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ओडिशा के खिरोद जेना पिछले 16 वर्षों से अपने गांव और आसपास के इलाकों में पौधरोपण कर रहे हैं। वह न सिर्फ पौधे लगाते हैं, बल्कि इनकी देखभाल भी करते हैं। उन्होंने अब तक लगभग 20 हजार पेड़-पौधे लगाए हैं। खिरोद को जहां भी खाली जगह दिखती है, उसे वह हरियाली से भरना शुरू कर देते हैं। उनके प्रयासों के कारण आज कई गांवों के बच्चे ताजा फल खा रहे हैं तो कई गरीब परिवार फलों को इकट्ठा करके बाजार तक पहुंचा कर थोड़ी-बहुत आमदनी भी कमा रहे हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए खिरोद ने अपने इस अभियान के बारे में बताया।
"मैं मूल रूप से जाजपुर के कलाश्री गांव से हूं। एक किसान परिवार में पला-बढ़ा और 12वीं के बाद, भारतीय सेना में मेरा चयन हो गया। कई सालों तक सेना में सेवा देने के बाद, जब लगा कि अब घर-परिवार के साथ समय बिताना चाहिए तो मैंने 42 साल की उम्र में ही रिटायरमेंट ले ली। लेकिन रिटायरमेंट के बाद जब गांव पहुंचा तो देखा कि समस्याएं तो वैसी की वैसी ही हैं। लेकिन इन समस्याओं के साथ-साथ गांव से हरियाली भी कम होने लगी है। सड़क के किनारे कोई पेड़-पौधे नहीं है और जंगल भी कम हुए हैं," वह कहते हैं।
खिरोद ने सोचा कि अपने गांव और आसपास के इलाकों के लिए काम करके वह देश को आगे बढ़ाने में ही योगदान देंगे। इसलिए 2005 से उन्होंने अपने गांव से पौधरोपण की शुरुआत की। देखते ही देखते, उनका काम आसपास के गांवों में भी फ़ैल गया और आज लोग न सिर्फ इस काम के लिए उनकी सराहना करते हैं बल्कि उनसे प्रेरित भी होते हैं।
लगाए आम, जामुन जैसे फलों के 20 हजार पेड़
खिरोद कहते हैं कि उन्होंने सबसे पहले अपने गांव से काम शुरू किया। उन्होंने गांव में रास्तों के दोनों तरफ आम, जामुन और बेर के पौधे लगाए और लगातार इनकी देखभाल भी करते रहे। "बारिश का मौसम शुरू होते ही पौधरोपण शुरू कर देता था। कई जगहों पर पौधे लगाए तो कई जगहों पर बीज ही रोप दिए। शुरुआत में, लोग बहुत मजाक बनाते थे। कहते थे कि सेना से रिटायर होकर आया है फिर भी पागल हो गया है। दिनभर पेड़-पौधों में लगा रहता है और कोई काम नहीं है इसको। लेकिन तीन-चार सालों में मेरे लगाए पौधे जब पेड़ बन गए और फल आने लगे तो वही लोग तारीफों के पूल बांध रहे थे," उन्होंने कहा।
तीन-चार साल में खिरोद की मेहनत रंग लाने लगी और देखते ही देखते उनका गांव हरियाली से भर गया। उनके लगाए पौधे पेड़ बनकर लोगों को छांव, शुद्ध हवा और ताजा फल देने लगे। उनके काम के बारे में आसपास के लोगों को पता चला तो सब उनसे मिलने आते थे। जैसे-जैसे खिरोद लोगों से जुड़े तो उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें और भी गांवों में काम करना चाहिए। इसलिए कलाश्री के बाद उन्होंने गजेंद्रपुर, रायपुर, पार्थापुर, फ़क़ीरमियां पाटना, सौदिया, बारपाड़ा, कम्पागढ़, हलधरपुर, और तलुआ जैसे गांवों में भी काम किया।
उनका दावा है कि उन्होंने सात ग्राम पंचायतों के 11 गांवों में 20 हजार पेड़ लगाए हैं, जिनमें आम, जामुन, अमरुद और कटहल जैसे फलों के पेड़ शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने कई सालों से बंजर पड़ी एक पहाड़ी पर भी पेड़-पौधे लगाकर इसे हरा-भरा बना दिया है।
कलाश्री गांव के शिक्षक देवाशीष कहते हैं, "खिरोद जी के काम से न सिर्फ हरियाली बढ़ी है बल्कि लोगों में पर्यावरण और परिवेश को लेकर जागरूकता भी आई है। वह कहीं भी खाली जगह देखते हैं तो पौधरोपण करने लगते हैं। उन्हें देखते हुए हम भी प्रेरित हुए कि पर्यावरण की रक्षा हम सबका कर्तव्य है। पहले जो लोग उन्हें ताने देते थे, अब उन्हीं घरों के बच्चे ताजे फल खा रहे हैं। गांवों में गरीब लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।"
अपनी पेंशन से करते हैं सब काम
वह आगे बताते हैं कि अब तक ज्यादातर काम उन्होंने अपनी पेंशन से ही किया है। हर महीने वह अपनी पेंशन से कुछ पैसे सिर्फ पौधरोपण, पौधों की देखभाल, ट्री गार्ड जैसी चीजों के लिए खर्च करते हैं। "साथ ही, दुनिया में बहुत से अच्छे लोग हैं। अगर आप एक अच्छा कदम आगे बढ़ाएंगे तो और भी बहुत से नेकदिल लोग आपसे जुड़कर इस अच्छे काम को बढ़ाते रहेंगे। मैं कुछ पैसे अपनी पेंशन से देता हूं तो कई बार दूसरों से भी मदद मिल जाती है," उन्होंने कहा।
शुरुआत में, उनकी 285 मीडियम रेजिमेंट के भी कुछ साथियों ने उनकी मदद की थी। वह कहते हैं कि रेजिमेंट से तब कर्नल एनए कदम और ब्रिगेडियर एमके उप्रेती ने उन्हें अपनी तरफ से कुछ आर्थिक मदद भेजी थी। इसके बाद, गांवों में अच्छी आमदनी कमा रहे लोग भी इस नेक काम के लिए आगे आ रहे हैं।
खिरोद हर साल अलग-अलग फलों के बीज जैसे आम की गुठली, जामुन की गुठली या कटहल के बीज इकट्ठा करते हैं। इनमें से कुछ को वह अपने घर में ही तैयार करते हैं। जून में बारिश शुरू होने से पहले वह जगह का चयन कर लेते हैं और फिर जैसे ही बारिश शुरू होती है, वह पौधरोपण और बीजरोपण में जुट जाते हैं।
इसके बाद, वह महीने में 10 दिन पौधों की देखभाल के लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने पांच हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर एक कर्मचारी रखा हुआ है। जिसके साथ, वह खुद गांव-गांव जाकर पेड़-पौधों को खाद देते हैं, उनकी कटाई-छंटाई करके आते हैं। बाकी समय वह कर्मचारी पौधों की देखभाल करता है।
पहले गांव के लोग उनका मजाक बनाते थे। लेकिन अब गांव के लोग पेड़-पौधों की देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने गांव के साक्षर लोगों से संपर्क जोड़ा और उन्हें अपने अभियान के बारे में बताया। उन्होंने भी उनकी बात को समझा और सभी साथ मिलकर पर्यावरण के हित में काम कर रहे हैं। खिरोद का उद्देश्य है कि वह एक लाख पौधे लगाएं और इनकी देखभाल करके इन्हें पेड़ बनाएं ताकि उनके जाने के बाद भी आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध हवा मिलती रहे। अपने इस काम के लिए उन्हें 'आत्मा अवॉर्ड,' 'ग्रीन सोल्जर सम्मान' और ‘प्रकृति बंधु’ जैसे पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
बेशक, खिरोद जेना आज हम सबके लिए प्रेरणा है। हमें उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके साथ मिलकर उनके इस अभियान को पूरा करने में मदद करेंगे।
संपादन- जी एन झा
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