केरल के एक छोटे से गाँव से निकल, सौ करोड़ की कंपनी के मालिक बनने का सफ़र!

ये कहानी है पी सी मुस्तफा की जो एक छोटे से गाँव से है जहां बिजली तक नहीं थी। पिता चौथी तक पढ़े, माँ कभी स्कूल गई ही नहीं और वे खुद छटवी में फेल हो गए पर इसके बाद मुस्तफा ने एनआईटी, कोलकाता से लेकर आई आई एम बेंगलोर से पढाई की और सौ करोड़ का कारोबार खडा कर लिया।ऐसी कहानियां हमारे निराश मन के इंजन में ईंधन का काम करती हैं। और हम प्रेरित होकर खुद ब खुद चल पड़ते हैं।

ये कहानी है पी सी मुस्तफा की जो एक छोटे से गाँव से है जहां बिजली तक नहीं थी। पिता चौथी तक पढ़े, माँ कभी स्कूल गई ही नहीं और वे खुद छटवी में फेल हो गए पर इसके बाद मुस्तफा ने एनआईटी, कोलकाता से लेकर आई आई एम बेंगलोर से पढाई की और सौ करोड़ का कारोबार खडा कर लिया।ऐसी कहानियां हमारे निराश मन के इंजन में ईंधन का काम करती हैं और हम प्रेरित होकर खुद ब खुद चल पड़ते हैं।
पी सी मुस्तफा का जन्म केरल के वायनाड जिले के एक छोटे से गाँव मे हुआ। गाँव में सिर्फ एक प्राइमरी स्कूल था तो आगे की पढाई के लिए दूसरे कस्बे में जाना पड़ा, जहां रोज कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता था। लेकिन पढ़ने का जूनून इतना था कि छठवीं में फेल हुए फिर भी लगातार पढ़ते रहे।

मुस्तफा ने  कठिन परिश्रम किया और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, कोलकाता के साथ आई आई एम, बेंगलोर से पढाई पूरी की। उसके बाद आज इडली और डोसा की सौ करोड़ की कम्पनी के मालिक हैं।

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मुस्तफा घर में सबसे बड़े हैं और उनकी तीन छोटी बहनें हैं। घर की तंगी ऐसी थी कि पिता अहमद को महज चौथी क्लास के बाद स्कूल छोड़कर कुली की नौकरी करनी पड़ी। माँ कभी स्कूल गई ही नहीं। जैसे तैसे घर का गुजर चल पाता था। ऊपर से बहनों की शादी का दबाब भी मुस्तफा के कन्धों पर था।
मुस्तफा ने कभी बिजनेसमैन बनने का सपना नहीं देखा। वो तो एक इंजीनियर बनना चाहते थे।लेकिन एक दिन उनके चचेरे भाई शमसुद्दीन ने एक दुकान पर देखा कि डोसा बनाने का घोल (Dosa Batter) प्लास्टिक की थैलियों में बेचा जा रहां हैं और मुस्तफा से कहा कि इससे तो हम बेहतर ढंग से कर सकते हैं। बस मुस्तफा को आइडिया क्लिक कर गया।  और मुस्तफा ने तुरंत पच्चीस हज़ार रूपये लगाकर एक कंपनी शुरू कर दी।

मुस्तफा के साथ उसके पांच चचेरे भाइयों ने भी उसके कारोबार में अपना सहयोग दिया। शुरुआत में एक छोटी सी जगह पर एक ग्राइंडर, एक मिक्सर और एक सीलिंग मशीन के साथ काम शुरू किया। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम रखा ID-Fresh।

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 पिछले साल अक्टूबर में ID-Fresh ने सौ करोड़ की कंपनी का जश्न मनाया है। शुरूआती दिनों में वे दस पैकेट पैक कर बेचते थे। और आज दस साल में उनकी कंपनी पचास हज़ार पैकेट बेचने लगी है। और उनकी कंपनी में ग्यारह सौ कर्मचारी काम करते हैं।
 इस कंपनी की एक  और खास बात यह है कि अपनी कंपनी में मुस्तफा गाँव के लोगों को नौकरियां दे रहे हैं जिससे उनकी बेरोज़गारी की समस्या ख़त्म हो रही है।
 पी सी मुस्तफा इस बात का जीता जागता सबूत है कि हिम्मत और चाह हो तो आप छोटी से छोटी गलियों से बड़ी से बड़ी उंचाईयों तक पहुँच सकते है!

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