किन्नरों को सम्मानजनक ज़िंदगी देने के लिए शुरू किया ढाबा, 20 से ज़्यादा किन्नरों को मिली छत और रोज़गार!

आज इस ढाबे की प्रतिदिन की कमाई 5, 000 रुपये से लेकर 10, 000 रुपये तक हो जाती है। इस ढाबे से 20 से भी ज़्यादा ट्रांसजेंडर्स को रहने के लिए छत और आजीविका के लिए रोज़गार मिला हुआ है।

र्नाटक के बंगलुरु से 200 किलोमीटर दूर चित्रदुर्गा जिले के पास स्थित ‘सतारा ढाबा’ को साल 2012 में एक ट्रांसजेंडर समूह ने शुरू किया था। आज इस ढाबे पर ग्राहकों की भीड़ देखकर कोई नहीं कह सकता कि शुरुआत में लोग यहाँ आने से भी कतराते थे। क्योंकि इस ढाबे पर खाना बनाने से लेकर सर्वे करने तक के लिए सभी लोग किन्नर समुदाय से हैं।

यह सब मुमकिन हुआ है भावना थिम्माप्पा की मेहनत और जुनून से। एक अच्छे परिवार में पैदा होने के बावजूद भावना को बंगलुरु की सड़कों पर भीख मांगकर अपना गुज़ारा करना पड़ा क्योंकि वे एक किन्नर थे। पर यहाँ उन्हें हर दिन एक जंग लड़नी पड़ती। लोगों की आँखों में उनके लिए हीन भावना, गंदे तंज़, और बहुत ही अपमानजनक व्यवहार के चलते उन्होंने फ़ैसला किया कि वे ऐसा कोई काम करेंगी, जिसमें सम्मान हो।

उन्होंने अपने बाकी किन्नर साथियों को भी भीख मांगने और देह व्यापार जैसे कामों को छोड़कर, कोई सम्मानजनक कार्य करने के लिए प्रेरित किया। फिर इन 8-9 साथियों ने जैसे-तैसे पैसे जुटाकर चित्रदुर्गा जिले के पास नेशनल हाईवे-4 पर एक ज़मीन का टुकड़ा ख़रीदा और यहाँ पर अपना ढाबा शुरू किया।

सतारा ढाबा (साभार)

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए भावना ने बताया कि उन्हें अपने ढाबे के लिए किसी बैंक या सरकारी दफ़्तर से कोई मदद नहीं मिली और इसलिए उन लोगों को यहाँ-वहां से कर्ज़ लेना पड़ा। पर ख़ुशी की बात यह है कि अब उनका सारा कर्ज़ चुक गया है और उनका ढाबा भी दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है।

हालांकि, शुरू में तो ग्राहक इस ढाबे में कदम भी नहीं रखना चाहते थे और जो भी खाना यहाँ बनता, वह ज़्यादातर इन्हें गरीबों में बाँटना पड़ता था। कई दिनों तक जब ऐसे ही चला तो भावना ने खुद लोगों के पास जा-जाकर उन्हें अपने ढाबे पर आने की अपील की। और इस तरह से एक-दो, एक-दो करके उनके ढाबे में ग्राहक आने लगे।

आज इस ढाबे की प्रतिदिन की कमाई 5, 000 रुपये से लेकर 10, 000 रुपये तक हो जाती है। इस ढाबे से 20 से भी ज़्यादा ट्रांसजेंडर्स को रहने के लिए छत और आजीविका के लिए रोज़गार मिला हुआ है। भावना बताती हैं, “हमारे ढाबे की सफलता हमारे अपने समुदाय के लोगों के लिए भी प्रेरणा हैं। यहाँ काम करने वाले सभी किन्नर अब न तो भीख मांगना चाहते हैं और न ही देह व्यापार का काम करना चाहते हैं।”

भावना (साभार)

इस शाकाहारी ढाबे में आपको मिलेगी – कड़क चाय, रोटी, सब्ज़ी (अलग-अलग सब्ज़ियाँ) और कई तरह के चावल (सादा, पुलाव, फ्राइड राइस)! इसके अलावा, ग्राहकों के अनुरोध पर अंडे की डिश भी परोसी जाती हैं। लोगों को सबसे ज़्यादा यहाँ की चाय और सब्जियों में ‘मसाला शिमला मिर्च’ पसंद आती है।

किन्नर समुदाय द्वारा चलाया जाने वाला यह ढाबा अपने स्वादिष्ट खाने के साथ-साथ और भी वजहों से मशहूर है। जिनमें से एक है पानी! जी हाँ, जैसे ही ढाबे की अच्छी कमाई होने लगी और इनका सारा कर्ज उतर गया तो भावना और उनके साथियों ने कुछ-न-कुछ करके पैसों की बचत करना शुरू कर दिया। अपने इन्हीं बचत के पैसों से पहले तो भावना ने ढाबे में बोरेवेल करवाया और फिर वहीं हाईवे पर एक वाटर प्योरीफिकेशन यूनिट भी इंस्टाल कराई है।

साभार

इससे न सिर्फ़ ढाबे को बल्कि आस-पास के कई गांवों को भी फायदा मिल रहा है। ढाबे पर साफ़ पिने के पानी की एक लीटर की बोतल केवल 2 रुपये में और 20 लीटर पानी का कैन मात्र 10 रुपये में दिया जाता है।

ढाबे पर काम करने वाले कर्मचारियों में से एक, वासंती ने बताया कि उन्हें उनके परिवार ने निकाल दिया था, जिसके बाद वे भीख मांगकर गुज़ारा कर रही थीं। पर अब भावना ने उन्हें सम्मान से जीने की राह दी है और अब वे खुद कमाकर खा सकती हैं।

भावना और उनके समूह की यह हिम्मत काबिल-ए-तारीफ़ है। अब यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि हम भी उन्हें पूरी इज्ज़त के साथ इस समाज में बराबरी का अधिकार दें।

संपादन – मानबी कटोच 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X