31 वर्षीय रविंद्र पांडेय, एक प्रगतिशील किसान हैं। वह कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) जिले के सिराथू तहसील में, टेंगाई गाँव के रहने वाले हैं। उन्हें ‘ड्रैगन फ्रूट’ की सफल खेती के लिए, काफी पहचान मिल रही है। अपनी एक एकड़ जमीन के चौथाई भाग में ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) करके, वह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। साथ ही, वह दूसरे किसानों को भी, ड्रैगन फ्रूट के पौधे तैयार करके दे रहे हैं।
कानून की पढ़ाई करने के बाद, रविंद्र ने कुछ समय पहले ही, वकालत की प्रैक्टिस शुरू की है। वह कई सालों से अपने पिता, सुरेश चंद्र पांडेय के साथ, खेती भी कर रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “हमारे पास 20 बीघा जमीन है। पहले हम गेहूं, धान और आलू की खेती करते थे, जिसमें कभी मुनाफा होता था और कभी नुकसान। लेकिन साल 2016 में, पिताजी ने एक अखबार में ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती के बारे में पढ़ा। दरअसल, तत्कालीन जिला कलेक्टर, अखंड प्रताप सिंह जी ने इस इलाके में, ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) शुरू करवाने का फैसला किया था।”
सिराथू तहसील में घटते भूजल स्तर को देखते हुए, जिला प्रशासन ने फैसला किया था कि इस इलाके में, किसानों को ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती के लिए प्रेरित किया जाए। क्योंकि, ड्रैगन फ्रूट की खेती कम पानी में की जा सकती है। प्रशासन की इस योजना के बारे में जानकर, रविंद्र ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में रिसर्च की। उन्हें पता चला कि ड्रैगन फ्रूट, पोषण से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसके सभी फायदे जानने के बाद, उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) करने का फैसला किया।
कैसे की शुरुआत:
जिला प्रशासन की प्रेरणा से, रविंद्र और उनके परिवार ने अपनी जमीन पर ‘थाईलैंड रेड’ किस्म के 440 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए। रविंद्र कहते हैं, “उन दिनों हमारे गाँव में, लगभग 10-11 किसानों ने ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए थे। लेकिन, समस्या यह थी कि हमने जिनके मार्गदर्शन में यह खेती शुरू की थी, उन्हें भी इसका खास अनुभव नहीं था। इसलिए, पहले दो सालों में पौधों का विकास काफी कम हुआ था। 2017 के अंत में, हमें फल भी मिलना शुरू हो गए, लेकिन उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं थी। साथ ही, पौधे भी ठीक से नहीं पनप रहे थे। उस दौरान, हम कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के बताए अनुसार खेतों में रसायन डाल रहे थे।”
उनके गाँव के बहुत से किसानों ने हार मानकर, अपने खेतों से ड्रैगन फ्रूट के पेड़ हटा दिए। लेकिन, रविंद्र ने हार नहीं मानी और वह लगातार इंटरनेट पर ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) से जुड़ी जानकारी लेते रहे। उन्होंने बताया कि साल 2018 से उन्होंने खेती के लिए, जैविक तरीका अपनाना शुरू कर दिया। उन्होंने ड्रैगन फ्रूट के पौधों के लिए गोबर की खाद, केंचुआ खाद और जीवामृत आदि का इस्तेमाल किया। जैविक तरीकों से, उन्हें काफी अच्छे नतीजे मिले और साल 2019 में उन्होंने ड्रैगन फ्रूट बेचकर, लगभग एक लाख रुपए की बचत की।
ड्रैगन फ्रूट की खेती के साथ, रविंद्र टमाटर, मिर्च, लहसुन, प्याज जैसी सब्जियों की सहफसली भी कर रहे हैं। सहफसली खेती या विधि के अंतर्गत, वह ड्रैगन फ्रूट के पेड़ों के बीच बची जगहों में, अलग-अलग साग-सब्जियों के पौधे उगाते हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने सिंचाई के लिए, ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया हुआ है। साथ ही, उनके यहां ‘बायोगैस प्लांट’ है, जिसमें गोबर और कृषि कचरा डाला जाता है। इस प्लांट से वह न सिर्फ बायोगैस, बल्कि खेतों के लिए जैविक खाद भी बनाते हैं। उन्होंने बताया, “प्लांट से जो बायोगैस मिलती है, उससे हम जनरेटर की मदद से बिजली बनाते हैं। जिसका इस्तेमाल, खेतों पर ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और आटा चक्की चलाने के लिए किया जाता है।”
रविंद्र का कहना है कि नए तरीके की खेती करने के साथ, उन्होंने खेती में अपनी लागत को कम किया है। जिसके कारण, उनका मुनाफा भी बढ़ा है। पिछले साल, उन्होंने सिर्फ ड्रैगन फ्रूट की खेती से लगभग दो लाख रुपए का मुनाफा कमाया था। वह एक ड्रैगन फ्रूट को 70 रुपए से लेकर 110 रुपए तक बेचते हैं।
शुरू किया नर्सरी का काम भी:
उनकी सफलता को देखकर, दूसरे किसान भी उनसे इस खेती के बारे में जानकारियां लेने लगे। बहुत से किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पौधे खरीदने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि, ड्रैगन फ्रूट के पौधे ज्यादातर गुजरात, हैदराबाद और कोलकाता आदि शहरों की बड़ी नर्सरी में तैयार किए जाते हैं। परेशानी यह है कि ये नर्सरी कम संख्या में पौधे नहीं देती हैं। लेकिन, हरेक किसान एक साथ हजार या इससे ज्यादा पौधे नहीं खरीद सकता है। किसानों ने जब यह समस्या रविंद्र को बताई, तो उन्होंने उनकी मदद करने की ठानी।
वह बताते हैं, “मैंने किसानों के लिए अपने खेत में, ड्रैगन फ्रूट की नर्सरी तैयार करना शुरू किया। लेकिन, मैं किसानों से ऑर्डर मिलने के बाद ही पौधे तैयार करता हूँ। मैं उनसे बुकिंग की कुछ फीस लेता हूँ, ताकि बाद में वे पौधे खरीदने से मना न कर दें। इसके बाद, पौधे तैयार करके किसानों को पहुंचा देता हूँ। साथ ही, मैं उन्हें पौधों की देखरेख के बारे में भी बताता रहता हूँ। अब तक, मैं 50 से ज्यादा किसानों को पौधे तैयार करके दे चुका हूँ।”
उनसे कुशीनगर, महराजगंज, सहारनपुर, लखनऊ, मिर्जापुर जैसी जगहों के किसानों ने, ड्रैगन फ्रूट के पौधे खरीदे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि किसान, उनसे अपनी जरूरत के हिसाब से पौधे खरीद सकते हैं। अगर कोई किसान सिर्फ दो-चार पौधे लेना चाहते हैं, तो भी उनसे संपर्क कर सकते हैं।
रविंद्र से पौधे खरीदकर, ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) शुरू करने वाले, किसान राम रतन यादव कहते हैं, “मुझे ड्रैगन फ्रूट की खेती की जानकारी यूट्यूब से मिली और इसके बाद, मैंने रविंद्र जी से संपर्क किया। उनसे मुझे खेती से जुड़ी, कई जरूरी बातें सीखने को मिलीं। साथ ही, मैंने उनसे ड्रैगन फ्रूट के 300 पौधे भी खरीदे।” राम रतन कहते हैं कि अगर किसान सही तरीके से ड्रैगन फ्रूट की खेती करें, तो एक एकड़ से पाँच लाख रुपए तक कमा सकते हैं।
किसानों के लिए सलाह:
रविंद्र कहते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) के लिए, किसानों को खेतों में सबसे पहले खंबे लगाने पड़ते हैं। एक खंबे के सहारे, चार ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए जा सकते हैं। लेकिन, पौधे खरीदते समय ध्यान रखें कि पौधे तीन साल से ज्यादा पुराने न हों।
साथ ही, जिस जमीन पर आप ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगा रहे हैं, वहां जल भराव की समस्या न हो। उन्होंने आगे कहा, “अपने अनुभव के आधार पर, मैं सभी किसानों को जैविक खेती करने की सलाह देता हूँ। मुझे सफलता जैविक तरीकों से ही मिली है, क्योंकि रसायनों के इस्तेमाल से फल की गुणवत्ता कम हो जाती है।”
वह बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट को लगाने का सबसे सही समय, फरवरी और मार्च का महीना होता है। एक-डेढ़ साल में ही, आपको ड्रैगन फ्रूट के पेड़ों से फल मिलने लगते हैं और हर साल फलों का उत्पादन बढ़ता रहता है। किसान एक एकड़ में, ड्रैगन फ्रूट के कम से कम 1800 पौधे लगा सकते हैं। यह संख्या कम-ज्यादा भी हो सकती है, क्योंकि यह किसानों पर निर्भर करता है कि वह पौधों के बीच, कितनी दूरी रख रहे हैं। रविंद्र, किसानों को शुरुआत में कम पौधे लगाने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं कि छोटे किसान चाहें, तो 50 या 100 पौधों से भी खेती शुरू कर सकते हैं।
साल 2020 में, रविंद्र ने ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) और नर्सरी से, पाँच लाख रुपए का मुनाफा कमाया है। अब वह अपनी डेढ़ एकड़ जमीन पर, ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाने की योजना बना रहे हैं, ताकि कमाई बढ़ा सकें। रविंद्र का उद्देश्य है कि जिस ड्रैगन फ्रूट को अमीरों का फल कहा जाता है, उसे वह आम आदमी का भी फल बनाएं और यह तभी होगा, जब ज्यादा से ज्यादा किसान इसकी खेती करेंगे। इसलिए, वह किसानों और युवाओं को ड्रैगन फ्रूट की खेती से जुड़ने की सलाह देते हैं। क्योंकि, यह खेती एक बार की लागत में, ज्यादा से ज्यादा मुनाफा दे सकती है।
अगर कोई किसान भाई ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Ki Kheti) से जुड़ी जानकारी चाहते हैं या ड्रैगन फ्रूट के पौधे खरीदना चाहते हैं, तो रविंद्र को 096968 82596 पर कॉल कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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