नवरात्रि व्रत में खाया जाने वाला ‘मखाना’ है सेहत का खज़ाना, विदेशियों ने भी माना सुपर फूड

Superfood Makhana

इस लेख में पढ़िए नवरात्रि व्रत में खाये जाने वाले मखाने की खासियत, जो पूरी दुनिया में जाना जा रहा है 'सुपरफूड' के नाम से।

“पग पग पोखर, माछ, मखान, सरस बोल मुस्की मुख पान… ई अछि मिथिलाक पहचान।” – एक मैथिली लोकगीत। 

बिहार के मिथिलांचल का इससे अच्छा परिचय शायद ही कहीं और मिले। इसका मतलब है कि जहां कदम-कदम पर तालाब हैं, मछली, मखान है, लोगों की बोली मधुर है, चेहरे पर मुस्कान है और इसके साथ मुंह में पान है, दरअसल यही मिथिला क्षेत्र की पहचान है। बिहार के उत्तरी भाग को मिथिलांचल कहते हैं और इस हिस्से में सबसे ज्यादा मखाना उत्पादन होता है। हम भारतीयों के लिए मखाना नयी चीज नहीं है। लेकिन इससे जुड़े बहुत से ऐसे तथ्य हैं, जो सुनने में शायद नए ही लगेंगे। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘सुपरफूड’ के रूप में अपनी पहचान बना चुका मखाना भारत में व्रत-उपवास के आहार के रूप में ज्यादा जाना जाता है। खासकर कि पूजा-उत्सवों में इसका उपयोग होता है। लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि मखाना को सामान्य तौर पर भी अपनी डाइट में शामिल किया जा सकता है। यह सेहत और फिटनेस के लिए एक अच्छा आहार है। इसलिए न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी मखाना काफी अधिक प्रचलित है। मखाना की खेती बिहार के मधुबनी, दरभंगा और पूर्णिया जिला में सबसे ज्यादा होती है। 

इसके अलावा, मखाना असम, मेघालय के कुछ हिस्सों और गोरखपुर और अलवर जैसी जगहों पर भी उगाया जाता है। वहीं, दूसरे देशों की बात करें तो इसकी कुछ जंगली प्रजाति जापान, कोरिया, चीन, रूस और बांग्लादेश में भी उगाई जाती हैं। इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे भारत में फूल मखाना, अंग्रेजी में फॉक्स नट, ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार गोर्गोन नट, तो कहीं पर कमल बीज भी कहा जाता है। मखाना का बोटैनिकल नाम यूरेल फेरोक्स सलीब (euryale ferox salib) है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में कमल का बीज भी बोलते हैं। यह ऐसी फसल है जिसे पानी में उगाया जाता है। 

अकेले बिहार में 90 फीसदी मखाना का उत्पादन होता है। इसमें भी बिहार की कंपनी शक्ति सुधा इंडस्ट्रीज के संस्थापक सत्यजीत सिंह दावा करते हैं कि उनकी कंपनी शक्ति सुधा इस उत्पादन में कम से कम 50 प्रतिशत का योगदान करती है। सत्यजीत सिंह को ‘मखाना मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। क्योंकि उन्होंने न सिर्फ अपनी कंपनी शुरू की बल्कि 12000 किसानों को मखाना की खेती करना भी सिखाया है। उनकी कंपनी आज देश-विदेश में मखाना के लगभग 28 तरह के उत्पाद सप्लाई कर रही है। 

क्यों है मखाना सुपरफूड

अब सवाल आता है कि आखिर देश-विदेश में मखाना की मांग इतनी ज्यादा क्यों बढ़ रही है? मुझे आज भी याद है मेरी नानी अक्सर मखाना को बच्चों में बांट देती थीं। कहती थीं कि ‘नमकीन, चिप्स की जगह मखाना खाओ, शरीर में लगेगा।’ आज जब मखाना के फायदे के बारे में डायटीशियन से बात की तो पता चला कि नानी बिल्कुल सही कहती थीं। पिछले कई सालों से लोगों को फिट और सेहतमंद रहने में मदद कर रही डायटीशियन अर्चना बत्रा कहती हैं कि इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि मखाना ‘सुपरफूड’ है। इसका कारण मखाने में उपलब्ध पोषण है। इसमें विटामिन बी1 काफी अच्छी मात्रा में होता है।

  • मखाना कार्बोहायड्रेट, फाइबर, पौधा आधारित प्रोटीन और मैग्नीशियम, पोटेशियम, जिंक जैसे न्यूट्रिएंट का भी अच्छा साधन है। 
  • इसमें कोलेस्ट्रॉल, फैट और सोडियम की मात्रा कम होती है और इसलिए यह एक अच्छे स्नैक का विकल्प है। 
  • साथ ही, इनमें मैग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होती है और सोडियम की कम, इसलिए हाई ब्लड प्रेशर, मोटापे और दिल संबंधित परेशानियों से जूझ रहे लोगों को इसे अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। 
  • मखाना का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और इसलिए डायबिटीज के मरीज भी डॉक्टर की सलाह पर मखाना या इससे बने उत्पाद अपनी डाइट में ले सकते हैं। 
  • इसमें एक ‘एंटी एजिंग एंजाइम’ भी होता है, जो ख़राब प्रोटीन को सही करने में मदद करता है। 
  • मखाना ग्लूटन-फ्री होते हैं और प्रोटीन व फाइबर की इनमें ज्यादा मात्रा होती है। 
  • इनमें कैलरी भी कम होती है और इसलिए वजन कम करने पर मेहनत कर रहे लोग भी इन्हें अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। 

लगभग 200 साल पहले से भारत में मखाना की खेती हो रही है और तब से ही यह भारत में आयुर्वेद का हिस्सा है। भारतीय आयुर्वेद के अलावा, चीन में भी पारंपरिक औषधियां तैयार करने में सालों से इसका प्रयोग किया जा रहा है। 

कहीं स्नैक तो कहीं सब्ज़ी है मखाना

भारत के ग्रामीण इलाकों में मखाना का प्रयोग पारम्परिक व्यंजनों जैसे खीर आदि बनाने में किया जाता है। वहीं, शहरी इलाकों में यह स्नैक के रूप में ज्यादा उभर रहा है। अक्सर लोग मखाना को घी में भूनकर स्टोर कर लेते हैं और लम्बे समय तक खाते हैं। इन दिनों मखाना के अलग-अलग फ्लेवर के स्नैक तैयार करके बाजारों तक पहुंचाए जा रहे हैं। जैसे-जैसे मखाना के फायदों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ रही है। वैसे-वैसे इससे बनने वाले खाद्य उत्पादों पर भी तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। 

दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र में रिसर्चर द्वारा मखाना से अलग-अलग तरह की चीजें बनाने पर जोर दिया जा रहा है। यहां पर मखाना की बर्फी और कलाकंद बनाने की कोशिश की गई। साथ ही, गेहूं के आटे के साथ मखाने का आटा तैयार करके इसकी चपाती और पकोड़े भी बनाए गए। शोध के मुताबिक, मखाना-गेहूं के आटे से बनी रोटियां और मखाना कलाकंद दोनों ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प हैं। इसके अलावा, मखाना बीज पाउडर भी तैयार किया जा रहा है। 

चीन और जापान में मखाना सिर्फ स्नैक नहीं बल्कि सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल होता है। इसके पौधे की जड़ें, जिन्हें राइजोम कहते हैं, सब्जी के रूप में खाई जाती हैं। इसके पौधे का तना और पत्ते भी दोनों देशों में इस्तेमाल किये जाते हैं। मखाना के पौधों के पत्तों से ख़ास चाय भी बनाई जाती है। चीन में इसके बीज एक पाउडर से बेबी फ़ूड बनाया जाता है। साथ ही, मखाना बीज का पेस्ट पेस्ट्री और केक बनाने में भी इस्तेमाल होता है। एशियाई देशों के अलावा, अब अमेरिका, लंदन में भी मखाना की मांग बढ़ रही है। 

सत्यजीत बताते हैं कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में मखाना उपलब्ध कराने के साथ-साथ उन्होंने इस साल अमेरिका और कनाडा में भी 2 टन मखाना निर्यात किया है। उन्हें लगातार अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है और इसलिए अब वह अपने बिज़नेस के ऑनलाइन सेगमेंट पर ज्यादा काम कर रहे हैं। सत्यजीत का सपना मखाना को दुनिया भर में ‘कैलिफ़ोर्निया आलमंड’ की तरह लोकप्रिय बनाना है। शक्ति सुधा के अलावा, और भी कई कंपनियां मखाना बिज़नेस कर रही हैं ताकि सालों पुराने इस ‘देसी सुपरफूड‘ को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जाता रहे। 

संपादन- जी एन झा

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