किसान ने बनाई अनोखी मशीन, एक घंटे में निकलता है 10 क्विंटल टमाटर का बीज

Odisha Farmer

ओडिशा के रेसिंगा गाँव के रहने वाले दिलीप बरल 1997 से फसलों से बीज तैयार करने के बिजनेस में हैं। इस दौरान उन्हें हाथों से बीज निकालने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने कुछ अलग करने का प्रयास किया, ताकि कम समय में अधिक से अधिक बीज निकाला जा सके।

यह कहानी ओडिशा के एक ऐसे किसान की है, जिसका नवाचार दशकों तक दुनिया से छिपा रहा। लोगों को पहली बार उनके बारे में तब पता चला जब उन्हें राज्य सरकार द्वारा एक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

यह रोचक कहानी 52 वर्षीय किसान दिलीप बरल की है, जो रेसिंगा गाँव के रहने वाले हैं। वह साल 1997 से फसलों से बीज तैयार करने के बिजनेस में हैं। इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।

उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “सब्जियों से बीज निकालने के लिए हाथों का इस्तेमाल और अकुशल श्रम के कारण, हमारा काफी समय खराब होता था। ऐसे में हमें जल्दी काम खत्म करने के लिए एक समाधान की जरूरत थी।”

कैसे आया विचार

सब्जियों से बीज निकालने के लिए परंपरागत तरीकों के बारे में दिलीप कहते हैं कि इसके लिए सब्जियों को अच्छी तरह से पकने की जरूरत है। इसके बाद पैरों से या लकड़ी से इसे कुचल दिया जाता है। फिर, एक दिन के लिए नॉन मेटल कंटेनर में किण्वित (Fermented) किया जाता है।

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Dilip trains women for mushroom farming in the area as well.

इस प्रक्रिया के बाद, पल्प को पानी से साफ किया जाता है। इससे बीज अलग हो जाते हैं, बाद में इन्हें सुखाया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया मैन्युअली होती है। इसमें एक घंटे में तीन क्विंटल टमाटर और छह क्विंटल बैगन से बीजों को निकाला जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में पाँच मजदूरों की जरूरत होती है।

दिलीप कहते हैं, “इस तरह हम एक महीने में 200 क्विंटल टमाटर से बीजों को निकाल पाते थे। आलम यह था कि इस दर से हम एक साल में केवल 25 किलो बीज बेच सकते थे।”

“यह साल 2000 था। मुझे एहसास हुआ कि इस काम को करने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि कम समय में अधिक से अधिक बीजों को निकाला जा सके। इसके बाद, मैंने एक रफ डिजाइन तैयार किया,” वह कहते हैं।

खास बात यह है कि दिलीप के पास इंजीनियरिंग का कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने आर्ट्स के साथ अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है। लेकिन, उन्होंने कभी इसकी परवाह न की। उन्होंने अपने मशीन को बनाने के लिए स्थानीय कृषि उपकरण निर्माताओं की मदद ली।

वह कहते हैं, “ये पेशेवर थ्रेशर और अन्य कृषि उपकरण बनाते हैं। मैं उनके पास बेकार सामानों से मशीन बनाने गया था। इसके लिए मुझे एक सिलिंड्रिकल टैंक, वन एचपी मोटर, ब्लेड के साथ एक स्टील कंटेनर की जरूरत थी।”

महीनों का काम एक दिन में

दिलीप को अपनी मशीन से वांछित परिणाम पाने में 7 वर्ष लगे और अंततः उनका मशीन 2007 में बनकर तैयार हुआ।

वह कहते हैं, “हमें मशीन बनाने में लंबा समय लगा। इसके लिए हमारे पास पैसों की कमी थी और इसके लिए कहीं से मदद नहीं मिल रही थी। इसके अलावा, एक और समस्या यह थी कि टमाटर की फसल केवल सर्दियों में होती है। इसका अर्थ था कि मैं सिर्फ इसी दौरान अपने प्रयास को जारी रख सकता था। जबकि, बैंगन की सब्जियों का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक समय के लिए किया जा सकता था।”

मशीन के संचालन के बारे में वह बताते हैं कि इसमें सब्जियां ऊपर से भरी जाती हैं। यहाँ एक स्टील टैंक मोटर की मदद से घूमता है। इसमें ब्लेड और हैम्पर लगे होते हैं, जो सब्जियों को काटते और कुचलते हैं।

मशीन एक प्वाइंट से सब्जियों के पल्प बाहर आते हैं, तो दूसरे से छिलके और अन्य अवांछित अवशेष। इस प्रकार, प्रक्रिया में बीज को अलग किया जाता है। फिर, बीजों को फर्मेंट करने और धोने के बाद, इसे बेचने के लिए पैक किया जाता है।

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Dilip was felicitated by PM Modi for his farming successes.

दिलीप कहते हैं, “इस मशीन में एक घंटे में 10 क्विंटल टमाटर और 3 क्विंटल बैंगन से बीज निकाले जा सकते हैं। इस दर से, मैं साल में करीब 15 क्विंटल बीज बेचता हूँ।”

पेटेंट हासिल करने के लिए किया आवेदन

साल 2019 में, उनके नवाचार को राज्य सरकार द्वारा अभिनव पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने कार्यों के बारे में देरी से लोगों को पता चलने को लेकर, दिलीप बस इतना कहते हैं, “किसी ने इसके बारे में पूछा ही नहीं।”

साल 2018 में, राज्य सरकार ने किसानों से अपने नवाचार कार्यों के लिए आवेदन माँगे। इसके बाद, दिलीप ने भी आवेदन किया और इसमें जीत भी हासिल की। अब, उनके इस नवाचार पर नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) का ध्यान गया है और इसके लिए पेंटेट दायर किया गया है।

दिलीप कहते हैं, “उन्होंने मुझे सबमिशन के लिए पाँच मशीनें बनाने के लिए कही। उम्मीद है कि मुझे इसका पेटेंट मिल जाएगा।”

यदि मशीन बाजार में उपलब्ध होता है, तो इसकी लागत करीब 20 हजार रुपए होगी। वर्षों तक प्रयास के बाद भी, दिलीप कहते हैं कि इसमें अभी और सुधार की गुंजाइश है।

वह कहते हैं, “मैं कोई इंजीनियर नहीं हूँ। लेकिन, मशीन में अभी और सुधार की गुंजाइश है। मुझे उम्मीद है कि वालंटियर आगे आएंगे और इस मशीन को और विकसित करने में मदद करेंगे।” 

किसानी के साथ इस अभिनव प्रयोग करने वाले ओडिशा के इस किसान के जज्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है।

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मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE

संपादन – जी. एन. झा

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