लॉकडाउन में बंद हुआ रेस्तरां तो 5-स्टार शेफ ने कार को बनाया फूड स्टॉल, कमाई 1 लाख रु/माह

Food Stall In Car

मुंबई के रहने वाले पंकज नेरुरकर ने, लॉकडाउन में अपना रेस्तरां बंद होने की वजह से आजीविका के लिए, अपनी नैनो कार में ‘नैनो फूड स्टॉल’ शुरू किया। जिसमें वह सीफूड बेचते हैं और हर रोज लगभग 150 ग्राहकों को खाना खिला कर, एक लाख रुपये/माह कमा रहे हैं।

होटल व्यवसाय से जुड़े बहुत से लोगों को, कोरोना महामारी के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने फिर से एक नयी शुरुआत कर, लोगों के लिए मिसाल कायम की है। ऐसी ही एक प्रेरक कहानी है मुंबई के रहने वाले पंकज नेरुरकर की। जो अपनी टाटा नैनो कार में फूड स्टॉल (Food Stall in Car) शुरू कर, अपनी आजीविका चला रहे हैं। 

अगर, आप कभी मुंबई में चरनी रोड के अम्बेवाड़ी चॉल के पास से गुजरे तो आप वहाँ सड़क किनारे खड़ी एक टाटा नैनो कार देखेंगे। इस सफेद रंग की गाड़ी पर ‘नैनो फूड’ नाम से पोस्टर लगा हुआ है, जिस पर अलग-अलग स्वादिष्ट व्यंजनों का मेन्यू लिखा हुआ है। जब आप इस गाड़ी के पास से गुजरेंगे तो ताजा पकाये समुद्री भोजन (सीफूड) की खुशबू आपका मन मोह लेगी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन सब व्यंजनों को एक 5-स्टार शेफ, पंकज नेरुरकर बनाते हैं।

गिरगांव के रहने वाले पंकज ने लगभग दो दशकों तक ‘हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री’ में काम किया है। ग्रैंड हयात और एक अंतरराष्ट्रीय क्रूज के साथ-साथ ‘द आयरिश हाउस’ में ब्रांड शेफ के रूप में अनुभव प्राप्त करने के बाद, उन्होंने 2017 में खड़पेज (Khadpe’s) नाम से अपना एक मालवानी व्यंजन रेस्तरां शुरू किया था। लेकिन, कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण आए आर्थिक संकट ने, उन्हें अपना रेस्तरां बंद करने पर मजबूर कर दिया। इस महामारी और लॉकडाउन की वजह से, उन्हें प्रभादेवी में अपने दोनों रेस्तरां की सेवा को अचानक बंद करना पड़ा। 

लेकिन, इस संकट ने उनके व्यवसाय को खत्म किया, उनके सपनों को नहीं। 43 वर्षीय पंकज ने फिर जीरो से शुरुआत की और अपनी नैनो गाड़ी में महाराष्ट्रीयन समुद्री भोजन बेचना शुरू किया। इस व्यवसाय से उनकी कमाई एक लाख रुपए प्रतिमाह हो रही है। 

लॉकडाउन में हुआ भारी नुकसान

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वह बताते हैं, “मैंने अपनी जमा पूंजी और अपनी पत्नी, दीप्ति के गहने आदि, ये रेस्तरां खोलने में लगा दिए थे। सबकुछ अच्छा चल रहा था इसलिए, 2019 में मैंने दूसरा आउटलेट भी शुरू किया। लेकिन महामारी के दौरान हमें अपना व्यवसाय बंद करना पड़ा।” कई महीनों तक उनका व्यवसाय बंद रहा और इस कारण उनके लिए जगह का किराया भरना और सैलरी देना मुश्किल हो गया। वह कहते हैं कि उन्हें बहुत ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा और उनके मन में तरह-तरह के नकारात्मक विचार आने लगे। 

जैसे-जैसे लॉकडाउन खुलने लगा, उन्होंने और उनकी पत्नी ने व्यवसाय के नए-नए विचारों के बारे में सोचना शुरू कर दिया। वह कहते हैं, “मेरे भाई की भी नौकरी चली गयी थी। मुझे अपने पिता और दो बच्चों को भी संभालना था। मुझे अपने परिवार को चलाने के लिए आजीविका कमाना बहुत जरुरी था।” उनके व्यवसाय के बारे में बहुत से ग्राहक जानते थे। इसलिए, उन्होंने फिर से भोजन से संबंधित व्यवसाय शुरू किया। 

उन्होंने अपने घर से खाना बनाना शुरू किया और ग्राहक अपना ऑर्डर लेने, वहां आने लगे। वह कहते हैं, “मुझे बड़े उपकरणों के साथ, बड़े स्तर पर खाना पकाने की आदत थी। घर की रसोई के सेटअप में सबकुछ अधूरा-अधूरा लग रहा था। इसके अलावा, ग्राहकों को अक्सर चॉल की गलियों से होकर, ऑर्डर लेने के लिए आना पड़ता था। इससे लोगों को ठीक तरह से यह पता नहीं चल पाता था कि उन्हें ऑर्डर लेने के लिए आना कहाँ हैं और स्वच्छता के बारे में भी लोगों को संदेह होने लगता था। मेरे नए व्यवसाय का ज्यादा से ज्यादा लोगों के सामने आना या उसके बारे में लोगों को पता लगना बहुत जरुरी था।”

ऐसे में पंकज ने घर में खाना पकाने और इसे अपनी गाड़ी में, मुख्य सड़क पर ले जाने का फैसला किया। वह कहते हैं, “मैंने कार से ग्राहकों को खाना बेचने का फैसला किया और इसे ‘नैनो फूड’ नाम दिया। मैंने पोस्टर बनाए और एक व्हाइटबोर्ड पर व्यंजनों के मेन्यू को लिखा। हमने सितंबर 2020 में काम शुरू कर दिया।”

ग्राहकों को अच्छा लगा आईडिया

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हालांकि, शुरू में उनका व्यवसाय अच्छा नहीं चला। दिन में मुश्किल से उन्हें पाँच ग्राहक मिल पाते थे। वह कहते हैं, “सही प्रतिक्रिया न मिलने पर मैं निराश होने लगा और एक दिन मैंने कार पर मेन्यू नहीं लगाया और व्यवसाय बंद करने की सोचने लगा। लेकिन उस दिन, एक दोपहिया (टू-व्हीलर) वाहन पर एक सज्जन रुके और पूछा कि मेन्यू क्यों नहीं लगाया? मैंने उन्हें टालने की कोशिश की तो उन्होंने मुझसे कहा कि वह हर रोज आते-जाते मेरा मेन्यू पढ़ते हैं।” 

इससे उन्हें अहसास हुआ कि भले ही ग्राहक कम हैं लेकिन, लोगों को उनके व्यवसाय के बारे में पता चल रहा है। वह बताते हैं, “मुझे अहसास हुआ कि हमारा मेन्यू सीमित था और ग्राहकों के लिए विकल्प बढ़ाने की जरूरत थी। चिकन करी और मछली की थालियों के छोटे मेन्यू में, मैंने मालवनी चिकन करी, सुरमई फ्राय, पॉमफ्रेट फ्राय, कोलंबी फ्राय, कोलंबी पुलाव, कोलंबी मसाला, चपाती, भाकरी, और बैंगन आदि जोड़ दिए और तब मुझे ग्राहकों से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। जैसे-जैसे लोगों को पता चला, वे हमारे यहाँ आने लगे।”

वह कहते हैं कि लोगों को यह बात अच्छी लगी कि बिना पैसे के भी आदमी, एक छोटी-सी कार से व्यवसाय चला सकता है। लोगों ने इस बिज़नेस मॉडल की सराहना की और इसे सफल बनाया। 

यहां सुबह साढ़े सात बजे नाश्ता, साढ़े बारह बजे लंच और शाम साढ़े सात बजे डिनर के लिए खाना परोसा जाता है। यहां हर दिन लगभग 150 ग्राहक आते हैं। 

इस मुश्किल वक्त में, अपने साथी के अलावा, पंकज को अपने कॉलेज के दोस्त, श्रीकृष्ण गंगन से भी पूरा सहयोग मिला। उन्होंने बताया, “पंकज का सपना मेरा सपना है और मैं इसे किसी भी कीमत पर टूटने नहीं दे सकता। मैंने उसे पूरी लगन से काम करते देखा है और उसने अपनी सारी ऊर्जा इस बिजनेस में लगा दी है। इंसान का हौसला बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है, जितना आर्थिक मदद करना।” 

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उनका व्यवसाय अच्छे से चल रहा है लेकिन, पंकज कहते हैं कि अभी उन्हें लम्बा रास्ता तय करना है। वह कहते हैं, “मैं अभी बस अपने परिवार को पालने में सक्षम हुआ हूँ। तेल, ईंधन और अन्य कच्चे माल की कीमतें बढ़ गई हैं। लोगों ने अपनी नौकरियां गवां दी है और खर्च करने की क्षमता भी कम हो गई है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, अपने रेस्तरां मूल्य 350 रुपये में व्यंजनों को न बेचकर, अब मैं 100 रुपये और 120 रुपये में व्यंजनों की बिक्री कर रहा हूँ। इसमें मुनाफा तो काफी कम है लेकिन, ग्राहकों के लिए खाना सस्ता है। शाकाहारी या अन्य मांसाहारी खाने के व्यवसायों की तुलना में, समुद्री भोजन बनाने की लागत ज्यादा है। उनकी पत्नी दीप्ति रेस्तरां के संचालन में उनकी मदद करती हैं।”

पंकज कहते हैं कि मुनाफा बढ़ने से, अब वह बड़े ऑर्डर स्वीकार कर सकते हैं। इसके साथ ही, नैनो फ़ूड को छोड़कर, एक स्थायी जगह पर व्यवसाय लगाने के बारे में वह कहते हैं, “मैं कभी भी इस नए बिज़नेस मॉडल को नहीं छोडूंगा। क्योंकि, इसकी वजह से हम अपने पैरों पर फिर से खड़े हो सके हैं।” साथ ही, वह कहते हैं, “मैं इस बिज़नेस मॉडल को मुंबई के वाणिज्यिक और आवासीय क्षेत्रों में भी शुरू करने की सोच रहा हूँ।” 

मूल लेख: हिमांशु नित्नावरे

संपादन- जी एन झा

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