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सिलबट्टे पर पीसतीं हैं ‘पहाड़ी नमक’ और सोशल मीडिया के ज़रिए पहुँचातीं हैं शहरों तक!

हर महीने उन्हें दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से लगभग 35 किलो पहाड़ी नमक के ऑर्डर्स मिलते हैं!

देश-दुनिया में लोगों ने नमक के नाम पर अगर कुछ देखा है तो वह है ‘सफेद नमक।’ भारत के गांवों में और छोटे शहरों में तो फिर भी आपको काला नमक, सेंधा नमक चखने को मिल जाएगा। लेकिन मेट्रो शहरों में ये भी बड़ी मुश्किल से नसीब होते हैं।

एक तरफ जहां हम प्राकृतिक नमक के स्वाद से दूर होते जा रहे हैं, वहीं उत्तराखंड की कुछ महिलाएं पहाड़ों के ‘पिस्यु लूण’ को देशभर के लोगों तक पहुंचा रही हैं। यह एक कोशिश है उनकी अपने संस्कृति को सहेजकर आने वाले पीढ़ी तक पहुंचाने की और खुद को आत्मनिर्भर बनाने की।

इस कोशिश की नींव रखी है टिहरी-गढ़वाल इलाके में रहने वाले शशि रतूड़ी ने। मूल रूप से देहरादून के एक गाँव से संबंध रखने वाली 54 वर्षीय शशि अपनी पढ़ाई के दौरान ही सामाजिक गतिविधियों से जुड़ गईं थीं।

उन पर उनके मौसा जी का काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा, जो एक सामाजिक संगठन चलाते थे। उनके संगठन से जुड़कर शशि ने कई मुद्दों पर काम किया, जिनमें पर्यावरण से लेकर नारी-सशक्तिकरण तक शामिल था।

Women promoting Pahadi Culture

वह बतातीं हैं, “मैंने पहाड़ों का बदलाव देखा है। हरे-भरे जंगल वीरान होने लगे थे और हम पहाड़ी मानो अपनी ही परम्पराओं को छोड़ किसी और रंग में रंगने लगे। इस बदलाव ने मुझे प्रभावित किया है। शादी के बाद भी मैं हमेशा कुछ ऐसा करने का सोचती जिससे कि अपनी संस्कृति से दूर होते लोगों को फिर से उनकी जड़ों से जोड़ सकूं। तब साल 1982 में महिला नवजागरण समिति की शुरुआत की।”

इस समिति के ज़रिए उन्होंने अलग-अलग मुहिम पर काम किया। जैसे पहाड़ों की संस्कृति और कलाओं को सहेजना, पर्यावरण का संरक्षण, ग्रामीणों को रोज़गार से जोड़ना, इको-होम स्टे को बढ़ावा देना आदि। उन्होंने कई अलग-अलग पहल शुरू की और इन्हीं में से एक पहल है ‘नमकवाली!’

जी हाँ, नमकवाली, लगभग 10-11 महिलाओं का समूह है, जो पहाड़ों के सदियों से बनते आ रहे तरह-तरह के पहाड़ी नमक तैयार करती हैं, जिन्हें ‘पिस्यु लूण’ यानी कि पहाड़ों का नमक कहा जाता है। इस नमक को वह ऑनलाइन मार्केटिंग और कूरियर के माध्यम से देश के अलग-अलग शहरों तक पहुंचाती हैं।

Pisyu Loon

शशि कहतीं हैं कि इसके ज़रिए महिलाओं को घर बैठे अतिरिक्त रोज़गार मिल रहा है और उत्तराखंड को एक अलग पहचान भी मिल रही है। इस पहल का चेहरा हैं रेखा कोठारी, क्योंकि उनसे ही पहाड़ों के नमक को मार्किट तक पहुंचाने की प्रेरणा मिली। रेखा अपनी शादी से पहले से ही महिला नवजागरण समिति से जुडी हुईं थीं।

जब भी वह समिति की किसी मीटिंग या ट्रेनिंग में हिस्सा लेने जाती तो अक्सर अपने घर से यह ‘पिस्युं लूण’ ले जाती थीं। समिति में जब शशि और अन्य महिलाओं ने इसे चखा तो उन्हें बहुत पसंद आया। रेखा चम्बा इलाके के एक गाँव से हैं और उन्होंने यह नमक बनाना अपनी माँ से सीखा था। इसकी रेसिपी पारंपरिक है, जिसमें अलग-अलग तरह की लगभग 10 चीज़ें डालती हैं और इस नमक को सिलबट्टे पर पीसा जाता है।

Rekha Kothari

आर्डर के अनुसार यह नमक तैयार होता है और इसे 50 ग्राम, 100 ग्राम, 200 ग्राम के पैकेट्स में पैक किया जाता है। नमक की पैकेजिंग, कूरियर और मार्केटिंग की ज़िम्मेदारी महिला नवजागरण समिति की है।

शशि कहतीं हैं कि फ़िलहाल, उनका नमक उत्तराखंड के कई शहरों के साथ-साथ दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और अन्य मेट्रो शहरों में जाता है। लोग 100 ग्राम से लेकर 10 किलो तक भी आर्डर करते हैं। हर महीने वो लगभग 35 किलोग्राम नमक बेचतीं हैं।

सामान्य पिस्युं लूण के अलावा, स्पेशल आर्डर पर फ्लेवर्ड पिस्युं लूण भी तैयार किया जाता है जैसे लहसुन वाला नमक, अदरक वाला नमक, भांग वाला नमक आदि।

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“हम पहले से स्टॉक में कुछ बनाकर नहीं रखते क्योंकि हम अपने ग्राहकों को ताजा चीज़ देना चाहते हैं। जैसे ही हमें आर्डर मिलता है, वैसे ही हम महिलाओं को तैयारी के लिए कहते हैं। कितना नमक बनाना है, इस हिसाब से उसे तैयार करने में वक़्त लगता है। कभी-कभी एक दिन में हो जाता है तो कभी-कभी 3-4 दिन भी लगते हैं। फिर इसे अच्छे से पैक करके भेजा जाता है,” उन्होंने आगे कहा।

पिस्युं लूण की खासियत यह है कि ये स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। इसमें सेंधा नमक के साथ पहाड़ी जड़ी-बूटियाँ और पारंपरिक मसाले इस्तेमाल होते हैं। आप इसे सलाद के साथ, फलों के साथ, सब्ज़ियों में और तो और सीधा रोटी के साथ भी खा सकते हैं। कहते हैं कि अगर पिस्युं लूण हो तो पहाड़ियों को रोटी के साथ सब्ज़ी की भी ज़रूरत नहीं!

नमक के बाद अब शशि और उनकी टीम दूसरी चीज़ों पर भी काम कर रही हैं। नमक के बाद उन्होंने हल्दी पर काम करना शुरू किया है। पहाड़ों में उगी प्राकृतिक हल्दी को पारंपरिक तरीकों से पीसकर वह ग्राहकों तक पहुंचा रही हैं। इसी तरह, कुछ समय पहले उन्होंने जंगली शहद भी इकट्ठा करना शुरू किया है। नमकवाली पहल के ज़रिए महिलाओं को धीरे-धीरे और भी चीज़ों से जोड़ा जा रहा है ताकि ग्रामीण स्वरोज़गार को बढ़ावा मिल सके।

Organic Haldi

नमकवाली के अलावा, समिति ने उत्तराखंड में पहाड़ी विवाहों की संस्कृति को बरक़रार रखने के लिए ‘पिंगली पिठाई’ पहल भी शुरू की है। इसके ज़रिए, लोगों की डेस्टिनेशन पहाड़ी शादी कराई जाती है, जो पहाड़ी रीती-रिवाज़ों के मुताबिक होती है। इससे उत्तराखंड के ग्रामीणों को काम मिलता है। शशि कहतीं हैं कि उनका उद्देश्य पहाड़ों के लोगों को रोज़गार से जोड़ना है ताकि यहाँ से पलायन न हो। अब तक उन्होंने 40 से भी ज्यादा शादियाँ इस तरह से कराई हैं।

इन शादियों में पहाड़ी संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण का भी ख्याल रखा जाता है। प्लास्टिक की हर चीज़ पर प्रतिबन्ध होता है और नवदंपति से रुद्राक्ष या फिर फलदार पेड़-पौधे लगवाए जाते हैं। पिंगली पिठाई के मध्यम से न सिर्फ भारतीयों ने बल्कि विदेशी जोड़ों ने भी शादी की है।

“हमारा उद्देश्य बहुत ही स्पष्ट है लोगों को स्थानीय इलाकों में ही रोज़गार से जोड़ना। पहाड़ों के लोगों को पलायन न करना पड़े और उन्हें अपने घरों के पास ही काम मिलता रहे, इसे बेहतर क्या होगा। भले ही, अभी थोड़ा मुश्किल वक़्त है लेकिन यह भी पार हो जाएगा। हमारे प्रयास लगातार जारी हैं,” शशि ने अंत में कहा।

अगर आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है और आप नमकवाली से नमक खरीदना चाहते हैं तो उन्हें 9410705014 पर कॉल कर सकते हैं!

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