वह प्रधानमंत्री जिसने लिया था 5000 रूपये का लोन, मृत्यु के बाद पत्नी ने चुकाया कर्ज

Lal Bahadur Shastri with his wife

जानें पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से जुड़ें पांच ऐसे किस्से, जिन्हें जानकार आपके दिल में उनके लिए सम्मान और भी बढ़ जाएगा।

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले व्यक्तित्व थे। उनका पूरा जीवन हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है। ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा देकर, उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी बढ़ाया।

देश के दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने जमीनी हकीकत को अच्छी तरह से समझने की कोशिश की। वह खुद गरीबी के जीवन से उठकर इस पद तक पहुंचे थे। यही वजह थी कि कार्यालय में अपने छोटे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने जो भी काम किया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सीख की तरह है।

1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बतौर प्रधानमंत्री उनके द्वारा उठाए गए कदमों से पूरे देश में उन्हें पहचान मिली। इसके अलावा, अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने दुग्ध उद्योग को मजबूत बनाने की कोशिश की। साथ ही, लोगों के बीच समानता की भावना को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ढेर सारे प्रयास किए।

2 अक्टूबर को उनकी जयंती के अवसर पर हम इतिहास के झरोखे से लाल बहादुर शास्त्री जी से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां लेकर आए हैं, जिन्हें आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे।

Lal Bahadur Shastri
लाल बहादुर शास्त्री

1. वक्त के पाबंद

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शास्त्री जी को कई बार जेल जाना पड़ा था। राजनीतिक टिप्पणीकार, डॉ. संदीप शास्त्री ने अपनी पुस्तक ‘लाल बहादुर शास्त्री: पॉलिटिक्स एंड बियॉन्ड (2019)’ में इस बात का खुलासा किया है कि उन दिनों, उनकी बेटी सुमन गंभीर रूप से बीमार पड़ गई थी। शास्त्री जी को जेल से 15 दिनों की छुट्टी दी गई थी। लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी छुट्टी समाप्त होने से पहले ही, उनकी बेटी का निधन हो गया। इसके बावजूद वह नियत समय पर जेल लौट गए। उन्होंने अपनी पूरी छुट्टी न बिताने का कारण यह बताया, “बेटी की देखभाल के लिए मुझे छुट्टी मिली थी, जो अब नहीं रही, इसलिए जेल वापस जाना मेरा कर्तव्य है।”

उस दौरान जेल में एक और घटना घटी। उस वक्‍त लाला लाजपतराय ने ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की थी, जो आजादी की लड़ाई लड़ रहे गरीब नेताओं को आर्थिक सहायता प्रदान करती थी। सोसाइटी, शास्‍त्री जी को भी घर का खर्चा चलाने के लिए हर महीने 50 रुपये देती थी। जब शास्त्री जी को पता चला कि इसमें से 10 रुपये बच जाते हैं, तो उन्‍होंने सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि चूंकि मेरे परिवार का गुजारा 40 रुपये में हो जाता है, इसलिए मेरी आर्थिक मदद घटाकर 40 रुपये कर दी जाए।

2. सादा जीवन उच्च विचार

शास्त्री जी का जीवन का संघर्ष की पाठशाला है। स्कूल के दिनों में पैसे के अभाव में, वह तैरकर पढ़ने के लिए स्कूल जाते थे। क्योंकि नाव से सफर करने के लिए उनके [आस पैसे नहीं होते थे।

3. अपनी बोली पर कायम रहना

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) के पुत्र अनिल शास्त्री ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि एक बार घर में मांग उठी कि हमें एक कार खरीदनी चाहिए। सीमित साधनों के व्यक्ति शास्त्री जी के बैंक खाते में एक हरे रंग की फिएट कार खरीदने के लिए महज 7,000 रुपये थे। जबकि कार की कीमत 12,000 रुपये थी। समय की जरूरत को पूरा करने के लिए, उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से एक-एक पैसा चुकाने के वादे के साथ 5,000 रुपये का कर्ज लिया था। लेकिन कर्ज चुकाने से पहले ही ताशकंद (1966) में उनका निधन हो गया। बाद में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपने पेंशन से बैंक के कर्ज का भुगतान किया।

4. देश का किया नेतृत्व

भारत को साल 1965 और 1966 में सूखे का सामना करना पड़ा था। इसके कारण, देश में खाद्यान की कमी हो गई थी। शास्त्री जी ने पहले दूध से जुड़ी श्वेत क्रांति में लोगों की मदद की। फिर उसके बाद, उन्होंने घरेलू खाद्य उत्पादन के लिए लोगों को प्रेरित किया। साथ ही, उन्होंने हर परिवार से अपने घर में ही गेहूं या चावल उगाने का आग्रह किया। दिल्ली के जनपथ पर अपने ही आवास में अनाज उगाकर, उन्होंने आंदोलन की शुरुआत की।

5. घर से हुई आंदोलन की शुरुआत

यह वह दौर था जब भारत अपनी गेंहू के उपज को बाहर भेजता था वहीं दूसरी ओर आबादी का एक बड़ा हिस्सा भुखमरी के कगार पर था।

इसी दौरान शास्त्री जी और उनके परिवार ने एक वक्त का भोजन छोड़ने का विचार किया। इसकी सफलता के बाद ऑल इंडिया रेडियो (AIR) पर प्रत्येक नागरिक से सप्ताह में एक बार भोजन न करने का आह्वान किया गया। इस राष्ट्रव्यापी उपवास ने उनके लोकप्रिय नारे जय जवान-जय किसान के शाब्दिक अर्थ को परिभाषित किया, जिसमें कहा गया था कि देश के किसान, सैनिकों के समान ही महत्व रखते हैं।

मूल लेख- रिया गुप्ता

संपादन- जी एन झा

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