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भैंस-बकरी चराने वाले बच्चे आज बोलते हैं अंग्रेज़ी, एक शिक्षक की कोशिशों ने बदल दी पूरे गाँव की तस्वीर!

अल्मोड़ा जिले से लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव तक पहुँचने के लिए आपको सड़क मार्ग के आलावा, छह किमी का पैदल पहाड़ी रास्ता और एक नदी भी पार करनी पड़ती है!

त्तराखंड के हल्द्वानी जिले के रहने वाले भास्कर जोशी अल्मोड़ा जिले के एक गाँव, बजेला में सहायक शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। हाल ही में उन्हें NCERT द्वारा नवाचारी शिक्षकों की श्रेणी में सम्मान से नवाज़ा गया है। यह सम्मान न सिर्फ भास्कर के लिए, बल्कि पूरे बजेला गाँव के लिए गर्व की बात है।

क्योंकि अल्मोड़ा जिले से लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव तक पहुँचने के लिए आपको सड़क मार्ग के आलावा, छह किमी का पैदल पहाड़ी रास्ता और एक नदी भी पार करनी पड़ती है। भास्कर बताते हैं कि यह गाँव ऐसे दुर्गम क्षेत्र में है जहाँ सरकारी सुविधाएँ भी नहीं पहुँच पाती और शायद इसीलिए छह साल पहले तक यहाँ की तस्वीर कुछ और ही थी।

साल 2013 में भास्कर को अपने शिक्षक करियर की पहली पोस्टिंग बजेला गाँव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय के सहायक अध्यापक के तौर पर मिली। यहाँ अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए भास्कर बताते हैं,

“जब मैं यहाँ आया तो स्कूल की हालत एकदम बदहाल थी। मुश्किल से 10 बच्चों का नामांकन था और वो भी स्कूल नहीं आते थे। इस गाँव के बच्चों के माता-पिता भी शिक्षा के प्रति जागरुक नहीं थे। इसलिए वे बच्चों को स्कूल भेजने की बजाय, पशुओं को चराने के लिए भेज देते थे ताकि बच्चे उनकी कमाई में कुछ मदद कर सके।”

शिक्षक भास्कर जोशी को नवाचारी शिक्षक सम्मान से नवाज़ा गया है

2005 से संचालित इस स्कूल में भास्कर से पहले जो भी शिक्षक नियुक्त हुए, उनकी कोशिश यही रही कि कैसे वे इस दुर्गम क्षेत्र से अपना तबादला करवाएं। इसलिए किसी ने भी स्कूल की हालत सुधारने पर ध्यान नहीं दिया। भास्कर जब यहाँ पहुंचे थे तो उन्हें बहुत बुरा लगा। उनके मन में भी यही उधेड़-बुन थी कि अब क्या किया जाए?

“बुरा तो लग रहा था हालातों पर। लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर मैं भी इस स्थिति से भागूंगा तो कभी बदलाव नहीं होगा। बस इसलिए मैंने ठान लिया कि जब तक मेरी पोस्टिंग यहाँ है, तब तक मैं यहाँ बदलाव के तत्पर रहूँगा,” भास्कर ने कहा।

उन्होंने गाँव के हर एक घर में जा-जाकर माता-पिता को समझाया और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए कहा। उन्होंने न सिर्फ़ बच्चों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी ली, बल्कि उनके माता-पिता को भी जागरुक करने का बीड़ा उठाया। भास्कर भले ही इस गाँव के हित के लिए बात कर रहे थे, पर फिर भी उनकी राह आसान न थी। वे हंसते हुए बताते हैं कि कैसे लोग उन्हें अपनी स्थानीय भाषा में गालियां तक देते थे क्योंकि वे उनके बच्चों को बकरियों को चराने से मना करके स्कूल ले जाते थे।

“लोगों का अपने प्रति इस तरह का रवैया काफ़ी परेशान भी करता था। पर फिर मैं सोचता था कि आज मेरा पेट भरा हुआ है इसलिए मैं इन्हें सही-गलत का ज्ञान दे रहा हूँ। पर जिसका पेट ही नहीं भरा, जिसे दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं होती है, वो कैसे शिक्षा को प्राथमिकता देंगे,” भास्कर ने बताया।

पर कहते हैं न कि ‘कोशिश करने वालों की हार नहीं होती’ और भास्कर की कोशिशें भी रंग लाई। आज इस प्राथमिक विद्यालय में 25 बच्चे पढ़ रहे हैं और सबसे अच्छी बात है कि ये सभी छात्र-छात्राएं स्कूल में रेग्युलर आते हैं। गाँव के लोगों की सोच में भी काफ़ी बदलाव आया है और भास्कर के प्रयत्नों से प्रशासन ने भी स्कूल की सुध ली है।

पहाड़ पर है स्कूल

 

उन्होंने बताया कि जब अल्मोड़ा जिले के सरकारी स्कूलों के लिए प्रशासन ने ‘रूपांतरण परियोजना’ शुरू की तो उनके स्कूल को उसमें शामिल ही नहीं किया गया था। क्योंकि यह स्कूल बहुत ही दुर्गम क्षेत्र में है। ऐसे में, उन्होंने जिले के डीएम को पत्र लिखा और उन्हें बताया कि कैसे पिछले कई सालों से उन्होंने अकेले ही स्कूल का स्तर सुधारा है। अगर प्रशासन की मदद उन्हें मिलती है तो आने वाले सालों में इस स्कूल का नाम वे न सिर्फ़ उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में चमका सकते हैं।

डीएम ने भी भास्कर की जी-तोड़ मेहनत को देखते हुए, यहाँ रूपांतरण करने के आदेश दिए और आज इस स्कूल में बच्चों के लिए कंप्यूटर, स्मार्ट क्लास, फर्नीचर, पेयजल, खेलकूद का सामान और प्रोजेक्टर आदि उपलब्ध हो गया है। साथ ही, स्कूल की इमारत को भी सुधारा गया है। अगर आप स्कूल की छह साल पुरानी और आज की तस्वीर देखेंगे तो यकीन ही नहीं कर पाएंगे।

भास्कर जोशी के प्रयासों से हुई कायापलट

स्कूल से बच्चों को जोड़े रखने और शिक्षा में रूचि बनाने के लिए भास्कर ने बहुत से इनोवेटिव तरीके अपनाए हैं। उन्होंने अपने इन तरीकों के बारे में बात करते हुए बताया कि वे कैसे शिक्षा, खेल और अन्य गतिविधियों को मिलाकर बच्चों के लिए कोर्स तैयार करते हैं। वे बच्चों की बौद्धिक क्षमता के साथ-साथ कलात्मक और रचनात्मक क्षमता पर भी काम कर रहे हैं।

उन्होंने बच्चों के पाठ्यक्रम को अलग-अलग श्रेणी में बांट रखा है जैसे भाषा दिवस, प्रतिभा दिवस, बाल विज्ञान उद्यान, हरित कदम, नशा-मुक्ति अभियान, सामुदायिक सहभागिता, नो बैग डे आदि।

खेल-खेल में पढ़ाया जाता है बच्चों को

बाल विज्ञान उद्यान के तहत बच्चों को खेल-खेल में विज्ञान से जुड़े बेसिक कॉन्सेप्ट समझाए जाते हैं। तो वहीं प्रतिभा दिवस के कार्यक्रमों में आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स से जुड़ी गतिविधियां शामिल हैं। साथ ही, इसमें बच्चों को बहुत से गणित के खेल खिलाए जाते हैं और बच्चों में लेखन प्रतिभा के विकास के लिए कहानियां और कविताएं लिखवाई जाती हैं।

‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट’ में भी बच्चे बहुत-सी क्रियात्मक चीज़ें बनाते हैं, जैसे कि टॉफ़ी के रेपर को इकट्ठा करके सजावट की सामग्री, कागज और पॉलिथीन से गुलदस्ता आदि बनाना। भास्कर ने बताया कि उनके बच्चे पर्यावरण को लेकर भी काफ़ी सजग हैं। समय-समय पर बच्चे उनके साथ मिलकर विद्यालय में ही पौधारोपण करते हैं और इसके अलावा, उनके स्कूल का किचन गार्डन भी काफ़ी प्रसिद्ध है।

बच्चों को मिड-डे मील में पौष्टिक भोजन देने के उद्देश्य से भास्कर ने स्कूल के प्रांगण में ही सब्जियों के अलग-अलग पौधे लगाकर किचन गार्डन तैयार कर लिया। मिड-डे मील में बच्चों के लिए सब्जियों की आपूर्ति इसी गार्डन से हो जाती है। साथ ही, बच्चों को इस गार्डन में थोड़ी खेती-बाड़ी पर प्रैक्टिकल नॉलेज भी दी जाती है।

मिड-डे मील के लिए किचन गार्डन में उगाते हैं सब्जियां

बाल रचनात्मकता और पहाड़ी बोली को बढ़ावा देने के लिए भास्कर समय-समय पर अपने छात्रों द्वारा सामुदायिक रेडियो कुमाऊवाणी के लिए प्रोग्राम भी करवाते हैं। उनका मानना है कि आज की आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चे अपनी मातृभाषा और संस्कृति से भी जुड़े रहने चाहिए। इसलिए उन्हें जहाँ भी मौका मिलता है वे अपने छात्रों को उनकी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इस सबके अलावा, बच्चों में भाषा विकास के लिए (हिंदी , इंग्लिश,संस्कृत) गतिविधि आधारित शिक्षण दिया जाता है। भास्कर बताते हैं कि बच्चों के लिए पढ़ाई को मजेदार बनाने की दिशा में उनके कुछ नवाचार, दीवार पत्रिका, कॉमिक निर्माण, मेरी दीवार, मास्क निर्माण, पपेट शो, बॉक्स फ़ाइल निर्माण, रोल प्ले, कहानी शिक्षण, भ्रमण, बाल अख़बार, स्वरचित कहानियां, स्वरचित कविताएं, किस्सा गोई, कहानी रूपांतरण, चित्रों से कहानी निर्माण, आओ बच्चों मुखौटे लगाए, कबाड़ से जुगाड़, MAD का प्रयोग आदि हैं।

स्कूल में होती हैं अनेकों गतिविधियाँ

अपने इन्हीं नवाचारों के ज़रिए वे पहाड़ी इलाके के लोगों को नशे की लत छुड़ाने के लिए भी जागरुक कर रहे हैं। समय-समय पर वे बच्चों के साथ गाँव में नुक्कड़ नाटक या फिर नशे के विरोध में रैली आदि करते हैं। इससे बच्चों को तो सीखने को मिल ही रहा है, साथ ही, उनके माता-पिता की सोच में भी परिवर्तन आ रहा है।

हर दिन भास्कर की शुरुआत इसी उद्देश्य से होती है कि वे कैसे अपने छोटे-छोटे प्रयासों से इन बच्चों के भविष्य को संवारने में भूमिका अदा कर सकते हैं। बेशक, आज जहाँ प्रशासन और नागरिकों की अनदेखी के चलते सरकारी स्कूल बदहाल हो रहे हैं, वहां एक शिक्षक का अकेले पूरे गाँव में बदलाव का परचम लहराना, वाकई काबिल-ए-तारीफ है।

इस बारे में भास्कर सिर्फ़ इतना ही कहते हैं,

“मैं सरकारी शिक्षा के गौरव और गरिमा को फिर से स्थापित करना चाहता हूँ। मेरा उद्देश्य बहुत सादा सा है कि शिक्षा का उत्थान और शिक्षकों का सम्मान। पिछले कुछ सालों में, सरकारी शिक्षकों की लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते सरकारी शिक्षा से लोगों का भरोसा उठ गया है। इसीलिए प्राइवेट स्कूलों का बोलबाला इतना हो गया कि आज शिक्षा भी व्यवसाय बन गई है। ऐसे में, अमीरों के बच्चे तो शिक्षा पा लेते हैं पर गरीबों का क्या? इसलिए मेरी कोशिश सिर्फ़ इतनी है कि फिर से लोगों का भरोसा सरकारी स्कूल और शिक्षकों पर कायम हो और इसके लिए मैं दिन-रात प्रयत्नशील रहूँगा।”

यकीनन, शिक्षक भास्कर जोशी की सोच व कार्य काबिल-ए-तारीफ़ है। देश के हर एक सरकारी स्कूल में शिक्षकों की सोच यदि उनके ऐसी हो एक दिन सरकरी स्कूलों का स्तर खुद-ब-खुद ऊपर उठ जायेगा। आप उनके स्कूल में होने वाली दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ फेसबुक पेज ‘Education for Underprivileged’ पर देख सकते हैं!

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संपादन: भगवती लाल तेली


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