शुरू की खीरा, खरबूज व तरबूज की जैविक खेती, मात्र 90 दिनों में कमाए लाखों

Gujarat Farmer Growing Muskmelon

सूरत, गुजरात के रहने वाले प्रवीण पटेल ने इजराइल से जैविक खेती की तकनीक सीखकर खीरा, खरबूज, तरबूज, स्ट्रॉबेरी जैसे कैश क्रॉप की खेती शुरू की, जिनसे आज वह लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं।

“मात्र तीन महीनों में मैंने अपनी खरबूजे की खेती (muskmelon farming) से लगभग 12 लाख रुपए कमाए हैं, जबकि इसमें लागत लगभग पाँच लाख रुपए आई। पहले इतनी कमाई हमारी पूरी जमीन पर खेती करके भी नहीं हो पाती थी। लेकिन, अब मौसमी सब्जियों और फलों की जैविक खेती से हम अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं,” यह कहना है गुजरात के सूरत जिले में रहने वाले एक किसान प्रवीण पटेल का। पिछले लगभग 18 सालों से खेती कर रहे, प्रवीण ने 2018 से सब्जी और फलों की जैविक खेती शुरू की। कभी इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले 41 वर्षीय प्रवीण, आज खेती में अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 

जब प्रवीण पटेल महाराष्ट्र के पुणे में एक कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहे थे, तब उन्हें अपने पिता के बहुत ज्यादा बीमार होने की खबर मिली। वह घर लौटे तो देखा कि पिता अब खेती नहीं संभाल सकते हैं और उनके बड़े भाई ने भी अपना एक व्यवसाय शुरू कर लिया है। ऐसे में, परिवार को खेती-किसानी छूट जाने की चिंता सता रही थी। प्रवीण ने बताया, “पारिवारिक स्तर पर देखें तो हमारे पास काफी जमीन है। लेकिन, अगर कोई खेती ही नहीं करता तो जमीन का क्या फायदा? इसलिए, मुझे अपनी पढ़ाई छोड़कर खेती से जुड़ना पड़ा।” 

लगभग 15-16 सालों तक प्रवीण अपने पिता और अन्य किसानों की तरह, परंपरागत तरीकों से खेती करते रहे। उनके यहाँ गन्ना और केले ज्यादा मात्रा में उगाये जाते थे। वह कहते हैं कि उनके पास जमीन ज्यादा थी। इसलिए, खेती से होने वाली आमदनी घर के लिए पर्याप्त होती थी। लेकिन, अगर इस कमाई को प्रति एकड़ के हिसाब से देखा जाए तो वह घाटे में थे। उन्होंने कहा, “कुछ साल पहले मैं यूट्यूब पर काफी एक्टिव रहने लगा और अलग-अलग जगह के सफल किसानों की कहानी देखता था। साथ ही, उनके खेती के मॉडल समझने की कोशिश करता था। मैं सोशल मीडिया पर भी कई किसान समूहों से जुड़ गया। मुझे 2018 में पता चला कि किसानों का एक समूह इजरायल जा रहा है तो मैं भी उनके साथ चला गया।” 

muskmelon farming
प्रवीण पटेल

इजरायल की यात्रा ने दी जैविक खेती की प्रेरणा

किसानों के समूह के साथ 2018 में, प्रवीण जब इजरायल गए तो वहाँ के किसानों की जैविक खेती देखकर हैरान हो गए। उन्होंने देखा कि कैसे इजरायल के किसान अलग-अलग तकनीकों से खेती करके अच्छा मुनाफा कमाते हैं। साथ ही, उनकी रसायन मुक्त उपज देखकर प्रवीण को जैविक उपज का महत्व समझ आया। इजरायल से लौटकर उन्होंने तय कर लिया कि वह अपनी खेती करने के तरीकों में बदलाव करेंगे। सबसे पहले उन्होंने रसायन मुक्त खेती करने की ठानी।

प्रवीण बताते हैं, “पहले हम बड़े पैमाने पर गन्ना और केला उगा रहे थे। लेकिन इजरायल से आने के बाद मैंने खीरा, तरबूज, खरबूज, ब्रोकली, लैटस, शिमला मिर्च जैसी फसलों को उगाना शुरू किया। इन सभी फसलों को ‘कैश क्रॉप’ कहा जाता है। क्योंकि, किसान इन फसलों से कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”

प्रवीण ने सबसे पहले अपने खेतों को जैविक तरीकों से तैयार किया और साथ ही, खुद जैविक खाद बनाना सीखा। वह जीवामृत, गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट और वर्मीवॉश जैसी पोषक खाद बनाते हैं तथा अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं। उनके मुताबिक, वर्मीवॉश से फसलों की इम्यूनिटी बढ़ती है और इनमें कीट लगने का खतरा कम होता है। 

वह बताते हैं, “वर्मीवॉश केंचुओं की मदद से बनाई जाने वाली, एक तरल खाद है। इसे बनाने के लिए आप अपनी जरूरत के हिसाब से 100 या 200 लीटर का बैरल/ड्रम लें। इसमें नीचे की तरफ एक नल लगा लें। अब ड्रम में सबसे पहले कुछ छोटे-बड़े पत्थर/रोड़ी की एक परत बिछाएं। फिर, इसके ऊपर रेत की एक परत बिछाएं और ऊपर से वर्मीकम्पोस्ट की परत डालें। अब इस वर्मीकम्पोस्ट में कुछ केंचुएं डाल दें। अब इस ड्रम को किसी नल के नीचे रखें या फिर कोई मटका इसके ऊपर लटका दें। क्योंकि, ड्रम में आपको हर रोज पानी डालना होगा। लगभग एक-दो हफ्ते बाद, ड्रम में लगाए नल से आप ड्रम में बनने वाली तरल खाद ‘वर्मीवॉश’ लेना शुरू कर सकते हैं।” 

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उगा रहे हैं अलग-अलग फसलें

वर्मीवॉश बनाने के कई अलग-अलग तरीके हैं, जो किसान अपनी सहूलियत के हिसाब से अपना सकते हैं। खाद के अलावा, खेतों को बुवाई के लिए तैयार करने पर भी वह काफी मेहनत करते हैं। उन्होंने बताया कि सबसे पहले खेतों की गहरी जुताई की जाती है और फिर दो-तीन बार खेतों में ‘रोटावेटर’ चलाया जाता है। इसके बाद, खेतों में जैविक खाद डाली जाती है और खाद के ऊपर फिर से मिट्टी डाली जाती है। इस प्रक्रिया में एक महीने का समय चला जाता है और फिर खेत में बुवाई की जाती है। 

उन्होंने बताया, “इस साल मैंने दिसंबर के महीने से ही खेत तैयार करना शुरू कर दिया था और जनवरी में खरबूजे के पौधे लाकर बुवाई की (muskmelon farming)। अगर कोई किसान बीज से बुवाई करना चाहता है तो अपने इलाके के मौसम के हिसाब से करे। जनवरी में काफी सर्दी होती है इसलिए, बीज को अंकुरित होने में समय लगता है। ऐसे में, आप पौधे लगा सकते हैं। लेकिन, अगर बीज से ही बुवाई करना चाहते हैं तो फरवरी का महीना ठीक रहता है। जब सर्दी कम होने लगती है।” जनवरी के महीने में उन्होंने जो फसल लगाई, उसकी कटाई लगभग ढाई महीने बाद, मार्च में शुरू हो गई। 

प्रवीण के मुताबिक, सात एकड़ में लगाई खरबूजे की फसल (muskmelon farming) से उन्हें लगभग 12 लाख रुपए की कमाई हुई है। इसी तरह, उन्हें खीरा और तरबूज की फसल से भी मुनाफा हुआ है। वह बताते हैं, “मैंने इजरायल में जो भी तकनीके सीखीं, उनका इस्तेमाल अपने खेतों में कर रहा हूँ। जैसे कि बीज लगाने के बाद कुछ दिनों के लिए, इन्हें ‘पॉलीप्रोपाइलीन शीट’ से ढक दिया जाता है। जिससे मौसम की मार और जानवरों से फसल सुरक्षित रहती है। इसकी वजह से, मिट्टी में नमी भी बनी रहती है और खरपतवार का खतरा भी कम होता है।” 

)से उन्हें लगभग 12 लाख रुपए की कमाई हुई है। इसी तरह, उन्हें खीरा और तरबूज की फसल से भी मुनाफा हुआ है। वह बताते हैं, “मैंने इजरायल में जो भी तकनीके सीखीं, उनका इस्तेमाल अपने खेतों में कर रहा हूँ। जैसे कि बीज लगाने के बाद कुछ दिनों के लिए, इन्हें ‘पॉलीप्रोपाइलीन शीट’ से ढक दिया जाता है। जिससे मौसम की मार और जानवरों से फसल सुरक्षित रहती है। इसकी वजह से, मिट्टी में नमी भी बनी रहती है और खरपतवार का खतरा भी कम होता है।” 

सिंचाई के लिए उन्होंने अपने खेतों में ऑटोमैटिक ड्रिप इरीगेशन मशीन और स्प्रिंक्लर जैसे उपकरण लगाये हुए हैं। वह कहते हैं, “कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए कई तरह की सब्सिडी योजना चलाई जा रही हैं। चाहे वह तालाब के लिए हो या ड्रिप इरिगेशन के लिए। जरूरत है तो सही जागरूकता की। इसलिए, किसानों को अपने तक ही सीमित न रहकर, अपने इलाके के ‘कृषि विज्ञान केंद्रों’ और कृषि अधिकारियों की मदद भी लेनी चाहिए। जब तक हम किसान, अपने खेतों के लिए दिन-रात मेहनत नहीं करेंगे, हम आगे भी नहीं बढ़ पाएंगे।” 

muskmelon farming
खरबूज (muskmelon farming) और तरबूज की खेती में हुआ मुनाफा

सूरत के बागवानी अधिकारी, नैनेष चौधरी कहते हैं, “प्रवीण जी जैसे किसान न सिर्फ खुद आगे बढ़ रहे हैं बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा हैं। हमारा विभाग काफी समय से किसानों को प्लास्टिक छोड़कर पॉलीप्रोपाइलीन शीट और सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीके इस्तेमाल करने के लिए जागरूक कर रहा है। लेकिन किसानों को बदलाव के लिए तैयार करना काफी मुश्किल है। ऐसे में, प्रवीण जी जैसे प्रगतिशील किसान मददगार साबित होते हैं क्योंकि अब हमारे पास उनकी सफलता का उदाहरण है।”

प्रवीण को अपने खेतों में पॉलीप्रोपाइलीन शीट और ड्रिप इरिगेशन लगाने के लिए सब्सिडी मिली है। साथ ही, विभाग द्वारा उनकी मार्केटिंग में भी मदद की जा रही है। नैनेष चौधरी कहते हैं कि दूसरे किसानों को भी वे प्रवीण के खेतों का दौरा करने की सलाह देते हैं ताकि वे नए-नए तरीके सीख सकें।

सीधा ग्राहकों के घर पहुँच रही है उपज

खेती के तरीकों में बदलाव करने के साथ-साथ, प्रवीण ने अपनी उपज को ग्राहकों तक पहुँचाने के तरीकों में भी बदलाव किया। पहले वह मंडी और बिचौलियों पर निर्भर थे, वहीं अब सीधा ग्राहकों से जुड़ रहे हैं। सूरत शहर और आसपास के इलाकों में लगभग 300 ग्राहकों से वह सीधा जुड़े हुए हैं। ये लोग उन्हें फेसबुक या व्हाट्सऐप के जरिए ऑर्डर देते हैं। लोगों के घरों तक डिलीवरी करने के लिए, प्रवीण के पास एक गाड़ी भी है। 

उन्होंने बताया, “ग्राहकों से सीधा जुड़ने के लिए सोशल मीडिया से काफी मदद मिली। इसकी शुरूआत पिछले साल लॉकडाउन में हुई, जब हमें अपनी उपज बेचनी थी लेकिन, सब कुछ बंद था। मैंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली, अलग-अलग ग्रुप्स में लोगों को बताया और जब हमें ऑर्डर मिलने लगे तो मैंने प्रशासन से अनुमति लेकर डिलीवरी शुरू की। पिछले साल सिर्फ तरबूज की खेती से हमें 16 लाख रुपए की कमाई हुई थी।” 

सीधा ग्राहकों को करते हैं डिलीवरी

प्रवीण कहते हैं कि लोगों को उनके फल और सब्जियां खूब पसंद आ रहे हैं और अब ग्राहकों की मांग पर ही इस साल वह ड्रैगन फ्रूट, अमरुद, अनार जैसे फलों के बागान भी लगाने वाले हैं। प्रवीण का कहना है कि आने वाले कुछ सालों में, वह अपने खेतों में ‘एग्रो-टूरिज्म’ शुरू करेंगे। 

आज जहाँ लोग किसानी छोड़कर अपने बच्चों को नौकरी से जोड़ना चाहते हैं, वहीं प्रवीण चाहते हैं कि उनके बच्चे कृषि विषय में पढ़ाई करें ताकि उनसे भी बेहतर तरीकों से अपने खेतों को संभाल सकें। इसके साथ ही, सूरत और आसपास के इलाकों में वह दूसरे किसानों की मदद भी कर रहे हैं। 

वह अंत में कहते हैं, “अगर कोई किसान मुझसे संपर्क करता है और अपनी परेशानी बताता है तो मैं उनकी मदद करने की कोशिश करता हूँ। सूरत के आसपास ही अगर उनके खेत हो तो मैं चला भी जाता हूँ। मेरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा किसान, जैविक खेती से जुड़ें और अच्छी कमाई करें।” 

अगर आप प्रवीण से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें फेसबुक पर मैसेज कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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