24 वर्षीय युवक ने अपने गाँव लौटकर शुरू किया ‘3 Idiots’ जैसा इनोवेशन स्कूल

ओडिशा में बराल गाँव के 24 वर्षीय अनिल प्रधान ने गाँव के बच्चों के लिए ‘इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल फॉर रूरल इनोवेशन’ खोला है जहाँ बच्चों को तकनीक और इनोवेशन का पाठ पढ़ाया जाता है!

साल 2009 में एक फिल्म आई थी, ‘थ्री इडियट्स’। यह फिल्म आज भी हम सभी के जेहन में बसी हुई है। दरअसल इस फिल्म ने कहीं न कहीं साइंस, मेडिकल और इंजीनियरिंग की भेड़चाल में चलने वाले लोगों की आंखें खोली थीं। इस फिल्म ने समझाया था कि आप साइंस पढ़ रहे हैं या आर्ट्स, यह मायने नहीं रखता है, अगर कुछ मायने रखता है तो सिर्फ यह कि आपकी काबिलियत क्या है? अगर आप में कोई हुनर है और आप उसे अपनी काबिलियत बना लें तो इसे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता।

फिल्म में अभिनेता आमिर खान का किरदार ‘रैंचो’ बहुत से लोगों की प्रेरणा है। अपनी कल्पना और हुनर से अपने काबिलियत निखारने वाला रैंचो, फिल्म के अंत में किसी बड़े देश या अंतरराष्ट्रीय कंपनी के साथ काम नहीं करता है। बल्कि अपने समुदाय के लोगों के लिए साधन जुटाता है और अपने देश के बच्चों के आगे बढ़ने की राह बनाता है। यह तो हुई फिल्मी बात, लेकिन आज हम आपको जिस शख्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं, उसकी कहानी भी रैंचो से ही मिलती-जुलती है।

हम बात कर रहे हैं ओडिशा में बराल गाँव के 24 वर्षीय अनिल प्रधान की। कटक से लगभग 12 किलोमीटर दूर एक द्वीप पर कुछ गाँव का समूह बसा हुआ है जिसे 42 मोउज़ा कहते हैं। यहाँ के बच्चों के लिए अनिल किसी ‘रैंचो’ से कम नहीं हैं। क्योंकि उन्होंने भी गाँव में ही एक अनोखा स्कूल, ‘इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल फॉर रूरल इनोवेशन’ खोला है जहाँ बच्चों को तकनीक और इनोवेशन का पाठ पढ़ाया जाता है। उनके लिए पढ़ाई सिर्फ रटने और फिर भूलने की चीज़ नहीं है बल्कि वह इस पढ़ाई का उपयोग अपनी दैनिक ज़िंदगी में करते हैं।

Anil Pradhan odisha
Anil Pradhan

गाँव में पले-बढ़े अनिल ने बचपन से ही पढ़ाई के लिए परेशानियां झेली थीं। उनके पिता सीआरपीएफ में थे और अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए काफी सजग थे। अनिल हर दिन अपने गाँव से लगभग 12 किलोमीटर दूर कटक साइकिल चलाकर पढ़ने जाते थे। उनकी यह यात्रा बहुत बार साइकिल खराब होने की वजह से काफी मुश्किल हो जाती थी। लेकिन वह हर रोज़ इन मुश्किलों को पार करने का रास्ता तलाशते थे और कोई न कोई जुगाड़ लगाते थे।

शायद वहीं से उनका नवाचार और जुगाड़ से रिश्ता जुड़ गया था।

अनिल जीवन में आगे बढ़ने का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे पिताजी एस. के. प्रधान ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है। वह सीआरपीएफ में थे। देश और देशवासियों के प्रति समर्पण और ईमानदारी मैंने उनसे ही सीखी है। हालांकि गाँव में स्कूल खोलने की प्रेरणा मुझे अपनी माँ से मिली। माता-पिता के जीवन के संघर्ष ने मुझे आम लोगों के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया।”

अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अनिल ने सिविल इंजीनियरिंग में वीर सुरेंद्र साईं यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया। यहाँ पर अपनी डिग्री के साथ-साथ उन्होंने कॉलेज की रोबोटिक्स सोसाइटी में भी हिस्सा लिया। उन्होंने सोसाइटी के साथ बहुत से प्रोजेक्ट्स में हिस्सा लिया और इस सबके बीच वह यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट सेटेलाइट टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने हीराकुंड बाँध को मोनिटर करने के लिए एक सेटेलाइट बनाया। उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर एक ऐसा रोबोट भी बनाया जो बिजली के खंभों पर चढ़कर वायर को ठीक कर सकता है।

अनिल कहते हैं, “आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसमें कॉलेज के दोस्तों का बड़ा हाथ है। कॉलेज में हमारी एक टीम थी, जिसने मेरे भीतर आत्मविश्वास को बढ़ाया। वहीं मैंने सीखा कि मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। सिविल इंजीनियरिंग के साथ -साथ मैंने मैकेनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रोग्रामिंग भी सीखी।”

Odisha Rural Innovation School
Teaching the students

इन नवाचारों के अलावा, उन्होंने विश्वविद्यालय में एक ऐसा उपकरण भी विकसित किया, जो कारखानों और आवासीय भवनों द्वारा बिजली की खपत की मात्रा को 60% तक कम कर सकता है, और इस नवाचार को इंफ्रास्ट्रक्चर मेजर, एलएंडटी द्वारा टॉप 7 स्टूडेंट परियोजनाओं में सूचीबद्ध किया गया था।

अनिल को इन सभी इनोवेशन और उनके स्कूल, इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल फॉर रुरल इनोवेशन के लिए भारत सरकार की ओर से 2018 का नेशनल यूथ आइकन अवार्ड भी मिल चुका है। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए अटल इनोवेशन मिशन के तहत शुरू हुए अटल टिंकरिंग लैब में वह ‘मेंटर फॉर चेंज’ भी हैं। यहाँ तक ​​कि नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम ने उन्हें भुवनेश्वर के क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र में “इनोवेशन मेंटर” नियुक्त किया।

इतनी उपलब्धियों के साथ अनिल कहीं भी आगे जा सकते थे और अपना नाम कमा सकते थे। लेकिन वह अपने गाँव वापस आए और यहाँ पर रूरल इनोवेशन का एक सेंटर बनाने की ठानी। वह कहते हैं, “मैं गाँव में ही पला-बढ़ा हूँ लेकिन अच्छी शिक्षा हासिल करने के लिए मुझे बाहर जाना पड़ा। लेकिन अब मैं नहीं चाहता कि कोई भी बेहतर शिक्षा के लिए पलायन करे बल्कि बेहतर शिक्षा और अन्य सुविधाएं बच्चों को यहीं उनके गाँव में मिलनी चाहिए। मेरा मानना है कि स्कूलों में जो कुछ भी पढ़ाया जाता है वह कहीं न कहीं बच्चों को सिलेबस के बोझ तले दबा देता है और बच्चों की रचनात्मक और क्रियात्मक प्रतिभा उभर कर सामने नहीं आ पाती है। मैं ऐसे बच्चों को तैयार करना चाहता हूँ जो समस्या के नहीं बल्कि उनके समाधान के बारे में सोचें।”

Rural Innovation School
The joy of learning. (Source: IPSFRI)

उन्होंने सबसे पहले रूरल सेंटर शुरू करने के विचार को अपनी माँ सुजाता के सामने रखा, जो केंद्रीय विद्यालय के एक स्कूल में शिक्षक थीं और बाद में सीआरपीएफ मोंटेसरी स्कूल की प्रिंसिपल बनीं। उन्होंने स्कूल को कैसे स्थापित किया जाए, क्या-क्या करना चाहिए जैसे मुद्दों पर अनिल की मदद की। उनकी माँ ने ही स्कूल की शिक्षण पद्धिति तैयार करने में मदद की।

अनिल कहते हैं, “स्कूल को बनाने में शुरूआती फंड मेरे माता-पिता ने दिए और मैंने अपनी स्कॉलरशिप और अवॉर्ड्स में मिली राशि को भी इसमें लगा दिया।”

साल 2017 के शुरूआती महीनों में स्कूल का निर्माण 2.5-एकड़ ज़मीन पर शुरू हुआ जो उनके परिवार की थी। प्रिंसिपल के तौर पर उनकी माँ ने स्कूल की कमान संभाली। इस स्कूल में आज दो डी प्रिंटर, ड्रिलिंग मशीन, लेजर कटर, रिंच, स्क्रू ड्रायर्स और भी बहुत कुछ है।

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Aside from regular Yoga and PT classes, students undertake the Swachh Campus initiative, where every day for 10 minutes every child assist in cleaning the school campus

“इस स्कूल में ऐसे छात्रों को विकसित करना है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के माध्यम से वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए काम करेंगे। हमारी पढ़ाई प्रैक्टिकल है। शिक्षण पद्धति काफी नवीन है जो छात्रों को जटिल विषयों को सरल और रचनात्मक तरीके से सिखाती है। हम हर एक बच्चे पर एक ही जैसी पढ़ाई और कोर्स थोप नहीं सकते हैं। हर बच्चा अलग होता है और कुछ अलग करने में सक्षम होता है। हमारे पास अलग-अलग एक्सपेरिमेंट का एक सेट है जो बच्चों को किसी विशेष क्षेत्र में उसकी क्षमताओं को समझने में मदद करता है,” उन्होंने आगे बताया।

जब स्कूल शुरू हुआ तो उनके लिए बच्चों के माता-पिता को मनाना काफी मुश्किल था। स्थानीय गाँव के लोग बच्चों को सरकारी स्कूल इसलिए भेजते थे क्योंकि वहाँ उन्हें खाना मिलता था। लेकिन अनिल और उनकी माँ अच्छी और बेहतरीन शिक्षा मुफ्त में दे रहे थे और खाना दे पाना उनके लिए मुश्किल था। लेकिन फिर भी बच्चों को सही पोषण मिले, इसके लिए उन्होंने एक चार्ट तैयार करके गाँव वालों को दिया। उन्होंने बच्चों को टिफ़िन दिया ताकि घर से उन्हें चार्ट के हिसाब से खाना मिले।

धीरे-धीरे उनके स्कूल में होने वाली अनोखी पढ़ाई के चर्चे सब जगह होने लगे और ज्यादा से ज्यादा लोग अपने बच्चों को यहाँ भेजने लगे। शुरूआत में सिर्फ 3 बच्चों से शुरू हुआ यह स्कूल आज 250 से ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर रहा है। यह स्कूल प्री-नर्सरी से छठी कक्षा तक है।

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Anil Pradhan receiving the 2018 National Youth Icon Award.

अनिल कहते हैं, “स्कूल के दैनिक कार्यों में परिवार का पूर साथ मिलता है। इसके अलावा कई अन्य लोग भी हमारी मदद कर रहे हैं। हालांकि अबतक मुझे राज्य सरकार से कोई सपोर्ट नहीं मिला है।”

इस स्कूल की सबसे दिलचस्प बात है स्कूल का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण। यहाँ बच्चों के लिए कोई परीक्षा आयोजित नहीं की जाती है। इसके बजाय, इन छात्रों से प्रश्न पूछे जाते हैं, और उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर उन्हें एक ग्राफ पर वर्गीकृत किया जाता है, जो उनके अकादमिक प्रदर्शन में सुधार या गिरावट को दर्शाता है।

अनिल बताते हैं, “हमारे पास कुछ गतिविधियाँ भी है जिसमें खेलना, क्राफ्टिंग और प्रयोग करना शामिल है जो हमें यह जानने में मदद करता है कि किस हद तक किसी छात्र का झुकाव किस विशेष क्षेत्र की ओर है।”

प्रैक्टिकल एप्लीकेशन के माध्यम से उन्हें बुनियादी विज्ञान और गणित पढ़ाने के अलावा, छात्रों को नवाचार करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। उदाहरण के लिए, छात्रों को प्लास्टिक की बोतलों का गार्डनिंग के लिए प्रयोग करना सिखाया जाता है, उन्हें बीज का निरीक्षण करना, उसका पोषण करना सिखाया जाता है और वह उन्हें विकसित होते देख सकते हैं। उन्हें सिखाया जाता है कि प्लास्टिक को डंप करने के अलावा इसे फिर से कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है और साथ ही, छात्रों को बायोलॉजी और देखभाल करने की आर्ट भी सिखाई जाती है।

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Their team selected for NASA’s Event

बच्चों को पुरानी सीडी के उपयोग से पाई चार्ट, अलग-अलग रंगों से दुनिया का नक्शा बनाना सिखाया जाता है। इसके अलावा स्कूल की सीढ़ियों पर यूनाइटेड नेशन के 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स भी पेंट किए हुए हैं। छात्रों को सीरियल नंबर द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी स्थायी लक्ष्यों को याद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

अनिल बताते हैं की द बेटर इंडिया के इंग्लिश प्लेटफॉर्म पर उनकी कहानी आने के बाद उन्हें बहुत से लोगों ने सम्पर्क किया। उन्हें काफी सपोर्ट भी मिला और तब उन्होंने एक और इंजीनियर, वैशाली शर्मा के साथ मिलकर ‘नवोन्मेष प्रसार फाउंडेशन’ की नींव रखी। इस फाउंडेशन को शुरू करना का उद्देश्य छात्रों को अलग-अलग क्षेत्र में आगे बढ़ाना था।

इसके तहत, उन्होंने पिछले साल ‘नवोन्मेष प्रसार स्टूडेंट एस्ट्रोनॉमी टीम’ की शुरुआत की। “हमें नासा के लिए एक टीम को तैयार करना था लेकिन इसमें भी हम कुछ अलग ढूंढ रहे थे। हमने लगभग 30 जिलों से बच्चों का चुनाव किया और इनमें से 10 बच्चों को नासा ह्यूमन एक्सप्लोरेशन रोवर चैलेंज के लिए ट्रेनिंग देकर तैयार किया,” उन्होंने आगे कहा।

खास बात यह है कि यह टीम अंडर-19 इंटरडिसिप्लिनरी टीम है, जिसमें स्कूल के छात्रों के साथ-साथ आईटीआई के छात्र भी है। इन बच्चों में एक लड़की ऐसी है जो पहले वेल्डिंग का काम करती थी तो एक छात्र पहले साइकिल में पंचर लगाने का काम करता था। लेकिन अनिल ने इनकी प्रतिभा को देखा और फिर उन्हें नासा के लिए तैयार किया।

अगले साल, अप्रैल में बच्चे नासा के इवेंट के लिए अमेरिका जाएंगे। फ़िलहाल, ये बच्चे अपने रोवर पर काम कर रहे हैं।

इसके अलावा, अनिल कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने कुछ दिव्यांगों को काम दिया और उनसे फेस-शील्ड बनवाई। अपनी आगे की योजना पर वह कहते हैं कि वह ओडिशा में एक और इनोवेशन स्कूल शुरू कर रहे हैं और यह रेजिडेंशियल स्कूल होगा। इसके पीछे का उद्देश्य दूसरे राज्यों से आने वाले छात्रों को भी पढ़ने का मौका देना है। साथ ही, वह एक इन्क्यूबेशन सेंटर भी सेट-अप कर रहे हैं।

द बेटर इंडिया ग्रामीण इलाके में शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव प्रयोग करने वाले अनिल प्रधान के जज्बे को सलाम करता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

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 मूल लेख – RINCHEN NORBU WANGCHUK

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