसले ले सकें, बल्कि इसलिए भी बढ़ावा देते हैं कि वे लैंगिक समानता, जलवायु परिवर्तन जैसे कई गंभीर मुद्दों को लेकर सजग हो सकें और एक समान और हिंसा मुक्त दुनिया का निर्माण कर सकें।”

अपने मकसद को हासिल करने के लिए ब्रेकथ्रू संस्था ने बीते साल “दखल दो” अभियान की भी शुरुआत की। इसके तहत वे लोगों से अपील करते हैं कि महिलाओं के खिलाफ हो रही किसी भी हिंसा को देखकर, अनदेखा मत कीजिए और उसमें दखल दीजिए, ताकि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा हो और हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।

यह भी पढ़ें – उन्होंने कहा महिलाओं के बस की नहीं खेती; संगीता ने 30 लाख/वर्ष कमाकर किया गलत साबित

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X